क्या मालदीव और भारत में फिर हो सकती है दोस्ती ?

भारत के साथ तनाव के चलते मालदीव जाने वाले पर्यटकों में लगातार कमी आई है । इसका असर द्वीपसमूह देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है । इसे देखते हुए मालदीव के प्रधानमंत्री ने सोमवार को भारतीयों से उसकी इकनोमी में योगदान देने की अपील की है । पी टी आई को दिए एक इंटरव्यू में इब्राहीम फैजल ने अपने देश और भारत के बीच एतिहासिक संबंधो पर जोर दिया है । उन्होंने कहा ‘ हमारा इतिहास रहा है । हमारी नई सरकार भारत के साथ मिल कर काम करना चाहती है । हमने हमेशा शांति और मैत्रीपूर्ण माहौल को बढ़ावा दिया है । यहाँ के लोग और सरकार भारतीयों के आगमन को गर्मजोशी से स्वागत करेंगे ।  

गौरतलब है की भारत-मालदीव के बीच का संबंध राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू की नई सरकार के सत्ता संभालने के समय से उथल-पुथल भरे हालात का सामना कर रहा है। भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर मालदीव के जूनियर मंत्रियों की विवादित और अपमानजनक टिप्पणियां, इसके जवाब में भारत में सोशल मीडिया पर ‘बायकॉट मालदीव’ कैंपेन का ट्रेंड होना, राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू की तरफ से परोक्ष रूप से ये फटकार लगाना कि ‘मालदीव एक छोटा द्वीपीय देश हो सकता है लेकिन वो किसी को इस बात की इजाज़त नहीं देता कि मालदीव पर धौंस जमाए’- इन सभी बातों ने दिखाया कि कैसे एक समय का मज़बूत द्विपक्षीय संबंध तेज़ी से सार्वजनिक तौर पर कूटनीतिक हार में बदल सकता है।

भारत अपने पड़ोस के कई देशों में चुनावी अभियानों के निशाने पर रहा है जो आख़िर में ख़त्म हो गया। अंतरराष्ट्रीय संबंधों और विदेश नीति का परिदृश्य निर्णायक रूप से बदल रहा है। छोटे देशों के सामने भागीदारी के लिए कई नए विकल्प और अवसर पेश हो रहे हैं जिन पर अब ऐतिहासिक संबंधों और भौगोलिक नज़दीकी का दबदबा नहीं है। इसके नतीजतन विदेश नीति में यू-टर्न और झुकाव भविष्य में अपवाद की तुलना में कसौटी बनने जा रहा है।

हालांकि दुनिया भर में संबंधों और गठबंधनों में अस्थिरता के बावजूद द्विपक्षीय समीकरणों के कुछ पहलू, विशेष रूप से भारत और मालदीव जैसे पुराने साझेदारों के बीच, नीति में निरंतरता दिखाएंगे। चुनाव अभियान के दौरान की बयानबाज़ी, जो उत्साही और कभी-कभी तीखी भी होती है, सरकार के सत्ता संभालने और कामकाज शुरू करने के साथ संयमित दृष्टिकोण में बदल जाती है।

ये चुनावी राजनीति है। भारत अपने पड़ोस के कई देशों में चुनावी अभियानों के निशाने पर रहा है जो आख़िर में ख़त्म हो गया। जैसे ही चुनाव पीछे छूटता है, वैसे ही गवर्नेंस का काम महत्वपूर्ण हो जाता है और फिर भारत के पड़ोसी अपनी राजनीतिक अर्थव्यवस्था में भारत के द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका को पहचानते हैं। इसके साथ-साथ वो अपने पास मौजूद विकल्पों को भी पहचानते हैं और फिर वो विकल्पों को तौलना और अपना दांव लगाना शुरू करते हैं।

