आखिर क्यों करते हैं बच्चे चोरी

कल मैं अपनी सहेली रमा से मिलने उसके घर पहुंची तो देखा आज वह अपने वास्तविक मूड में नहीं है। वह कुछ परेशान-सी लग रही थी। मेरे पूछने पर पहले तो वह टालती रही, फिर रोने लगी। कुछ देर उसे सामान्य होने में लगी। वह बोली- आज मैं अपने पुत्र के कारण बहुत दु:खी हूं। तुम तो जानती ही हो कि वह हमारी इकलौती संतान है। उसके पापा ने उसे बहुत प्यार-दुलार से पाला है। उसकी हर मांग को यथासंभव पूरा करने का प्रयत्न करते हैं। उसका कमरा नाना प्रकार के खिलौनों से भरा पड़ा है, फिर भी पता नहीं उसने ऐसी हरकत क्यों की। आज मैं उसके स्कूल गई। उसकी प्रिंसिपल मेडम ने बुलाया था। कल उसने किसी बच्चे की फीस के पैसे चोरी कर लिए थे। आज एक बच्चे ने उसके बैग में वे रुपए देखे। मेडम के सामने मुझे बहुत शर्मिंदा होना पड़ा। मैंने स्वयं को बहुत अपमानित अनुभव किया। उसके पापा सुनेंगे तो बहुत गुस्सा करेंगे किन्तु इतनी बड़ी बात है जो कि छिपाई भी नहीं जा सकती।
सचमुच रमा की परेशानी उचित ही है। बच्चों का चोरी करना एक आम घटना है। कुछ बच्चे छोटी आयु से ही चोरी करना सीख जाते हैं। पहले पहल वे घर में खाने-पीने की वस्तुएं चुराते हैं, फिर स्कूल में पेंसिल, पेन आदि चुराते हैं। चोरी का पता लगने पर अभिभावक क्रोधित होकर बालक को मारते-पीटते हैं परंतु जब बालक में चोरी करने की आदत पड़ जाती है तो वह उसे आसानी से नहीं छोड़ता। अत: यह आवश्यक है कि बच्चे में चोरी करने की आदत पडऩे ही न दी जाए।
मेरी दो वर्षीय भतीजी एक दिन पड़ोस के घर से एक  गुडिय़ा उठा लाई। हमने उसे प्यार से समझाया कि तनु यह तुम्हारी गुडिय़ा नहीं है। यह रिंकी की है। हमारे समझाने पर वह रिंकी की गुडिय़ा वापस कर आई।
दरअसल, दो-तीन साल के छोटे बच्चे वे चीजें उठा लेते हैं, जो उनकी नहीं होतीं। उनके दिमाग में यह स्पष्ट नहीं रहता कि कौन-सी चीज उनकी है और कौन-सी उनकी नहीं है। वे चीजों को इसलिए उठा लेते हैं, क्योंकि वे उन्हें पसंद आती हैं। वे चीजों को चुपचाप सबकी नजर बचाकर नहीं उठाते, वे प्रत्यक्ष रूप से सबकी आंखों के समक्ष ही ले जाते हैं। इस सबके पीछे चोरी करने की भावना कदापि नहीं रहती। वस्तुत: इस उम्र में बच्चे थोड़े जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं। वे नई-नई चीजों को जानने और उसे प्राप्त करने के उत्सुक रहते हैं। अत: अनजाने में यदि वे किसी वस्तु को उठा भी लेते हैं तो उनके इस कृत्य को चोरी की संज्ञा देना न्यायसंगत नहीं है। उस बच्चे को अपराधी नहीं समझना चाहिए, अपितु उसके साथ प्यार व समझदारी से पेश आना चाहिए। उसे यह समझाना चाहिए कि जो खिलौना वह उठा लाया है, वह अमित का है। अमित भी तो खेलेगा? आप अपने खिलौने से खेलें। बच्चा प्यार से समझाने पर अवश्य ही अपने व पराए में भेद जान लेगा तथा भविष्य में पुन: ऐसी गलती नहीं दोहराएगा।
