कहानी- *कानून*

आखिर दुर्गा देवी ने अपने पति रामेश्वर से कहा- ऐसे कैसे काम चलेगा। रामेश्वर ने पहिले तो दुर्गा देवी को देखा, जिसकी आँखों में क्रोध की अंगार बरस रही थी। फिर बोले। भागवान क्या कहना चाहती हो?
‘अरे वो गुमानमल एक बीघा जमीन खई गया और आप हाथ पर हाथ धरी के बैठा हो?
‘तो मैं का करूं दुर्गा?
‘अरे का करूं? कल से वो सारे खेत हड़प लेगा। तब भी कहियो क्या करूं… अरे मरद हुई के ऐसा बोलरिया हो।
‘मर्द हूं इसका यह मतलब नहीं उसे जाकर मारू पीटूं।
‘मारने पीटने की कौन कहे है?
‘फिर क्या मतलब है तुम्हारा?
‘मतलब यह है थाने में रपट लिखाओ। बहुत गुंडाराज चला रखा है। गुमानमल ने गांव में, जब चाहे जिसकी जमीन हड़प ले। अरे कानून भी कोई चीज होवे है। गुस्से से उबल पड़ी दुर्गादेवी।
‘तुम जितना समझ रही हो, वैसा है नहीं। ये थाने वाले आसानी से हमारी रपट लिख लेंगे क्या? … गरीबों को तो ये जानवर समझते हैं।
‘बैठों रहे, घर में चूडिय़ाँ पहनकर। दुर्गादेवी गुस्से से बोली। धीरे-धीरे करके वो बाकी जमीन भी हड़प लेगा। मगर तुम कुछ नहीं करी पाओगे, देखते रहना। आदमी को इतना सीधे बनकर भी नहीं रहना चाहिए। मगर तुम इतने सीधे हो कि …
‘बस-बस दुर्गा। बीच में ही बात काटकर रामेश्वर बोला- हम गरीब है वो गुमानमल बहुत पैसों वाला है। वो पुलिस वालों को खरीद लेता है। फिर आजकल पुलिस भी उनकी रपट लिखती है, जो उनकी जेब को गरम  करते हैं।
‘अरे पुलिस वाले सरकार के आदमी है। सरकार पगार देती है। पुलिस ऐसे कैसे है जो रपट भी नहीं लिखेंगे। अरे जाने से पहले ही आना-कानी कर रहे हो।
‘अरे दुर्गा, तू इन पुलिस वालों को नहीं जानती।
‘यूं कहो न थाने में जाते हुए डर लगता है। इस बार दुर्गा देवी का गुस्सा सातवें आसमान पर था। अरे लिखेंगे कैसे नी। उनके घर का राज है क्या। पहले ही कह दिया सिर हिलाकर… पुलिस वाले ऐसे है, पुलिस वाले वैसे है… अरे वे भी तो हमारी तरह इंसान है। कोई राक्षस नहीं है, झट कह दिया गरीबों की रपट नी लिखेंगे?
‘मगर दुर्गा, गुमानमल के खिलाफ रपट लिखाना यानि कि मधु मक्खियों के छत्ते पर हाथ डालना है।
‘अरे गाँव का आदमी उसके डर से पीछे हटता रहा है। उसके खिलाफ कौन करेगा बगावत और जब तक के बगावत न होगी गुमानमल के हौसले बुलन्द होते रहेंगे। जाओ थाने में रपट लिखाकर आओ।
इस बात को लेकर दोनों में काफी हील हुज्जत हुई। आखिर रामेश्वर थाने में रपट लिखाने पहुंचा। गुमानमल गाँव का सम्पन्न किसान है। उन गरीब किसानों को जो अर्थ से कमजोर होते हैं, उन लोगों को कर्ज देता है। बदले में गहने या जमीन गिरवी रखवाता है एक तरह से वह जरूरत मंद को कर्ज देता है। गाँव वालों के लिए वह बैंक है। मगर कर्ज देते समय कर्जदार से यह इकरारनामा अवश्य लिखवा लेता है कि निर्धारित अवधि में ब्याज सहित सूद नहीं चुकाया तो जेवर और जमीन गिरवी रखी है वह उसकी हो जायेगी। इस तरह से जमीन हड़पकर उसने ढ़ेर सारी जमीन कर ली है।
रामेश्वर ने भी गुमानमल से एक बीघा जमीन गिरवी रखकर अपनी बड़ी लड़की की शादी करने हेतु कर्ज लिया था। ब्याज तो वह समय पर चुकाता रहा। मगर मूल देने में एक दिन देर कर दी, तब गुमानमल ने कह दिया, तारीख निकल गई। जमीन हड़प ली, क्योंकि उसकी नियत खराब हो गई थी। उससे झगड़ा करना यानी कि खुद पर आफत मोल लेना। डर से कोई बोलता नहीं था। अत: रामेश्वर भी नहीं बोला।
दुर्गा ने उसे थाने में रपट लिखने हेतु मजबूरकर दिया। वह पास के गाँव के थाने पर रपट लिखाने पहुंच गया। थानेदार के हाथ जोड़ते हुए रामेश्वर बोला राम-राम साहब।
‘राम-राम… कौन हो तुम?  थानेदार ने उसे तीक्ष्ण दृष्टि से देखा।
‘मैं रामेश्वर हूँ।‘
‘अरे तुम रामेश्वर हो या कालूराम मुझे नाम से क्या लेना-देना। थाने में किसलिए आये हो। काम बताओ।‘ थानेदार गरजकर बोला।
‘मालिक रपट लिखाने आया हूँ?’
