वन प्रबंधन के लिए सही योजनाएं नहीं बनाई गई तो हमें भयंकर परिणाम झेलने होंगे

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गर्मियां शुरू होते ही उत्तराखंड के जंगल धधकने लगे हैं. एक नवंबर, 2023 से 22 अप्रैल 2024 तक वनाग्नि की 431 घटनाएं दर्ज  हो चुकी हैं और इनसे 516.92 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। खास बात यह है कि 31 मार्च तक जंगलों में आग लगने की सिर्फ 34 घटनाएं हुई थीं और इनसे 35.25 हेक्टेयर वन क्षेत्र ही प्रभावित हुआ था लेकिन अप्रैल के 22 दिन में वनाग्नि और उससे होने वाला नुकसान करीब 13 गुना बढ़ गया।

दरअसल जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का असर इस साल की शुरुआत में ही दिखने लगा है। देश के बड़े हिस्से में तापमान औसत से अधिक दर्ज किया गया है और इस बार तीन मार्च से ही लू या हीटवेव का प्रकोप शुरू हो गया है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा 19 अप्रैल को जारी अखिल भारतीय मौसम पूर्वानुमान के अनुसार 18 अप्रैल को भारत के 60 प्रतिशत से अधिक या 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक दर्ज किया गया। 2023 की तुलना में इस बार हीटवेव ने देश में 10 दिन पहले दस्तक दी है।  मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार मार्च 2023 तक, तीन राज्यों में लू या हीटवेव का सितम रहा। तीन मार्च से 18 अप्रैल, 2024  तक अब यह संख्या बढ़ कर 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक पहुंच गई जिन्हें गर्म हवाओं ने अपने आगोश में ले लिया था।भारत में लू या हीटवेव इस सप्ताह सुर्खियां बना रहा है, 16 अप्रैल को कथित तौर पर हीटस्ट्रोक से 13 लोगों की मौत हो गई। 20  अप्रैल को प्रकाशित, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक अध्ययन ने बताया कि देश के 90 प्रतिशत लोगों को गर्मी के कारण आजीविका क्षमता, खाद्यान्न उपज, वेक्टर जनित रोग फैलने और शहरी स्थिरता में नुकसान होने का खतरा है।

यहां बताते चले कि जब किसी स्टेशन का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय क्षेत्रों में कम से कम 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है तो उसे हीटवेव घोषित किया जाता है। कर्नाटक में साल का पहला लू का प्रकोप तीन मार्च को दर्ज किया गया था। नौ मार्च तक राज्य में चार दिन लू का कहर दर्ज किया गया था। गोवा में लू के चार दिन और गुजरात में दो दिन रहे। महीने की आखिरी लू 12 मार्च  को दर्ज किया गया था। देश में 12 अप्रैल, को पश्चिम बंगाल में गंगा के अलग-अलग इलाकों में लू ने दस्तक दी। आंध्र प्रदेश, बिहार, चंडीगढ़, हरियाणा, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब और पश्चिम बंगाल में 12 से 18 अप्रैल तक लू का प्रकोप दर्ज किया गया। वर्तमान स्थितियों को देखते हुए इससे निपटने के लिए तैयारी बहुत जरूरी है, विशेष रूप से क्योंकि लू के सितम के जारी रहने के आसार हैं और यह लोगों के स्वास्थ्य पर असर डाल सकती है।मौसम विभाग द्वारा 27  अप्रैल, 2024  तक लू या लू जैसी चरम स्थितियों पर कम से कम आठ राज्यों में चेतावनी जारी की गई है। बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश में 30  अप्रैल, 2024  तक इन चरम स्थितियों के जारी रहने की आशंका जताई गई है।लोगों के स्वास्थ्य पर लू के प्रभाव को स्थापित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली ऐसी चरम घटनाएं घातक भी हैं और इनसे निपटने के लिए पर्याप्त तैयारी की जरूरत है।

देश के कई राज्यों में जंगल में आग लगने से हजारों हैक्टेयर का जंगल तबाह हो गया, वहीं वन्य संपदा और वन्य जीवों के जीवन पर खतरा मंडराने लगा है। जंगलों से उठी आग की लपटों ने जम्मू, उत्तराखंड, हिमाचल, राजस्थान, गुजरात, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड को आग की तपती भट्ठी बना दिया है। उत्तराखंड और हिमाचल की स्थिति चीड़ की पत्तियों के कारण काफी विकराल है। 70 के दशक में ही पर्वतीय राज्यों में चीड़ उगाने के अभियान ने एक तरह का जंगल राज पैदा कर दिया। चीड़ उगाने की मुहिम में पर्वतीय राज्यों में न केवल चारागाहें छीन ली बल्कि मनुष्य को भी वनों से दूर कर दिया। वनाग्नि से हिमालीय राज्यों में कहर बरप रहा है, जहां तापमान सामान्य से दो से लेकर चार डिग्री तक बढ़ गया है। आप कल्पना कर सकते हैं कि बर्फ के सागर और एशिया की जलवायु के नियंत्रक हिमालय की क्या दशा होगी?

