सार्वजनिक संस्थान अभिजात्य वर्ग के स्थान बनने पर अनुपयोगी हो जाएंगे : पायल कपाड़िया

नयी दिल्ली,  फिल्मकार पायल कपाड़िया ने कहा है कि यदि सार्वजनिक संस्थानों को ‘‘अभिजात्य वर्ग’’ के स्थानों में तब्दील कर दिया जाए तो वे राष्ट्र के लिए अनुपयोगी हो जाएंगे।

कपाड़िया ने स्वतंत्र रूप से फिल्म निर्माण किये जाने को बढ़ावा देने के लिए एक कोष बनाने के वास्ते बड़े बजट की फिल्मों पर कर लगाने की भी हिमायत की।

भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) की पूर्व छात्रा कपाड़िया ने कान फिल्म महोत्सव में “ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट” के लिए ग्रां प्री पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय फिल्मकार बनकर इतिहास रच दिया है।

कपाड़िया ने शुक्रवार को फेसबुक पर एक लंबा बयान पोस्ट कर कई विषयों पर अपनी राय रखी।

फिल्मकार ने कहा कि सार्वजनिक संस्थान हमेशा सभी लोगों के लिए सुलभ होने चाहिए।

कपाड़िया ने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से, मौजूदा समय में सार्वजनिक संस्थान अधिक महंगे होते जा रहे हैं। ये स्थान तभी प्रासंगिक रह सकते हैं और संवाद को बढ़ावा दे सकते हैं जब ये सभी के लिए सुलभ हों। यदि ये संस्थान अभिजात्य वर्ग के स्थान बन जाते हैं, जैसा कि विभिन्न विश्वविद्यालय बीते कई वर्षों के दौरान बन गए हैं, तो यह राष्ट्र के लिए अनुपयोगी हो जाएंगे।’’

कपाड़िया ने कहा, ‘‘ऐसे कई निजी संस्थान हैं जो केवल यथास्थिति बनाए रखने और अभिजात वर्ग को अवसर देने के लिए बनाए गए हैं। एफटीआईआई जैसी जगह इस समय इन सबके बीच में है। हमें इसे और भी अधिक सुलभ बनाने का प्रयास करना चाहिए। ’’

निर्देशक ने इस बात पर भी जोर दिया कि प्राथमिक स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने की बहुत आवश्यकता है।

कपाड़िया ने कहा कि हालांकि वह सुविधाओं से संपन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि से आती हैं, फिर भी उनके परिवार में महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनकी मां नलिनी मालानी एक प्रख्यात चित्रकार हैं।

कपाड़िया ने अपने करियर में एफटीआईआई के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘मैंने भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) में बहुत कुछ सीखा। एफटीआईआई एक ऐसी जगह थी, जहां हम न केवल फिल्म निर्माण के बारे में बल्कि उस दुनिया के बारे में भी अपने विचार तैयार कर सकें, जिसमें हम रहते हैं। फिल्म निर्माण विचारों के आदान प्रदान के बिना नहीं होता। बहस और चर्चा, सवाल और आत्मचिंतन के माध्यम से ही हम उन फिल्मों के करीब पहुंचते हैं जिन्हें हम बनाना चाहते हैं।’’

कपाड़िया 2015 में उन प्रदर्शनकारी विद्यार्थियों में से एक थीं, जिन्होंने अभिनेता गजेंद्र चौहान की एफटीआईआई के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति का विरोध किया था। उन्होंने कहा कि प्रमुख फिल्म संस्थान के छात्र हमेशा एक-दूसरे से सहमत नहीं होते थे, लेकिन उन्होंने अपने मतभेदों से बहुत कुछ सीखा है।

उन्होंने कहा, ‘‘किफायती सार्वजनिक शिक्षा ने इसे संभव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। और यह सिर्फ एफटीआईआई की बात नहीं है। अगर हम अपने देश में बन रही फिल्मों पर विचार करें, तो आप पाएंगे कि उनकी टीम में हमेशा कोई न कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो सार्वजनिक संस्थान – जामिया (मिल्लिया इस्लामिया), जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय), एसआरएफटीआई (सत्यजीत रे फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान) आदि से पढ़ा है।’’

कपाड़िया की “ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट” कान में 30 वर्ष में मुख्य प्रतिस्पर्धा में दिखाई गई भारत की पहली और किसी भारतीय महिला निर्देशक की पहली फिल्म है। इससे पहले शाजी एन. करुण की स्वाहम (1994) मुख्य प्रतिस्पर्धा में दिखाई गई थी।

लोकसभा चुनाव परिणाम की घोषणा में कुछ ही दिन बचे रहने के बीच, कपाड़िया ने उम्मीद जताई कि नयी सरकार ‘‘कहीं अधिक समानता वाला समाज बनाने की दिशा में काम करेगी, जहां प्रत्येक व्यक्ति का हमारे देश के संसाधनों पर अधिकार होगा और वे कुछ लोगों के हाथों में ही सीमित नहीं होंगे।’’