‘किसके खिलाफ?’
‘गुमानमल के खिलाफ।‘
‘ऐसा क्या किया उसने?’
‘एक बीघा जमीन हड़प ली।‘
‘तुमने उससे कर्जा लिया होगा- और उसे समय पर नहीं चुकाया होगा।‘ थानेदार ने अचानक यह प्रश्न पूछा तो रामेश्वर चुप हो गया। थानेदार आगे बोला बोलो चुप क्यों हो गये?
‘नी मालिक- तारीख से एक दिन बाद छुड़ाने गया- मगर उसकी नियत में खोट आ गई, और जमीन हड़प ली।‘
‘आखिर गलती तो सारी तुम्हारी  है और फिर भी उसके खिलाफ रपट लिखाने आ गये।‘ झिड़कते हुए थानेदार बोला- रपट लिखाने के पहले यह सब सोच लेना चाहिए। समझे जब कचहरी में मामला चला जायेगा तब भी कुछ भी नहीं होगा। फिर जिस व्यक्ति के खिलाफ रपट लिखा रहा है, उसके पास पैसे की ताकत है, मेरा कहना मान रपट लिखाने का विचार छोड़ दे। जितना पैसा तेरे पास होगा, वह सब अदालत में खर्च हो जायेगा।
थानेदार की लम्बी डांट सुनकर रामेश्वर को लगा यह बिक गया है, गुमानमल ने इसे खरीद लिया है, क्योंकि वह उसी की भाषा बोल रहा है। बोला- मतलब यह हुआ थानेदार साब, वो गुमानमल अपनी मनमानी करता रहे।
‘तब तुम उससे कर्ज क्यों लेते हो?’
‘जरूरत के लिए लेना पड़ता है थानेदार साहब?’
‘जब लेना पड़ता है, तब आप लोगों को समय पर चुकाना भी चाहिए समझे। तुम लोग समय पर नहीं चुकाते हो इसलिए गुमानमाल के हौसले बढ़े हुए हैं। उसके बुलन्द हौसले खत्म करना हो तो उससे कर्ज लेना ही बंद कर दो फिर न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी?’ एक बार फिर थानेदार समझाते हुए बोला- गलती खुद करते हो और आ गये रपट लिखाने। अरे गुमानमल कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं है। उसने खुद ही तुम सबके हाथ पैर काट लिए है। उसने तुम लोगों से अंगूठा लगवा लिया है। समझे इसलिए कहता हूं तुम उससे लड़ाई मत लड़ो, हार जाओगे।
‘देखिए साब, मैं रपट लिखाने आया हूं, आपकी बातें सुनने नहीं।‘ रामेश्वर इस बार अकड़कर गुस्से से बोला- आप रपट लिख लीजिए।
तब थानेदार कुछ न बोला। यह व्यक्ति रपट लिखाने के लिए अड़ा हुआ है। अगर रपट लिख ली, तब गुमानमल नाराज हो जायेंगे। रपट नहीं लिखने हेतु गुमानमल ने लिफाफा भिजवाया है। रपट तो उसे लिखना नहीं है उलझाकर रखना है। मगर रामेश्वर पीछे पड़ गया अब लगता है इस रामेश्वर को कानून की धारा दिखाकर गिरफ्तार करने के सिवाय कोई चारा नहीं है। उसे चुप देखकर रामेश्वर फिर बोला- क्या सोच रहे हो थानेदार साब, आप रपट लिख रहे हैं कि नहीं, थानेदार ने सोचा अब इसे चमत्कार दिखाना पड़ेगा। थानेदार ने एक सिपाही को बुलाकर कहा- रामसिंह इधर आना तो…
रामसिंह तत्काल उसके सामने उपस्थित होकर आदेश की प्रतीक्षा करने लगा। थानेदार ने कहा इसे लॉकअप में बंद कर दो और इसके खिलाफ शासकीय काम में बाधा डालने के चक्कर में एफ.आई.आर. दर्ज कर दो… फिर एक पुराने रजिस्टर के कुछ पन्ने फाड़ दिये। साला जेल की चक्की पीसेगा, समझा रहा हूं, रपट मत लिखा, अब खुद फंस गया कानून के दायरे में।
रामसिंह ने उसे लॉकअप में बंद कर दिया। रामेश्वर ने पूछा मेरा का कसूर है थानेदार साब जो आपने  बंद कर दिया। तुम्हारा यह कसूर है कि तुमने जबरदस्ती थाने में घुसकर दादागिरी की, शासकीय रिकार्ड को फाड़ा, शासकीय कार्य में बाधा पहुंचाई।
रामेश्वर गिड़गिड़ाता रहा, मगर थानेदार पर कोई असर नहीं पड़ा। एक घंटे तक वह लॉकअप में इसी तरह गिड़गिड़ाता रहा। पूरा थाना उसके गिड़गिड़ाने का आनंद लेता रहा।