मालदीव में राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू की नई सरकार बिल्कुल यही करने की प्रक्रिया में है। जैसे-जैसे मुइज़्ज़ू सरकार भारत पर मालदीव की निर्भरता कम करने के लिए संभावित विकल्पों की तलाश कर रही है । जैसे कि तुर्किए से ड्रोन की ख़रीदारी के लिए समझौता, संयुक्त अरब अमीरात  और थाईलैंड के अस्पतालों को कवर करने वाला स्वास्थ्य बीमा, वैसे-वैसे मालदीव भारत के साथ संबंधों को फिर से सामान्य बनाने के लिए भी कदम उठा रहा है। मुश्किल हालात में कुछ अच्छी बातें भी हैं जो भविष्य में दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच नज़दीकी भागीदारी और सहयोग के लिए संभावना को उजागर करती हैं।

पिछले साल नवंबर में कार्यभार संभालने के बाद मीडिया के साथ अपने पहले इंटरव्यू में राष्ट्रपति मुइज़्जू ने बयान दिया था  कि भारत मालदीव का सबसे करीबी सहयोगी बना रहेगा। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इसको लेकर कोई सवाल नहीं है। मुइज़्ज़ू ने कहा कि ‘विवाद होने की इकलौती वजह मालदीव में भारतीय सेना की मौजूदगी थी।’ उन्होंने ये भी जोड़ा कि ‘भारत ने भी इस बात को स्वीकार किया है और सैन्य कर्मियों को वापस लेने पर सहमत हो गया है।’ लगता है कि अपने पहले के कड़े रुख के विपरीत मुइज़्ज़ू ने एक समाधान वाला सुर अपना लिया है जब उन्होंने ये कहा “चर्चा और बातचीत के ज़रिए सब कुछ हासिल किया जा सकता है। मेरा तो यही मानना है।”

राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू की टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए उच्च-स्तरीय कोर ग्रुप की तीसरी बैठक को भारत और मालदीव के बीच संबंधों में सुधार की तरफ एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए। ये बैठक 17 मार्च 2024 को माले में हुई। वैसे तो दोनों देशों की सरकारों ने भारतीय सैन्य कर्मियों की पहले तैनाती और मौजूदा वापसी को अलग-अलग नज़रियों से देखा लेकिन अब ये मुद्दा विवाद का विषय नहीं रह गया है।दोनों देशों की सरकारों ने भारतीय सैन्य कर्मियों की पहले तैनाती और मौजूदा वापसी को अलग-अलग नज़रियों से देखा लेकिन अब ये मुद्दा विवाद का विषय नहीं रह गया है।

एविएशन प्लैटफॉर्म पर तैनात भारतीय कर्मियों की वापसी मुइज़्ज़ू के चुनाव अभियान का एक प्रमुख वादा था। राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने एक इंटरव्यू में बयान दिया कि एक समाधान तक पहुंचा जा चुका है। राष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि “सबसे महत्वपूर्ण बात सेना का नहीं होना है। दूसरा सर्वश्रेष्ठ विकल्प है कि मालदीव के लोग उनका संचालन करें। इन दोनों विकल्पों के बीच समझौते के रूप में एक समाधान पर हम पहुंच गए हैं।”

तीसरी मीटिंग के बाद मालदीव के विदेश मंत्रालय ने ये बयान जारी किया कि “दोनों पक्षों ने मालदीव में एविएशन प्लैटफॉर्म पर सैन्य कर्मियों को असैनिक कर्मचारियों से बदलने की दिशा में प्रगति पर गौर किया।” महत्वपूर्ण बात ये है कि ऐसी ख़बरें आईं कि उच्च-स्तरीय कोर ग्रुप की तीसरी बैठक में भारत और मालदीव ने कई दूसरे मुद्दों पर भी चर्चा की। इनमें मौजूदा विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेज़ी, नियमित रूप से साझा निगरानी की व्यवस्था, द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को बढ़ाने की कोशिशें और क्षमता निर्माण एवं यात्रा के माध्यम से लोगों के बीच आपसी संपर्क में बढ़ोतरी शामिल हैं। ये दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग में व्यापक विस्तार को उजागर करता है।

