भाजपा शासन के एक दशक बाद भी हिंदू खतरे में हैं तो पार्टी को सत्ता में नहीं लौटना चाहिए: आजाद
Focus News 1 May 2024कोलकाता, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के उम्मीदवार और पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी कीर्ति आजाद ने भाजपा के हिंदू राष्ट्रवाद के मुद्दे पर कहा कि अगर भगवा पार्टी बीते दस साल से सत्ता में होने के बावजूद कहती है कि “हिंदू खतरे में” हैं तो इससे पार्टी की सत्ता में वापसी की आवश्यकता के बारे में संदेह होता है।
कभी भाजपा में रहे कीर्ति आजाद इस बार पश्चिम बंगाल की बर्धमान-दुर्गापुर लोकसभा सीट से टीएमसी उम्मीदवार हैं। पूर्व सांसद ने यह भी कहा कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मुद्दा “चुनावों को सांप्रदायिक रंग देने की एक चाल” है क्योंकि जनता के सामने पेश करने के लिए भाजपा के पास “प्रभावशाली रिपोर्ट कार्ड का अभाव” है।
पीटीआई के साथ एक साक्षात्कार में, आजाद ने भारत की विविधता पर प्रकाश डाला और इतने विविध सांस्कृतिक परिदृश्य में यूसीसी को लागू करने की व्यवहार्यता के खिलाफ तर्क दिया।
उन्होंने कहा “मुगल शासन के दौरान, हिंदू खतरे में नहीं थे; ब्रिटिश शासन के दौरान वे संकट में नहीं थे; आजादी के बाद कई सरकारों के तहत भी, हिंदुओं को कभी भी किसी खतरे का सामना नहीं करना पड़ा। पिछले 10 वर्षों से एक हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी सत्ता में है तो हिंदू अचानक खतरे में कैसे आ गए?”
आजाद ने कहा, अगर कोई हिंदू पार्टी हिंदुओं को नहीं बचा सकती तो उसे सत्ता से बाहर कर देना चाहिए।
उन्होंने कहा, “सच्चाई यह है कि भाजपा के पास अपने 10 साल के रिपोर्ट कार्ड में लोगों को दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है। इसलिए उन्होंने ‘हिंदू खतरे में हैं’ का राग अलापना शुरू किया और अन्य समुदायों के बारे में भय का माहौल पैदा किया।”
1983 की विश्व कप विजेता क्रिकेट टीम के सदस्य आज़ाद ने कहा कि उस ऐतिहासिक अभियान में टीम की रीढ़ सांप्रदायिक सद्भाव थी।
उन्होंने कहा ‘‘जब हमने कप जीता, तो हमारी टीम में हिंदू खिलाड़ी थे, सैयद किरमानी के रूप में एक मुस्लिम, बलविंदर संधू के रूप में एक सिख, और एक ईसाई – रोजर बिन्नी टीम में थे। हम सभी ने मिलकर संघर्ष किया और भारत के लिए पहला विश्व कप जीता। इन सभी धर्म के लोगों ने मिलकर देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। और भाजपा हिंदुओं के ख़तरे में होने की बात करती है।”
आज़ाद ने कई चुनाव अभियानों में वादा करने के बावजूद अपने कार्यकाल के दौरान यूसीसी को लागू करने में भाजपा की विफलता पर सवाल उठाया। उन्होंने यूसीसी के लिए भाजपा के प्रयास को राजनीति से प्रेरित और भारत के विविध सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने में अव्यावहारिक बताया।
उन्होंने कहा “भाजपा समान नागरिक संहिता लाने की बात शुरू से कहती रही है। उन्होंने यह वादा 1998 और 1999 में भी किया था। 2014 में भी यूसीसी उनके चुनावी एजेंडे में था। पिछले दशक में जब भाजपा के पास सरकार में पूर्ण बहुमत था तो यूसीसी को लागू करने से उसे किसने रोका? यह राजनीतिक बयानबाजी से ज्यादा कुछ नहीं है।”
आजाद ने जोर देकर कहा कि यूसीसी को जर्मनी जैसे देशों में लागू किया जा सकता है जिसका गठन एक ही नस्ल द्वारा किया गया था लेकिन भारत जैसे देशों में इसे लागू नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा, “यहां विभिन्न समुदायों, पृष्ठभूमियों और धर्मों के लोग हैं। आप देश के किसी भी हिस्से में जाएं, आपके त्योहार अलग-अलग तरीकों से मनाए जाएंगे।”
