आपका स्वास्थ्य आपके हाथ

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बीमारियों से बचना ही स्वास्थ्य की सुरक्षा है। इसके लिए खान-पान रहन-सहन एवं मौसम की अनुकूलता का ध्यान रखते हुए शरीर का पोषण आवश्यक है। यदि कोई बीमारी हो तो उसके कारण को जानकर आप अपनी प्रकृति के पहलू पर विचार करें तो रोग गंभीर रूप धारण नहीं कर सकता। छोटी सी बीमारी की लगातार उपेक्षा करते रहने की स्थिति स्वास्थ्य को बिगाड़ती है।  बीमार व्यक्ति अपने भोजन में अन्न व फल अपनी प्रकृति के अनुसार सेवन करें अर्थात खटाई मुवाफिक न आती हो तो उसका परित्याग करें और अधिक मिठास वाली चीजें तले हुए पदार्थ, खाद्यान्न अथवा अपथ्य वस्तुओं से परहेज रखें। इसी प्रकार रहन-सहन की उचित व्यवस्था रखने हेतु गंदगी से बचना चाहिए। घर में ताजी हवा तथा सूर्य का प्रकाश आता रहे। ऋतु के अनुसार पोशाक पहनना भी सर्दी व गर्मी के प्रकोप से बचाता है। इसके साथ ही पेट की पाचन शक्ति कायम रखने से व्यक्ति निरोग रहता है। पाचन शक्ति कब्ज के कारण न केवल खराब होती है बल्कि रोग ठीक होने में बाधक बनती है। अपच न होने दें इसी से कब्ज हो जाती है। प्रकृति के साथ चलते रहने से व्याधियों का नाश स्वत: हो जाता है।
आहार- हमें आहार वही लेना चाहिए जो शरीर को आवश्यक हो। कम खाने के साथ ही यह ध्यान रहे कि पेट की पूर्ति में आधा भाग भोजन का तथा एक चौथाई भाग जल व हवा के लिए रखना जरूरी है। अधिक खाने वाले बीमारी के चंगुल में फंसते हैं। भोजन के एक घंटे बाद पानी पीना चाहिए। स्वयं की प्रकृति को विचार में रखना चाहिए। वात प्रकृति वाले को वायुकारक पदार्थों का सेवन वर्जित है। ऐसे में उपयोगी होता है लहसुन व प्याज खाते रहना परन्तु अधिक मात्रा में नहीं।


हरी मैथी या मैथीदाना का प्रयोग वायुनाशक होता है। सब्जी में हींग का छोंक लगा हो। प्रकृति के अनुकूल ही दूध के बजाय दही-छाछ लेना उपयुक्त रहता है। फलाहार में पपीता, अमरूद, अंगूर व मौसमी फल खाना हितकारी सिद्ध होता है। कफ प्रकृति वाले सर्दी के प्रभाव से बचते रहें।


फलों में चीकू, आम, पपीता व जामुन लें। पित्त प्रकृति वालों को नींबू, आंवला व पत्तीवाली सब्जी गुणकारी होती है। दूध का सेवन प्राय: पौष्टिकता के लिए पाचन के अनुसार ही ठीक है। जिनको कब्ज की शिकायत रहती हो तो वे गुलकन्द, मुनक्का या दानामैथी के संग में नींबू डालकर उपयोग में लाया करें।


व्यायाम- स्वास्थ्य को सुंतलित रखने हेतु प्रात:काल नित्य ही अपनी आयु के उपयुक्त व्यायाम, योगासन, खुली हवा में विचरण करना आवश्यक है। इससे भोजन पचाने वाली जठराग्नि प्रदीप्त होती है और शरीर की गतिशीलता से प्रत्येक अंग स्वस्थ रहता है। व्यायाम किसी पार्क उपवन में कीजिए अथवा अपने आवास की छत पर व सर्दी में बन्द कमरे में करें तो सेहत में उभार आता है और शरीर में ताजगी बनी रहती है। नियमित व्यायाम या पैदल भ्रमण से मोटापा नहीं पनपता। इससे मन प्रसन्न रहेगा और दीर्घायु प्राप्त होगी। दैनिक व्यायाम यकृत की दुर्बलता को दूर करता है। साथ ही शरीर में रक्त संचालन होने से स्फूर्ति आती है। इस कार्य में आलस्य को पास नहीं फटकने दें। शारीरिक श्रम से न कतराएं अन्यथा शक्ति का ह्रïास हो सकता है। आहार, बिहार और व्यायाम का सामंजस्य बनाए रखना स्वास्थ्य का प्रतीक है।


स्वास्थ्य अभिरुचि- मानव को मनोयोग से स्वस्थ रहने का विश्वास स्थापित करना चाहिए। स्वास्थ्य के अनुकूल भोजन तथा सादगी के रहन-सहन में सूती व पहनना श्रेयस्कर है। शरीर की शक्ति व ताजगी के लिए मालिश करना और घर्षण स्नान करके शरीर के हरेक भाग को तौलिए से रगड़-पौछ कर स्वच्छ रखने से ऊर्जा प्राप्त होती है। नित्य नियम से तुलसी के ताजा दो-चार पत्ते अवश्य खाया कीजिए। पेट दर्द या हाजमे की खराबी में 10-12 तुलसी के पत्ते काले नमक और थोड़ी अदरक के साथ पीसकर साधारण गर्म करके पीने से विकार मिट जाता है और शरीर स्वस्थ एवं सुन्दर बनता है।