भारत-मालदीव-श्रीलंका के बीच त्रिपक्षीय ‘दोस्ती 16’ कोस्ट गार्ड अभ्यास, जो कि मार्च 2024 में हुआ और जिसकी मेज़बानी मालदीव ने की, एक और संकेत है कि नई सरकार मतभेदों को अलग रखने के लिए उत्सुक है और द्विपक्षीय रिश्तों को आगे ले जाना चाहती है। दोस्ती 16 के अतिरिक्त मालदीव भारत के द्विवार्षिक मिलन नौसेना अभ्यास में भी शामिल हुआ जो 19-27 फरवरी 2024 के बीच विशाखापट्टनम में आयोजित हुआ। 2023 के आख़िर में मॉरीशस में आयोजित सालाना कोलंबो सिक्युरिटी कॉन्क्लेव से बाहर रहना, ये कहकर भारत के साथ हाइड्रोग्राफी समझौते को रद्द करना कि “मालदीव के समुद्र के बारे में सूचना पर किसी दूसरे देश का अधिकार नहीं होना चाहिए” और “ये फैसला देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा करने के लिए लिया गया” और शी जिनपिंग की ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव (GSI) के साथ-साथ मालदीव-चीन रक्षा समझौते का समर्थन करना- ये सभी इस बात के संकेत हैं कि मालदीव भारत से दूर हो रहा है और चीन की तरफ झुक रहा है। हालांकि मालदीव के द्वारा दोस्ती अभ्यास की मेज़बानी करना क्षेत्रीय सहयोग की भावना और साझा समुद्री सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं के जारी रहने को दिखाता है। दोस्ती 16 की शुरुआत मालदीव के रक्षा मंत्री मोहम्मद ग़सन मॉमून के द्वारा की गई और उन्होंने “साझा समुद्री सुरक्षा की चिंताओं का समाधान करने के लिए मालदीव, भारत और श्रीलंका के कोस्ट गार्ड के बीच अधिक सहयोग के महत्व” पर ज़ोर दिया।

वैसे तो राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू चुनाव अभियान के दौरान अपनी बयानबाज़ी की तुलना में भारत के साथ मालदीव के द्विपक्षीय संबंध सामान्य होने का संकेत दे रहे हैं लेकिन भारत पर अपने देश की निर्भरता कम करने का उनका व्यापक लक्ष्य अभी भी बना हुआ है। मुइज़्ज़ू सक्रिय रूप से विकल्पों की तलाश कर रहे हैं, ख़ास तौर पर उन क्षेत्रों में जहां मालदीव ने आम तौर पर भारत के साथ सहयोग किया था जैसे कि ज़रूरी सामानों की ख़रीद, पर्यटन, व्यापार, समुद्री सुरक्षा और स्वास्थ्य। इसका सबूत तुर्किए के साथ मौजूदा समय में फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को लेकर चल रही बातचीत या पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए चीन के कई शहरों से मालदीव तक डायरेक्टर फ्लाइट का विस्तार करने की संभावना को लेकर चल रही चर्चाओं से मिलता है।

हालांकि विदेशी कर्ज़ के संकट को लेकर चेतावनी के साथ ऐसा लगता है कि मुइज़्ज़ू को लग रहा है कि भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाना तत्काल रूप से ज़रूरी कर्ज़ राहत उपायों के लिए फायदेमंद है। यही वजह है कि उन्होंने भारत से अपील की। वैसे तो राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के नेतृत्व में मालदीव निरंतरता और बदलाव के बीच झूलते हुए अपनी विदेश नीति की प्राथमिकताओं को तय कर रहा है (जो अभी तक बराबर है) लेकिन भारत को अपनी तरफ इस बदले हुए सामंजस्यपूर्ण रवैये को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए। भारत को अपने पड़ोस में दबदबे वाली बड़ी ताकत की मौजूदा नकारात्मक सोच से हटकर एक विश्वसनीय विकास के साझेदार के रूप में ख़ुद को दिखाने पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिए युवा बेरोज़गारी, ईंधन की बढ़ती कीमत और कर्ज़ संकट जैसी तत्काल समस्याओं पर गौर करना चाहिए।