*एशिया का सबसे बड़ा अनाथालय बंद होने के कगार पर*

एशिया का सबसे बड़ा अनाथालय बंद होने के कगार पर एशिया का सबसे बड़ा अनाथालय फिरोजपुर की बस्ती टैंका वाली में स्थित है। यहां कभी महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने हाथों से इसकी नींव का पत्थर रखा था ताकि लावारिस बच्चों को नयी जिंदगी मिल सके। स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने भाषण में कहा था कि आज भारत की हालत काफी दयनीय है। देश का बचपन भूखा है, उसे आश्रय की जरूरत है, उन्हें संस्कृति देने की जरूरत है। 102 अनाथ बच्चों को लेकर यह अनाथालय फिरोजपुर शहर में स्थापित किया गया था, तब फिरोजपुर के साथ-साथ पंजाब के दानी सज्जनों ने दिल खोलकर दान दिया था।
इतिहास के झरोखों को देखा जाए तो शहीद भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह ने जब देश में भुखमरी की लहर चल रही थी तब ढाई सौ से ज्यादा अनाथ बच्चों को इसी अनाथालय में शरण दिलवाई थी उन्होंने पंजाब के किसानों से 100 बोरी गेहूं और गेहूं का दलिया दान किया था।
फिरोजपुर शहर का अनाथालय हजारों अनाथ बच्चों का आश्रय स्थल बन गया। जैसे-जैसे  समय व्यतीत होता गया आर्य अनाथालय में राखी का त्यौहार बड़े स्तर पर मनाया जाने लगा, देश की कई सेवाभावी संस्थाओं के अतिरिक्त  सेना के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा यहां हर त्यौहार को बड़े जोश से मनाया जाने लगा।
 सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आर्य अनाथालय की अधिकतर बच्चियों की शादियां रक्षा विभाग के जवानों के साथ करवाई गई।
 डाक्टर साधु चंद्र विनायक बताते हैं कि  फिरोजपुर का आर्य अनाथालय अपने आप में बड़ी संस्था थी। लोग अपने बच्चों के जन्म दिवस एवं बुजुर्गों के  जन्म मृत्यु पर यहां लंगर करते थे। कोई समय था जब इस अनाथालय में चहल पहल रहती थी, अब वह वीरान हो चुका है।
झारखंड से कुछ गरीब परिवारों के बच्चों को यहां लाया गया था। बाद में माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार उन्हें वापस भेज दिया गया। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि बच्चे अपने राज्य की संस्कृति से कट गए थे, उनके मां-बाप होते हुए उन्हें अनाथालय में रखा जा रहा है।
अनाथालय के प्रबंधको में से पी. डी. चौधरी और उनकी पत्नी संतोष चौधरी की सेवाएं सदैव  याद रखी  जाएगी, उन्होंने अपना सारा जीवन अनाथालय की सेवा में लगा दिया और बच्चों को अच्छे संस्कार प्रदान किए, उनके समय अनाथालय में पूरा अनुशासन हुआ करता था ,आर्य समाज की पद्धति से  अनाथालय में हवन यज्ञ नियमित रूप से होते थे। संतोष चौधरी ने लड़कियों की कमान अपने हाथों में ले रखी थी। खाने से पहले आरती की प्रथा को अनाथालय में कायम रखा।
एक समय बच्चों की किलकारियों से गुंजायमान रहने वाले इस अनाथालय में इस समय केवल दो बच्चे ही बचे हैं। सतनाम कौर इस समय अनाथालय का सारा कामकाज देख रही है उन्हें उम्मीद है कि दिल्ली की प्रबंधक कमेटी नए अनाथालय को  बसाने जा रही है।
डॉक्टर केडी अरोरा जो 1981 से अनाथालय में बच्चों का मुफ्त इलाज करते आए हैं, बताते हैं कि यहां बच्चों को अच्छा और पौष्टिक आहार मिलता था। अत: खाने पीने की बच्चों को कोई कमी नहीं थी, वह शाम को 2 घंटे बच्चों का उपचार करते थे।
दानी सज्जनों की कोई कमी नहीं थी,अनाथालय के भीतर अपना ही प्राइमरी स्कूल चल रहा था पर अब यह इमारत बुरी तरह जर्जर हो चुकी है, एशिया का सबसे बड़ा अनाथालय अब वीरान बन चुका है और बंद होने की कगार पर है।