आजकल प्राय: देखने-सुनने में आता है कि परिवार में बुजुर्गों की उपेक्षा बढ़ती ही जा रही है। घर के सदस्य बुजुर्गों का सम्मान नहीं करते, उनका ख्याल नहीं रखते। बुजुर्गों के प्रति वे संकुचित सोच रखने लगे हैं। आखिर क्यों बढ़ रही है बुजुर्गों की इतनी उपेक्षा? क्यों पीने पड़ रहे हैं उन्हें अपमान व तिरस्कार के कड़वे घूंट? बुजुर्गों के प्रति उपेक्षा का सबसे बड़ा कारण है औद्योगीकरण के कारण हुआ संयुक्त परिवारों का विघटन। संयुक्त परिवारों के विघटन से उपजी अपसंस्कृति ने बुजुर्गों को हाशिए पर रख छोड़ा है। संयुक्त परिवार के सभी सदस्य बुजुर्गों का आदर-सम्मान करते थे, लेकिन एकाकी परिवार में सम्मान गायब-सा हो चला है। यदि कोई वृद्ध व्यक्ति आर्थिक रूप से सम्पन्न है तो माना जाता है कि उसका बुढ़ापा अच्छा बीतता है। पहले संयुक्त परिवारों के साथ तो यह बात लागू होती थी पर आज के छोटे और न्यूक्लियस परिवारों में यह बात लागू नहीं होती। छोटे परिवारों के एक या दो बच्चे देश-विदेश में कहीं बसते हैं तब उनके वृद्ध मां-बाप के आर्थिक रूप से सम्पन्न होने के बावजूद उनकी स्थिति अच्छी नहीं होती, क्योंकि वे भावनात्मक रूप से जहां बच्चों से जुडऩा चाहते हैं, वहीं बच्चे उन्हें पैसा भेजकर आर्थिक रूप से सम्पन्नता प्रदान कर अपने कत्र्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं। यह समस्या सिर्फ भारत की ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व की है। नई पीढ़ी का युवा पश्चिमी चकाचौंध में उलझकर बुजुर्गों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से भागना चाहता है। शादी-विवाह होते ही वे अपनी अलग दुनिया बसाकर बुजुर्गों का तिरस्कार कर उन्हें घर से बाहर निकालने तक में नहीं सकुचाते। किसी वृद्ध माता-पिता के सेवानिवृत्त होने पर उन्हें मिलने वाले रुपयों के लिए बेटों में लड़ाई-झगड़े होने लगते हैं और मनमाफिक रकम न मिलने पर वे उनसे नाता ही तोड़ लेते हैं या फिर बुजुर्ग मां-बाप को अपने साथ रखने की झंझट से बचने के लिए बेटे सभी भावनात्मक रिश्तों को भुला बैठते हैं, जिससे बुजुर्गों को किसी वृद्धाश्रम का या भीख मांगने तक का सहारा लेना पड़ता है।