आज का युग भाग दौड़ और पैसे का युग है। एक दूसरे से आगे बढऩे एवं ज्यादा प्रदर्शन का युग है। आज से दस साल पहले जो अमीरों के चोंचले थे वे आज हर किसी की जरूरत बन चुके हैं। टेलीफोन, टेलीविजन, कम्प्यूटर लगता है घर-घर की जरूरत बनते जा रहे हैं। हर व्यक्ति चाहता है कि वह आफिस कार पर जाए। इसी चिंता में आदमी का जीवन सरकता जा रहा है। हम ज्यादा जरूरतें बढ़ाते जाते हैं इसी प्रकार हमारी चिंता भी बढ़ती जाती है जिसका आधुनिक नाम टैंशन है। चिंता जीवन को विषमय बना देती है। चिंता जीवन की सबसे बड़ी शत्रु है। चिंता से बचने का यही एक मात्र तरीका है कि हम भविष्य की चिंता न करते हुए वर्तमान जीवन का आनन्द लें। हर रोज एक नया जीवन शुरू करें। किसी संभावित परिस्थिति के लिए अपने आपको सदा तैयार रखें और कुछ इमरजैंसी के लिए संचित धन रखें। चिंता का दाम स्वास्थ्य की गिरावट से देना पड़ता है। दो ही दिन में चेहरा मुरझा जाता है। राई का पहाड़ बनाने की आदत से भी हम अपना जीवन नर्क बना बैठते हैं। हमेशा आशावादी रहने से भी आनन्दमय रहा जा सकता है। सदा निराशामय बातें करने से हमारी जीवन शैली भी वैसी ही सुस्त एवं उदास हो जाती है। बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले कहावत सही मानकर हमें आज की परिधि में रहना चाहिए। तुच्छ बातें दिमाग को दीमक की भांति चाट जाती है। चिंता से पागलपन, दिल का रोग और शरीर क्षीण हो जाता है। अत: इससे बचें। जिन बातों की हम संभावित चिंता करते हैं प्राय: जिन्दगी में आती ही नहीं। अपने काम में व्यस्त रहें। कर्म करें। ईमानदार रहे अपने काम के प्रति, घर के प्रति, बच्चों के प्रति, आप व्यर्थ की चिन्ताओं से बच जाएंगे। जो नहीं है उसका रोना नहीं रोएं जो ईश्वर ने आपको दिया हैं उसका धन्यवाद करें और जीवन खुशी से बिताएं।