नन्हीं सी सान्या जिसने अभी ठीक से बोलना भी नहीं सीखा था टीवी स्क्रीन पर हीरोइन के गिर जाने और आंसू बहाने पर द्रवित हो उठी। उसने मासूम तुतलाती बोली में मम्मी से कहा ‘मम्मी, आंती दिर दई आंछू भी आ दए। अब्बी तुम ठीत तल दोदी ना’ फिर वह हीरोइन की ओर मुखातिब होकर बोली ”अत्थे बत्ते लोते नहीं। अब्बी मेली मम्मी ठीत कल देगी, तुप्प हो दाओ आंती।’
संवेदना मनुष्य का ईश्वरप्रदत्त ऐसा गुण है जो बचपन से उजागर होने लगता है। दूसरों की तकलीफ से खुद पीड़ा महसूस करते हुए धैर्य बंधाना हर मनुष्य का कर्तव्य है। लेकिन इसका पालन सब नहीं करते क्योंकि यह जज्बा सब में बराबर नहीं होता। नन्हीं सान्या की तरह किसी को गिरते या आंसू बहाते देख हर बच्चा रिएक्ट नहीं करेगा। सान्या जैसे बच्चे पर भला किसे प्यार नहीं आएगा। संवेदना चरित्र का एक बहुत ही प्यारा गुण है। संवेदना रखने वाला व्यक्ति किसी का अहित नहींं करेगा। उसके भीतर बसा यह गुण उसे ऐसा करने से रोकेगा।
दु:ख की अति, जहां संवेदना बढ़ाती है कभी-कभी वहीं इससे संवेदनाएं कुम्हलाकर मर भी जाती हैं। जैसा डॉक्टर जैन के साथ हुआ। वे बचपन में अत्यंत भावुक संवेदनशील थे लेकिन अनाथ और गरीब होने के कारण उन्हें जमाने से ठोकरें और दुत्कार इतनी मिली कि दुनिया को लेकर उनका मन कड़वाहटों से भर गया और सौभाग्य से वे जब नामी न्यूरोसर्जन बन गए तो उन्होंने दुनिया से अपने साथ हुए दुर्व्यवहार का बदला लेने की गरज से गरीब, अमीर जो भी मरीज उनके पास ठीक होने की उम्मीद लेकर आता उसे आर्थिक रूप से निचोडऩा शुरू कर दिया।
इससे ठीक विपरीत ”रैग्स टू रीचेज” की कहानी दोहराता अमरनाथ चौरसिया जब लाखों-करोड़ों में खेलने लगा तब भी वह अपनी गरीबी के दिन नहीं भूला। भूख, गरीबी क्या होती है, छोटी-छोटीसी इच्छाओं को मारने का दर्द, पग-पग पर अपमानित होने का दंश कैसा होता है? यह जानने के पश्चात वह गरीब, लाचारों के प्रति अत्यंत संवेदनशील हो गया था। अपनी हैसियत के मुताबिक उसने गरीब, लाचार लोगों की भलाई के लिए अनेक कार्य किए। मुफ्त इलाज के लिए अस्पताल, उनके खाने का प्रबंध, गरीब बच्चों के लिए पाठशाला, गरीब विधवाओं के लिए विधवाश्रम खोले।
गर्ज यह कि दुखियों का दु:ख बांटना ही बाद में उसने अपना जीवन ध्येय बना लिया। ये सब उनके प्रति संवेदना के कारण ही संभव हुआ।
संवेदना का जज्बा मन में होने पर ही कोई दूसरों की पीड़ा और सुख को महसूस कर सकता है। इन भावों की अभिव्यक्ति मानवता का सर्वोच्च उदाहरण है।
खलनायकी का आचरण बाहरी रूप से तृप्त कर सकता है लेकिन आंतरिक सच्ची खुशी संवेदना ही दिला सकती है। किसी रोते को हंसाकर जो संतोष मिलता है वह किसी दूसरे को पीड़ा पहुंचाकर कभी नहीं मिलेगा। संवेदना का मन में उदय आपके व्यक्तित्व व विचारों में निखार लाकर उन्हें परिपक्व और समृद्घ कर उनमें संपूर्णता का निरूपण करता है। धर्म या जातिगत भेदभाव से परे यह जज्बा मनुष्य को केवल मनुष्य (इंसानियत) की नजर से देखता-परखता है।
हर परिपक्व समझदार व्यक्ति यह जानता है कि बाहरी सौंदर्य क्षणभंगुर है। शाश्वत है आंतरिक सौंदर्य जो कभी नहीं मिटता।
आंतरिक सौंदर्य बाहरी सौंदर्य को तेज प्रदान करता है। आंतरिक सौंदर्य के बिना बाहरी सौंदर्य एकदम निस्तेज और फीका हो उठता है। यह महत्वपूर्ण है कि ईश्वर ने हमें बनाया लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है हम उसको कैसे गुणों से सजाते हैं। ‘संवेदना’वह सुंदर गुण है जो गुलाब की तरह महकता हुआ हमारे अपने और जिनसे हम संवेदना रखते हैं, उनके जीवन को सदा महकाए रखता है।