जब उसके गिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं पड़ा तब वह परेशान हो गया। हारकर बोला- थानेदार साब, आपके हाथ जोड़ता हूं मुझे छोड़ दीजिए। अब मैं रपट लिखाने का नहीं कहूंगा तब थानेदार ने उसे तीक्ष्ण दृष्टि से देखा फिर पास आकर बोला- अब अपना विचार क्यों बदल लिया। जबकि मैं पहले ही कह रहा था, मत लिखा रपट तब तो अकड़ रहा था जैसे गुमानमल को फांसी पर लटका देगा।
‘थानेदार साब यह मेरी गलती थी।‘ हाथ जोड़ते हुए रामेश्वर बोला-
‘मगर मैंने तो तेरी एफ.आई.आर. दर्ज कर ली। अब तो कोर्ट में फैसला होगा।‘ थानेदार जरा अकड़कर बोला-  मैंने पहले ही कहा था। रपट मत लिखा अरे जब लिखने के लिए तैयार हुआ तब तुमने शासकीय काम में बाधा डाली। थाने के इस महत्वपूर्ण रिकार्ड को फाड़ दिया और शासकीय काम में बाधा डाली है। अरे अब तो सीधी जेल होगी जेल।
थानेदार की धमकी सुनकर रामेश्वर सोच में पड़ गया। भीतर ही भीतर कांप उठा, कहां वह रपट लिखाने आया था। कहां उसको धारा दिखाकर बंद कर दिया। पहले ही दुर्गा से कहा था मत लिखाओ रपट। हम गरीबों की कोई सुनने वाला नहीं है जिसके बटुवे में जोर, वही मचा सकता है शोर। पुलिस और कानून का संबंध पैसों से होता है। यदि पैसा दे दिया होता तब यही थानेदार भी रपट लिख लेता है। आजकल सब तरफ पैसों का खेल चल रहा है। कैसे भी हो यह मामला यहीं रफा-दफा करके पिंड छुड़ा ले, उसे चुप देख थानेदार फिर बोला- क्या सोचा है?
थानेदार साब, मैं अपनी गलती कबूल करता हूं, मुझे छोड़ दीजिए। अब कभी रपट लिखाने की बात भी नहीं कहूंगा। रामेश्वर के आग्रह पर थानेदार मुस्करा दिया। रामसिंह चाबी लेकर आया। ताला खोलने से पहले थानेदार ने फिर कहा रुको, इसे यूं नहीं छोड़ूंगा, इसे सडऩे दो। साला कंगाल कहीं का रपट लिखाने आया, रपट क्या यूं लिखी जाती है बता जेब में कितना माल लेकर आया है।
बस 400/- रुपये
 रामसिंह को दे दो ताला खोलने के। थानेदार ने जब यह आदेश दिया, तब उसने जरा भी देर नहीं की, चुपचाप रुपये निकालकर दे दिये। जब रामेश्वर बाहर आया, तब थानेदार बोला- चुपचाप चले जाना, अब कभी गुमानमल की रपट लिखाने मत आना समझे। यूं समझ तेरी किस्मत अच्छी थी, जो तुझे सस्ते में निपटा दिया।
रामेश्वर गर्दन हिलाकर चुपचाप चलता बना। पीछे मुड़कर भी नहीं देखा। थाने में जरूर ठहाके गूंजे। जब वह सड़क पर आया, तब मन ही मन सोच रहा था। जान बची तो लाखों पाये, लौट के बुद्धु घर को आये।
जब वह घर पहुंचा, दुर्गादेवी बोली- लिखा आये रपट, रामेश्वर ने कोई जवाब नहीं दिया, चिल्लाकर बोली सुन रहे हो? ‘हां सुन रहा हूं, बहरा नहीं हूं।‘ इस बार झल्ला पड़ा रामेश्वर।
‘नाराज क्यों हो रहे हो? मैं सीधे पूछ रही हूं, लिखा आये रपट।‘
‘नहीं।‘ ‘क्या कहा नहीं। चूडिय़ां पहनकर बैठ जाओ घर में?’चिल्ला पड़ी दुर्गा फिर इतनी देर काहे की हो गई? ‘चिल्लाओ मत, रिपोर्ट लिखने के बजाय थानेदार ने मुझे लॉकअप में बंद कर दिया।‘ रामेश्वर ने जब यह बात कही, तब दुर्गादेवी बोली- क्यों बंद कर दिया। ऐसे कैसे बंद कर दिया। यह सब तुम्हारी कमजोरी थी क्या कसूर था तुम्हारा बोलो? ‘कसूर था नहीं, मुझे कसूरवार ठहराकर बंद कर दिया।  बड़ी मुश्किल से छूटकर आया हूं।‘ रामेश्वर ने जवाब दिया। मगर दुर्गादेवी का भाषण विधिवत जारी था।

 
रमेश मनोहरा