ककड़ी ग्रीष्म ऋतु का फल है। ककड़ी का प्रयोग कच्ची अवस्था में ही किया जाता है। कच्ची ककड़ी में आयोडीन पाया जाता है। ककड़ी बेल पर लगने वाला फल है। गर्मी में पैदा होने वाली ककड़ी स्वास्थ्यवर्द्धक तथा वर्षा व शरद ऋतु की ककड़ी रोगकारक मानी जाती है। ककड़ी स्वाद में मधुर, मूत्राकारक, वातकारक, स्वादिष्ट तथा पित्त का शमन करने वाली होती है। उल्टी, जलन, थकान, प्यास, रक्तविकार, मधुमेह में ककड़ी फायदेमंद हैं। ककड़ी के अत्यधिक सेवन से अजीर्ण होने की शंका रहती है परन्तु भोजन के साथ ककड़ी का सेवन करने से अजीर्ण का शमन होता है। ककड़ी की ही प्रजाति खीरा व कचरी हैं। ककड़ी में खीरे की अपेक्षा जल की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। ककड़ी के बीजों का भी चिकित्सा में प्रयोग किया जाता हे। ककड़ी का रस निकालकर मुंह, हाथ व पैरों पर लेप करने से वे फटते नहीं हैं तथा मुख सौंदर्य की वृद्धि होती है। ककड़ी काटकर खाने या ककड़ी व प्याज का रस मिलाकर पिलाने से शराब का नशा उतर जाता है। बेहोशी में ककड़ी काटकर सुंघाने से बेहोशी दूर होती है। ककड़ी के बीजों को ठण्डाई में पीसकर पीने से ग्रीष्म ऋतु में गर्मीजन्य विकारों से छुटकारा प्राप्त होता है।