भाजपा ने अपने अभियान में लगातार तीसरी बार सत्ता में आने पर देश में यूसीसी लागू करने का वादा किया है।
भगवा को हिंदू धर्म से जोड़ने की भाजपा की कोशिशों पर आजाद ने पलटवार करते हुए कहा, “सनातन हिंदू धर्म में कई रंग हैं… लाल, नीला और काला से लेकर भगवा तक। भगवा को एकमात्र रंग के रूप में पेश करने की भाजपा की कोशिश बेतुकी है।”
विरासत कानून पर कांग्रेस की भाजपा द्वारा आलोचना पर आज़ाद ने इसे “चुनावों को सांप्रदायिक बनाने की एक और चाल” और “मुद्दों से ध्यान भटकाने” की कोशिश करार दिया।
राजस्थान में हाल ही में एक चुनावी रैली के दौरान, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई, तो वह लोगों की संपत्ति को “अधिक बच्चे पैदा करने वाले लोगों” और “घुसपैठियों” को वितरित करेगी।
आप और टीएमसी के राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी मोर्चे का हिस्सा होने के बावजूद पंजाब और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (‘इंडिया’) को तवज्जो नहीं मिलने के बारे में पूर्व क्रिकेटर ने कहा, “राज्य स्तरीय राजनीतिक समीकरणों के कारण कुछ राज्यों में जमीनी स्तर पर गठबंधन संभव नहीं होते।’’
उन्होंने कहा “हो सकता है कि कुछ लोग गठबंधन से बाहर चले गए हों। लेकिन अगर भाजपा 200 सीटें हासिल नहीं कर पाती, तो आप देखेंगे कि नीतीश कुमार और अन्य नेता पीछे हटेंगे। हमने ऐसा पहले भी देखा है और ऐसा दोबारा भी हो सकता है।” उन्होंने कहा।
बहरहाल, आज़ाद ने राज्य में विपक्षी गठबंधन के फलीभूत नहीं होने के लिए पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को दोषी ठहराया।
उन्होंने कहा “बंगाल में ऐसा नहीं हुआ क्योंकि कांग्रेस ने इसमें देरी की। आप अपनी सीटों की संख्या या वोटों के प्रतिशत के आधार पर सीटों का बंटवारा करते हैं। बंगाल में कांग्रेस के पास दो सांसद और महज 3.8 फीसदी वोट हैं। यहां उनका कोई विधायक नहीं है। फिर भी उन्होंने सीट-बंटवारे पर चर्चा में शामिल होने का फैसला किया।’’
उन्होंने इस बात से असहमति जताई कि भाजपा के नेतृत्व वाला राजग चुनाव में बेहतर स्थिति में है। उन्होंने कहा “भाजपा ने अन्य दलों से उम्मीदवार उधार लिए हैं। वे 400 से अधिक सीटें जीतने की बात कर रहे हैं और आश्चर्य की बात है कि वे इतनी सीटों पर चुनाव भी नहीं लड़ रहे हैं।”
बिहार के दरभंगा निर्वाचन क्षेत्र से पूर्व भाजपा सांसद और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आज़ाद के बेटे आज़ाद 90 के दशक के अंत में अटल बिहारी वाजपेयी-लालकृष्ण आडवाणी के दौर में भाजपा पार्टी में शामिल हुए थे।
तीन बार के सांसद आजाद ने बाद में वर्तमान नेतृत्व के साथ मतभेदों के कारण पार्टी छोड़ दी और 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए। वह 2021 में टीएमसी में चले गए और उन्हें 2022 में गोवा विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का प्रभारी बनाया गया।
बर्धमान-दुर्गापुर सीट पर आजाद का मुकाबला भाजपा के दिलीप घोष और वाम-कांग्रेस गठबंधन की उम्मीदवार सुकृति घोषाल से है।
भाजपा द्वारा आजाद को बाहरी बताए जाने के बारे में उन्होंने कहा, “अगर मैं बाहरी हूं तो भाजपा को पहले यह जवाब देना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी ने 2014 में वाराणसी से चुनाव क्यों लड़ा था? तब तो वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे।”
उन्होंने कहा, “एक भारतीय होने के नाते मैं देश के किसी भी हिस्से से चुनाव लड़ सकता हूं।”