मैड्रिड, यूरोपीय संघ के इजराइल के साथ बढ़ते मतभेद के बीच स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज ने कहा कि उनके देश का मंत्रिमंडल मंगलवार को बैठक में फलस्तीन राष्ट्र को मान्यता देगा।
आयरलैंड और नॉर्वे भी बाद में फलस्तीन राष्ट्र को आधिकारिक तौर पर मान्यता देंगे।
दर्जनों देशों ने फलस्तीन राष्ट्र को मान्यता दी है लेकिन किसी बड़े पश्चिमी देश ने ऐसा नहीं किया है।
सांचेज ने मैड्रिड में प्रधानमंत्री आवास के द्वार पर खड़े होकर कहा, ‘‘यह एक ऐतिहासिक फैसला है जिसका एकमात्र लक्ष्य है और यह लक्ष्य इजराइल और फलस्तीन के लोगों को शांति स्थापित करने में मदद करना है।’’
सांचेज के इस भाषण का टेलीविजन पर प्रसारण किया गया।
समाजवादी नेता सांचेज ने पिछले सप्ताह संसद के समक्ष अपने देश के फैसले की घोषणा की थी। उन्होंने गाजा में संघर्ष विराम और मान्यता के लिए समर्थन जुटाने के मकसद से यूरोपीय और पश्चिम एशियाई देशों का दौरा किया था।
यूरोपीय संघ के सदस्य आयरलैंड और स्पेन द्वारा फलस्तीन राष्ट्र को राजनयिक मान्यता देने की पूर्व संध्या पर यूरोपीय संघ और इजराइल के आपसी संबंध सोमवार को रसातल में पहुंच गए।
मैड्रिड का कहना है कि दक्षिणी गाजा शहर रफह में लगातार हमलों के लिए इजराइल के खिलाफ प्रतिबंधों पर विचार किया जाना चाहिए।
इजराइली विदेश मंत्री इजराइल काट्ज ने स्पेन से कहा है कि यरूशलम में उसके वाणिज्य दूतावास को फलस्तीनियों की मदद करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल ने अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय का पुरजोर समर्थन किया है जिसके अभियोजक इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और हमास के नेताओं सहित अन्य के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट का अनुरोध कर रहे हैं।
नॉर्वे ने फलस्तीन राष्ट्र को औपचारिक मान्यता देने से पहले सप्ताहांत में फलस्तीन सरकार को राजनयिक दस्तावेज़ सौंपे।
सांचेज ने कहा कि फलस्तीन राष्ट्र को मान्यता देने का निर्णय इजराइल समेत किसी के भी खिलाफ नहीं है।
उन्होंने गाजा में स्थायी संघर्ष विराम, मानवीय सहायता सामग्री की आपूर्ति बढ़ाने और पिछले साल सात अक्टूबर को हमला करने के बाद हमास द्वारा बंधक बनाए गए लोगों को रिहा किए जाने का आह्वान किया।
सांचेज ने फलस्तीनी राष्ट्रीय प्राधिकरण द्वारा शासित एक ऐसे राष्ट्र की कल्पना की जो एक गलियारे के माध्यम से वेस्ट बैंक और गाजा को पूर्वी यरुशलम से जोड़े।
उन्होंने कहा, ‘‘हम 1967 की सीमा रेखाओं में उन बदलावों को मान्यता नहीं देंगे जिन्हें लेकर पक्षकारों में सहमति नहीं हो।’’