शिक्षक समाज व राष्ट्र का ज्योतिपुंज है जो स्वयं जलकर सबको प्रकाशित करता है। बालकों को सुशिक्षित संस्कारित कर शिक्षक अच्छे समाज व महान राष्ट्र की आधारशिला रखता है। कोई भी समाज शिक्षा के बलबूते पर ही आगे बढ़ सकता है। समाज व राष्ट्र के विकास के लिए शिक्षा को अपनाना होगा। शिक्षा के बिना समाज के विकास की कल्पना करना व्यर्थ है। व्यक्ति शिक्षित होकर मेहनत व लगन के साथ कार्य करें। सफलता एक न एक दिन अवश्य मिलेगी। प्रत्येक घर में सभी सुख-सुविधाएं हो, यह जरूरी नहीं है। कई लोग लालटेन की रोशनी में पढ़-लिखकर महान पुरुष बने हैं। ऐसे महापुरुषों से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। प्रजातंत्र में सब कुछ अपने आप नहीं होता। खुद व समाज की तरक्की के लिए निरंतर मेहनत व प्रयास करना पड़ता है। एकजुटता की कमी किसी भी समाज के लिए घातक हो सकती है। शिक्षा जीवन के अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करती है। शिक्षा के साथ आधुनिक तकनीकी का जुड़ाव होना चाहिए। किसी भी उच्च लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सभी का सहयोग जरूरी है। विद्यालय शिक्षा एवं सरस्वती का मंदिर है, जिसमें शिक्षक पुजारी और विद्यार्थी सेवक हैं। शिक्षक अपने कत्र्तव्य के अनुरूप बालकों को शिक्षा प्रदान करें। विद्यार्थी शिक्षकों से अनावश्यक सवाल-जवाब करने के बजाय आदर एवं अनुशासन से शिक्षा को ग्रहण करें। यदि बालक देश का भविष्य है तो शिक्षक उस देश के भविष्य का निर्माता है। यदि दोनों ही अपने पथ से भटक गए तो फिर देश का क्या होगा? अत: शिक्षक पूर्ण ईमानदारी के साथ अपना कत्र्तव्य निभाएं तभी समाज व राष्ट्र का सही मायने में नवनिर्माण होगा।