वस्तुत: छह वर्ष की उम्र के पश्चात बच्चा चोरी के विषय में जानने लगता है। अत: इस उम्र में उठाई गई वस्तु चोरी की संज्ञा के अंतर्गत आ सकती है।
इस उम्र में बच्चा जब कोई चीज लेता है, तब वह जानता है कि ऐसा करना गलत काम है। अत: चुराने के पश्चात उसे छिपाकर रखेगा और चोरी पकड़ी जाने पर साफ इंकार कर देगा कि यह काम उसका नहीं है। ऐसी स्थिति आने पर यह आवश्यक है कि बच्चे पर क्रोधित होने के स्थान पर उसे प्यार से समझाएं, जिससे बच्चा साफ तौर से यह जान ले कि उसके माता-पिता उसकी चोरी की बात को पसंद नहीं करते और जिसकी चीज है, उसे वापस लौटा देनी चाहिए। इसके विपरीत ऐसा करना कदापि उचित नहीं है कि बच्चा आपके क्रोध के कारण डर जाए, सहम जाए और वह यह समझ ले कि उसके माता-पिता अब कभी उसे प्यार नहीं करेंगे।
अक्सर यही माना जाता है कि निर्धन वर्ग के बालक चोरी करते हैं, क्योंकि उनके पास उन वस्तुओं का अभाव होता है और उस अभाव की पूर्ति करने हेतु वे चोरी करते हैं किन्तु यह पूर्णतया सही नहीं है। धनी परिवार के बालकों में भी चोरी की आदतें काफी देखी गई हैं।
मोहन एक धनी परिवार का लड़का है। बचपन से ही वह काफी हठीले स्वभाव का है, वह जो चाहता है, जिद्द करके उसको प्राप्त कर लेता है। उसके माता-पिता प्रतिदिन उसे जेब खर्च देते थे। उसके बाद भी वह कुछ पैसे अपने दादी-दादा से, कुछ बड़ी दीदी या भैया से प्राप्त कर लेता है, फिर स्कूल में बड़ी शान से आइसक्रीम आदि स्वयं भी खाता है और दोस्तों को भी खिलाता है। धीरे-धीरे चापलूस मित्रों की संख्या बढऩे लगी, अब वे कभी-कभी सिनेमा भी जाते, ताश पत्त्ते भी खेलते। अत: अब उसका जेब खर्च उसे काफी कम लगने लगा। उसका आवश्यकता से अधिक खर्चीला स्वभाव बन जाने के कारण मम्मी-पापा काफी सतर्क रहने लगे। सब ने उसे पैसे देने के लिए मना कर दिया। एक दिन उसे सब मित्रों को पिक्चर दिखानी थी और आइसक्रीम का भी प्रोग्राम था किन्तु मम्मी ने अधिक पैसे देने से मना कर दिया। फलस्वरूप उसने चुपचाप मम्मी के पर्स से सौ रुपए का नोट निकाल लिया।
अत: अधिक लाड़-प्यार के कारण उसे चोरी की आदत पड़ गई। प्रारंभ से ही अगर उसके साथ संतुलित व्यवहार किया जाता, उसकी अनुचित हठों को पूरा करने के स्थान पर उसे लाभ-हानि के विषय में प्यार से समझाया जाता तो यह स्थिति कभी उत्पन्न नहीं होती। लाड़-प्यार में पले बालकों की आवश्यकताएं अत्यधिक बढ़ जाती हैं। अत: समय रहते ही उन पर अंकुश लगाना आवश्यक है। बालक को प्रारंभ से ही उचित-अनुचित के विषय में बताना चाहिए। उसकी गलत बातों पर उसे डांटा भी जाना चाहिए। यह भी प्यार का एक रूप है, लेकिन जरूरत से अधिक अंकुश भी घातक है।
