नयी दिल्ली, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व राजनयिक मणिशंकर अय्यर ने कहा है कि पहले भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) को ‘‘मैकाले की औलाद’’ वाली ‘‘सवर्ण जाति’ की सेवा माना जाता था, लेकिन अब यह ज्यादा लोकतांत्रिक हो गई है।
उन्होंने लेखक कल्लोल भट्टाचार्जी की पुस्तक ‘‘नेहरूज़ फर्स्ट रिक्रूट’’ के विमोचन के मौके यह टिप्पणी की।
अय्यर ने 1962 के भारत-चीन युद्ध को ‘‘कथित चीनी आक्रमण” के रूप में भी संदर्भित किया, लेकिन जल्द ही ‘कथित’ शब्द के लिए उन्होंने माफी मांग ली।
उन्होंने मंगलवार देर रात एक संक्षिप्त बयान में कहा, ‘‘आज शाम ‘फॉरेन करस्पॉंडेंट्स क्लब’ में ‘चीनी आक्रमण’ से पहले गलती से ‘कथित’ शब्द का इस्तेमाल करने के लिए मैं पूरी तरह से माफी मांगता हूं।’’
उनकी इस शब्दावली ने अब एक नए विवाद को जन्म दे दिया है और कांग्रेस ने खुद को अय्यर के बयान से अलग कर लिया है।
अय्यर ने पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कहा, ‘‘मेरी पीढ़ी तक और यहां तक कि 21वीं सदी में भी आईएफएस एक सवर्ण जाति की सेवा थी। यह ‘मैकाले की औलाद’ वाली सेवा थी। अब यह अधिक लोकतांत्रिक हो रही है और इसमें बहुत सारे हिंदी भाषी हैं… हमारी विदेश सेवा में पूरे देश का समावेश नजर आ रहा है और और मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छी बात है।’’
लॉर्ड थॉमस बबिंगटन मैकाले को भारत में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है।
अय्यर ने एक आईएफएस अधिकारी का उदाहरण दिया, जिनसे वह इस्तांबुल की अपनी एक यात्रा के दौरान मिले थे। उनके अनुसार, यह अधिकारी शुरुआत में केवल हिंदी भाषा में पारंगत थे, लेकिन एक साल के भीतर अन्य भाषाओं में पारंगत हो गए।
उनका कहना था, ‘‘इस्तांबुल की यात्रा के दौरान मैं एक ऐसे व्यक्ति से बहुत प्रभावित हुआ जो मुझसे केवल हिंदी में बात कर सकता था। लेकिन जब मैं अगले वर्ष फिर से इस्तांबुल पहुंचा, तो वही सज्जन धाराप्रवाह अंग्रेजी और उससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि धाराप्रवाह तुर्की भाषा बोलते थे।’’
अय्यर 1963 में आईएफएस में शामिल हुए और 1982 से 1983 तक विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में कार्य किया।
उनका कहना था कि विदेश सेवा अब अपनी भर्तियों को लेकर पूर्वाग्रहों से आगे बढ़ गई है।