गर्मी का मौसम आ जाता है तो समझ लेना चाहिए कि बीमारियों का मौसम आ गया है। नालियों, गटरों, टंकियों, तालाबों, बजबजाते कूड़ा करकटों, अस्पताल वगैरह के आदि के पास रहने वाले लोगों के लिए यह मौसम मुश्किल भरा साबित होता है।
सबसे ज्यादा कष्ट मक्खियों से होता है। एक नन्हीं मक्खी कूड़ा-करकट व बजबजाती गंदगियों से होकर व्यक्ति के आहार तक पहुंचती है, तो बहुत संभव होता है कि हैजा फैल जाए। हैजा उल्टी दस्तों वाली ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति को पस्त कर देती है। सही इलाज व समय पर इलाज नहीं होने से मौत के मुंह में डाल देती है। गर्मी के मौसम में बाजार का भेाजन भी तरोताजा नहीं रह पाता है। अनेक घरों में भी भोजन तरोताजा नहीं रहता है। भोजन को अच्छी तरह ढंक कर रखने की आदत भी बहुत कम लोगों में होती है। मिठाई की दुकानों में मक्खियां मिठाइयों पर मंडराती हैं। बस एक कपड़े से हल्की हवा देकर बीच-बीच में मक्खियों भगाते-उड़ाते रहना दुकानदारों के कत्र्तव्य की इतिश्री मात्र है। पढ़े-लिखे जानकार लोग तो सावधान होते हैं मगर गरीब, जानकारी न रखने वाले लोग जमकर ऐसी मिठाइयों की खरीददारी करते हैं।
ऐसा ही फलों व जूसों की दुकानों में भी देखने को मिलता है।। झुंड की झुंड बिलबिलाती मक्खियां फलों, छिलकों आदि को विषाक्त करती रहती है। बजबजाती नालियों में थमे पानी में, गंदी जगहों में, तालाबों के गंदे पानी में मच्छर अंडे दे-देकर पनपने लगते हैं। मलेरिया, चिकनगुनियां जैसी बीमारियों के वाहक ये मच्छर भी संक्रमण फैलाते रहते हैं। देश की लगभग पचास प्रतिशत आबादी ऐसी है जो मच्छरदानी का इस्तेमाल नहीं कर पाती। आर्थिक तंगी के कारण और कुछ अनभिज्ञता के कारण। और एक महत्वपूर्ण बात यह हे कि मच्छर सुबह शाम काटते ही रहते हैं। क्या व्यक्ति चौबीसों घंटे मच्छरदानी के अंदर कैद रह सकता है। खून के प्यासे मच्छर भी महामारी फैलाते हैं।
तरह तरह की गंदगियों के बीच टायफाइड जैसी बीमारी के रोगाणु भी फैलते रहते हैं। पानी आदि के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर टायफाइड का बुखार पैदा करते हैं। खुशनसीबी है कि आजकल टायफाइड की बहुत सारी दवाइयां आ गई हैं, पहले टायफाइड वाले मरीज अधिसंख्या में ऊपर वाले को प्यारे हो जाते थे। अब भी टायफाइड का समय रहते उचित इलाज नहीं होता है तो मरीज जीवन से हाथ धो बैठता है। ऐसे ही पीलिया के रोगाणु भी शरीर में जाकर व्यक्ति को परेशान कर देते हैं।
गंदगी, मलमूत्र के बीच लोटपोट करने वाले सुअर भी बीमारी को आमंत्रण देते हैं। स्वाइन फ्लू के विषाणु शरीर में पहुंचकर मरीज को परेशान करते हैं। श्वसन तंत्र में सक्रिय हो जाते हैं। मरीज को गंभीर स्थिति में डाल देते हैं। कई तो काल के ग्रास में समा जाते हैं। ऐसे ही न जाने कितनी तरह की बीमारियां गंदगी के चलते तंग करती हैं। महामारी का रूप ले लेती हैं। इसमें सरकार को बहुत कुछ करना चाहिए। ग्रीष्मकालीन महामारियों के लिए, बजट तय करना चाहिए। रोकथाम के लिए कीटनाशकों का छिड़काव, नालियों की साफ-सफाई मरे जानवरों को गड़ाई आदि तमाम तरह के कदम उठाने चाहिए।
गंदगी के आसपास रहने वाले लोगों, भुक्त भोगियों को पहले से ही सावधान हो जाना चाहिए। उनको यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि निरंतर बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में सरकार कारगर काम नहीं कर सकती, कारगर कदम नहीं उठा सकती, इसलिए इनको भी साफ-सफाई का बीड़ा उठाना चाहिए। मोहल्ले कालोनियों के लोग खुद साफ-सफाई कर सकते हैं। घर-बाहर को रोगमुक्त कर सकते हैं या फिर चंदा की उगाही कर, सफाई वालों से काम करवा सकते है। समाज के प्रबुद्ध व जानकार लोग, स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी, गैर सरकारी संगठन आदि झुग्गी-झोपरियों में रहने वालों तक पहुंचकर उन्हें जाग्रत कर सकते हैं। रोकथाम पहली आवश्यकता है, जबकि बीमारी से संघर्ष दूसरी।