बीमारी और गर्भावस्था

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आजकल की आधुनिक जीवनशैली के कारण महिलाओं को नाना प्रकार की बीमारियां समय पूर्व होने लगी हैं। ऐसी बीमारी की अवस्था में यदि वह गर्भवती होती हैं तो उसकी स्वास्थ्यगत समस्या के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु की स्थिति और जटिल हो जाती है। एक तरफ माता को अपनी बीमारी से बचने के लिए दवा लेना जरूरी होता है तो दूसरी तरफ गर्भस्थ शिशु की सेहत व शरीर के विकास को हर दृष्टि से बेहतर रखना आवश्यक होता है।
दोहरी जिम्मेदारी से जूझती नारी कई मर्तबा दुविधा में पड़ जाती है। गर्भवती के हर निर्णय एवं स्थिति का प्रभाव गर्भ के शिशु पर पड़ने का अंदेशा रहता है। यहां हम कुछ खास बीमारियों की चर्चा करते हैं जो आम व साधारण हो गई हैं और सभी वर्ग की नारियों को अपनी चपेट में ले रही हैं।
बी.पी./हायपरटेंशन
आजकल की अधिकतर नारियां हायपरटेंशन या बी.पी. से कभी न कभी जूझती नजर आती हैं। ये मां व गर्भस्थ शिशु दोनों को प्रभावित कर सकते हैं। गर्भस्थ शिशु का विकास भी गड़बड़ा सकता है। अतएव नारी इनसे बचने के लिए अपने चिकित्सक से स्वास्थ्य की सतत जांच करवाए और हर बदलाव एवं अनुभवों से चिकित्सक को अवगत कराकर उचित मार्गदर्शन प्राप्त करें। नमक, तेल, घी कम कर दें।
हृदय रोग
वंशानुगत या अन्य कारणों से हृदय रोग से ग्रस्त नारी को गर्भधारण करने से पूर्व एवं पश्चात् अपने डॉक्टर के सतत सम्पर्क में रहना चाहिए। मां के हृदय रोग की अवस्था में शिशु का विकास एवं उसे आक्सीजन की आपूर्ति प्रभावित होने का अंदेशा रहता है। दवा नियमित लें एवं तेल, घी, शक्कर, नमक कम खाएं।
अनीमिया
खून की कमी अपने देश की आम जनता की खास समस्या है। यहां की अधिकतर नारियां अनीमिया से कभी न कभी ग्रस्त जरूर होती हैं। गर्भवती के शरीर में खून की कमी होने पर उसके गर्भ के शिशु का सम्पूर्ण विकास नहीं हो पाता, साथ ही प्रसव के समय प्रसूता की जान खतरे में पड़ जाने का डर रहता है, अतएव गर्भवती स्त्रा खून की कमी की स्थिति में डॉक्टर की सलाह पर दवा व खानपान की स्पष्ट जानकारी प्राप्त कर उसका पालन करें। खानपान की पौष्टिकता पर ध्यान दें। आयरन वाली चीजें खाएं।
थायराइड
यह रोग थायराइड हार्मोन के कम या ज्यादा होने पर दोनों ही स्थिति में हो सकता है। हायपर या हाइपो थायराइड से पीड़ित महिला अपनी बीमारी एवं दवा की जानकारी चिकित्सक को देकर गर्भधारण के पूर्व एवं पश्चात् की स्थिति के लिए निर्देश प्राप्त कर ही आगे कदम बढ़ाए। खानपान डॉक्टरों के अनुसार करें।
अस्थमा
दमा की बीमारी की स्थिति में गर्भवती एवं उसके गर्भस्थ शिशु दोनों परेशान हो सकते हैं। सांस लेने की दिक्कत एवं अस्थमा का दौरा दोनों को परेशान कर देता है। डॉक्टर परिस्थिति को देख समझ कर दोनों को भावी खतरे से बचाकर निरापद रख सकता है। अस्थमा के कारणों से बचें।
डायबिटीज
वंशानुगत होने वाली शुगर की बीमारी अब आधुनिक तनाव पूर्ण आराम पसंद जिंदगी के कारण  महिलाओं को भी होने लगी है। डायबिटीज पीड़ित महिला शुगर नियंत्रित रहने पर ही चिकित्सक के निर्देशानुसार गर्भधारण करें। गर्भावस्था में भी शुगर बढ़ने न दें। बढ़े शुगर का प्रभाव दोनों पर पड़ेगा। बच्चा विकृत या मृत हो सकता है। गर्भपात हो सकता है। अतएव ऐसी महिला डॉक्टर के निर्देशानुसार दवा, खानपान का सेवन करें। शुगर हर हाल में काबू रखें और खानपान की पौष्टिकता भी बनाए रखें।
माइग्रेन व तनाव
ये दो बीमारियां भी आजकल की आम समस्याएं हैं। जीवन शैली तनावपूर्ण सिरदर्द वाली हो गई है। साथ ही माइग्रेन अनेक कारणों से होता है जो गर्भवती एवं उसके गर्भ के शिशु को प्रभावित करता है, अतएव डॉक्टर के अनुसार दवा व सलाह का पालन करें।
गर्भावस्था की जटिलता
उपर्युक्त बीमारियों के अलावा अनेक बीमारियां गर्भावस्था में दोनों को प्रभावित करती हैं। किडनी, कब्ज, पाचन जैसी चीजों के अलावा शरीर की भीतरी स्थिति एवं वंशानुगत इतिहास भी जटिलता पैदा करता है। इन सबकी जांच महिला रोग विशेषज्ञ से जरूर कराएं।
हर स्थिति में भावी संतान की सेहत को दुरूस्त रखने वाले डॉक्टर से समय-समय पर मिलें, जांच कराएं। सलाह लेकर उस पर चलें। डॉक्टर के अनुसार दवा समय पर लें। उसके अतिरिक्त कोई भी दवा अपने मन से न लें, न दवा को अपने आप से बदलें। भारी काम न कर हल्का-फुल्का काम, व्यायाम कर शरीर को सक्रिय रखें। स्वस्थ रहें। भोजन भारी न होकर हल्का व पौष्टिक लें।