तापमान बढ़ने से जंगलों में सूखे पत्ते और टहनियां ईंधन का काम करती हैं। एक छोटी सी चिंगारी हीट का काम करती है। ऐसे में अगर तेज हवायें चल रही हों तो यह आग पूरे जंगल को तबाह कर देती है। इंसानों की लापरवाही के चलते भी आगजनी की घटनायें बढ़ रही हैं। जम्मू के रियासी जिले के जंगल, हिमाचल के पार्वती घाटी में, राजस्थान के अलवर के सरिस्का टाइगर रिजर्व, उत्तराखंड में बमराडी से लेकर सीमार के जंगलों में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों में आग से प्रकृति तबाह हो चुकी है। गर्मियों में तापमान के कहर ढाने के कारणों में ग्लोबल वामिर्जा तो है ही लेकिन भारत में बढ़ते तापमान का कारण वनों का क्षरण भी है। यही कारण है कि देहरादून, मंसूरी, पंतनगर, रुड़की का अधिकतम तापमान 2 से लेकर 4 डिग्री तक अधिक दर्ज किया गया। पिछले दिनों मुक्तेश्वर और मसूरी जैसे ठंडे स्थानों पर न्यूनतम तापमान सामान्य से 4 डिग्री अधिक दर्ज किया  गया। वनाग्नि की आंच उत्तराखंड हिमालय के लगभग 14 ग्लेशियरों तक पहुंच रही है।

वन्य जीवन अपने आप में एक दुनिया होता है। वनों में जीवधारियों को पर्याप्त भोजन के साथ-साथ सुरक्षित आश्रय भी मिल जाता है इसलिए वन सभी तरह के जीवधारियों का प्राकृतिक आवास होते हैं। तमाम वनस्पतियां और वन्य जीव एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। अब हालात यह है कि जंगलों की आग वनस्पति  और वन्य जीवों का अस्तित्व राख में बदल रही है। बाघ और हिरन जैसे वन्य जीवन तो जान बचाकर सुरक्षित क्षेत्र की ओर भाग सकते हैं। तभी तो बाघों और मनुष्य के लिए खतरनाक जीवों को शहरों की सड़कों पर घूमते देखा जाता है। मगर उन निरीह जीवों और कीट-पतंगों का क्या हाल होगा जो आग की गति से भाग भी नहीं सकते। जंगलों की आग मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन चुकी है। इस आग के धुएं में अलग-अलग तरह के कण होते हैं जिनमें कार्बन मोनोआक्साइड भी शामिल है। स्थिति बहुत चिन्ताजनक है। ब्लैक कार्बन ग्लेशियरों को लगातार नुक्सान पहुंचा रहे हैं। ग्लेशियर जब पिघलेंगे तो इस पर जमा ब्लैक कार्बन भी बहेगा. इससे जल प्रदूषित हो जाएगा। यह विडम्बना ही है कि किसी पेड़ के कटने से वन विभाग आम आदमी का जीना हराम कर देता है।

 

कौन नहीं जानता कि राज्यों में अवैध खनन माफिया की तरह वन माफिया भी सक्रिय हैं। हर बार जंगल बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्य योजना बनाकर जंगल को बचाने का ढिंढोरा पीटा  जाता है लेकिन आग से बचाने के लिए जंगल की प्रवृत्ति को बदलने का कोई प्रयास नहीं किया जाता। मानव और व्यवस्था सब तमाशबीन बनकर देख रहे हैं। मौसम परिवर्तन के चक्र ने अपने पंजे भयंकर रूप से फैला दिए हैं। जंगल अपनी ही हवाओं को सुरक्षित नहीं रख पा रहा। पंजाब और हरियाणा जंगलों की आग से बचे हुए हैं क्योंकि पंजाब में 3.65 प्रतिशत और हरियाणा में 3.53 प्रतिशत जमीन पर ही जंगल है। अगर मनुष्य को भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं से अपना बचाव करना है तो उसे प्रकृति से खिलवाड़ करना बंद करना होगा और जंगलों को आग से बचाने के लिए नई योजनाएं बनानी होंगी। वन प्रबंधन के लिए सही योजनाएं नहीं बनाई गई तो हमें भयंकर परिणाम झेलने होंगे।