दरअसल, यह बच्चा जानबूझकर या गलत कार्य करने के उद्देश्य से चोरी नहीं करता, बल्कि उसके मन में किसी चीज के लिए एक उग्र अभिरुचि है, जो आगे-पीछे का कुछ नहीं सोचती और वह ऐसी चीज चुराकर संतोष पाना चाहता है, जिसकी उसे वास्तव में जरूरत ही नहीं है। परिवार में कठोर अनुशासन होने के कारण बालक अपनी अनेक प्रवृत्तियों का अत्यधिक दमन करता है, जिससे उसमें भावना या गं्रंथियां जम जाती हैं, जिसके कारण उसे समायोजन में कठिनाइयां होने लगती हैं और उस कमी को पूरा करने के लिए वह चोरी करने लगता है।
ऐसे कई मामलों में बच्चा अपने को दु:खी और एकाकी पाता है। उसका अपने माता-पिता से गहरा हार्दिक संबंध नहीं रहता। अत: वह चोरी की चीजें दूसरों को बांटकर मित्रता व प्यार खरीदना चाहता है और एकाकीपन दूर करने की कोशिश करता है।
कई बार परिवार के अन्य सदस्यों को चोरी करते देखकर बच्चा चोरी करना सीख जाता है। प्रियंका की मम्मी उसके पापा की जेब से रोज पैसे चुराती थी। प्रियंका के देख लेने पर उसे चुप रहने को कहती। पापा के पूछने पर झूठ बोल देती कि हमने नहीं लिए, धीरे-धीरे मम्मी की देखा-देखी प्रियंका ने भी आवश्यकता होने पर पापा की जेब से पैसे चुराने शुरू किए और धीरे-धीरे चोरी करना उसका स्वभाव बन गया। अब वह बेझिझक चोरी करने लगी। उसकी देखा-देखी उसके छोटे भाई-बहन भी चोरी करने लगे।
अत: परिवार के एक सदस्य की चोरी करने की आदत भी बच्चों में इस प्रवृत्ति के विकास में सहायक होती है।
कुछ बालक बहुत बहादुर व साहसी होते हैं। वे साहस की भावना से प्रेरित होकर चोरी करते हैं। अक्षय छुट्टियों में अपने मामा के यहां गांव गया। उसके मामा के बच्चे भी उसकी उम्र के थे। अत: उसका वहां काफी मन लगता था। एक दिन उनके कहने पर अक्षय एक बाग में आम चुराने लगा। छिप-छिपकर उन्होंने बहुत से आम चुरा लिए और धीरे-धीरे आम की चोरी करना भी उनका प्रिय खेल हो गया।
बच्चे ऐसे कार्य में आम चुराना, अमरूद चुराना, फूल तोडऩा आदि चोरी की भावना से नहीं करते वरन् वे ऐसे कामों को साहसिक कार्यों में गिनते हैं। अत: इस प्रकार की चोरी को न तो अपराध ही माना जाना चाहिए और न ही इसके लिए बच्चों को शर्मिंन्दा किया जाना चाहिए। उन्हें दंड देना भी सरासर अन्याय है। अगर इस वृत्ति से उनको रोकना चाहते हैं तो उनसे साहसपूर्ण कार्य कराएं। प्रतियोगी खेल आदि कराएं।
अत: बालक की चोरी करना अपराध नहीं है वरन् एक बुरी आदत है। यह चरित्रगत दोष है। अत: इस दोष को समय रहते ही पता लगाकर  प्रेमपूर्ण, मैत्रीपूर्ण व्यवहार तथा परिवार के सुखद वातावरण द्वारा दूर करना चाहिए।  बालक को कठोर अनुशासन में न रखकर कुछ स्वतंत्रता भी देनी चाहिए। उसकी रुचि का ध्यान रखना चाहिए। चोरी पकड़े जाने पर उसको शर्मिन्दा करके मारना-पीटना अनुचित है। साथ ही चोरी की अवहेलना करना भी उचित नहीं है। अत: बालक के अंदर चारित्रिक दोषों को उत्पन्न न होने देने के लिए उसके साथ नम्रतापूर्वक और संतुलित व्यवहार करना चाहिए। 

रुचि गर्ग