मणिपुर में लोकसभा चुनाव के लिए यह सही समय नहीं: कुकी और मेइती समुदायों के लोगों ने कहा

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इंफाल/चुराचांदपुर, मणिपुर में कुकी और मेइती समुदायों के बीच भले ही मतभेद हों लेकिन एक बात पर उनके विचार एक जैसे हैं। दोनों समुदायों का मानना है कि अशांत राज्य में लोकसभा चुनाव कराने के लिए यह सही समय नहीं है।

पर्वतीय इलाकों में रहने वाले कुकी और घाटी में रहने वाले मेइती समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़के लगभग एक साल हो गया है। इस हिंसा में न केवल 200 से अधिक लोगों की जान गई है, बल्कि लगभग 50 हजार लोग विस्थापित भी हुए हैं। मणिपुर में दो लोकसभा सीट के लिए 19 और 26 अप्रैल को मतदान होगा। आंतरिक मणिपुर और बाहरी मणिपुर के कुछ क्षेत्रों में पहले चरण में मतदान होगा, जबकि बाहरी मणिपुर के शेष क्षेत्रों में 26 अप्रैल को मतदान होगा।

अलग-अलग रह रहे और भविष्य में सह-अस्तित्व से इनकार करने वाले कुकी तथा मेइती समुदायों के कई लोगों का सवाल है कि इस समय चुनाव क्यों और इससे क्या फर्क पड़ेगा?

पिछले साल हिंसा का केंद्र रहे चुराचांदपुर जिले में एक राहत शिविर में समन्वयक कुकी समुदाय के लहैनीलम ने कहा, “हमारी मांग स्पष्ट है – हम कुकी ज़ो समुदाय के लिए एक अलग प्रशासन चाहते हैं। वर्षों से विकास केवल घाटी में हुआ है, हमारे क्षेत्रों में नहीं और पिछले साल जो हुआ उसके बाद हम एक साथ (कुकी और मेइती) नहीं रह सकते… कोई सवाल या संभावना नहीं है।”

उन्होंने कहा, “दोनों पक्षों के बीच कोई संपर्क नहीं हो रहा है…और सरकार चाहती है कि हम दूसरे पक्ष के लिए वोट दें… यह कैसे संभव है? मेइती क्षेत्र से विस्थापित कुकी को मेइती निर्वाचन क्षेत्र के लिए मतदान करना होगा। कैसे और क्यों? इन भावनाओं और मुद्दों के समाधान के बाद चुनाव कराया जाना चाहिए था…अभी सही समय नहीं है।”

कुकी समुदाय पहले ही घोषणा कर चुका है कि वह बहिष्कार के तहत आगामी चुनाव में कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगा।

इंफाल स्थित एक सरकारी कॉलेज के एक प्रोफेसर ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा, “कई बैठकें चल रही हैं और अभी भी इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है कि हम मतदान के बारे में क्या रुख अपनाएंगे… एक दृष्टिकोण यह है कि सही उम्मीदवार को वोट दिया जाए जो एक अलग प्रशासन की मांग उठा सके और दूसरा दृष्टिकोण यह है कि इस समय चुनाव क्यों कराए जा रहे हैं…ऐसे राज्य में जो सचमुच जल रहा है।”

उन्होंने कहा, “चुनाव के बाद क्या बदलेगा? अगर उन्हें (सरकार को) कार्रवाई करनी होती, तो वे अब तक कर चुके होते।”

कुकी समुदाय से संबंध रखने वाले शिक्षाविद् हिंसा शुरू होने के बाद से अपने कार्यस्थल पर नहीं गए हैं और उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि वह कब कक्षाएं ले पाएंगे।

उन्होंने कहा, “मेइती समुदाय के छात्र मेरी कक्षाओं में शामिल नहीं होना चाहते हैं। अगर मैं ऑनलाइन कक्षाएं लेता हूं, तो मेरे सहयोगियों से भी कोई सहयोग नहीं मिलता है, सिर्फ इसलिए कि मैं कुकी समुदाय से हूं… मुझे उस निर्वाचन क्षेत्र के लिए वोट क्यों देना चाहिए जो अब मेरा नहीं है।”

दूसरी ओर, मेइती समुदाय को लगता है कि ऐसे समय में जब उनके घर जला दिए गए हैं और उनका जीवन कम से कम दो दशक पीछे चला गया है, वे मतदान के बारे में कैसे सोच सकते हैं।

विस्थापित मेइती ओइनम चीमा ने कहा, “हम पर्वतीय क्षेत्र में रह रहे थे, हम अकसर घाटी जाते थे और सामान बेचते थे, हमारी गाड़ियाँ चलती थीं, व्यापार अच्छा था। अब हमारा घर नहीं रहा। आजीविका के साधन ख़त्म हो गए और लगातार ख़तरा बना रहता है। ऐसा महसूस होता है जैसे हमारा जीवन दो दशक पहले की स्थिति में वापस आ गया है… और वे चाहते हैं कि हम मतदान करें?”

निर्वाचन आयोग ने घोषणा की है कि विस्थापित आबादी को राहत शिविरों से वोट डालने का अवसर मिलेगा।

चुनाव अधिकारियों के अनुसार, राहत शिविरों में रहने वाले 24 हजार से अधिक लोगों को मतदान के लिए पात्र पाया गया है और इस उद्देश्य के लिए 94 विशेष मतदान केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं।