अरे वह कल तक बैंड बजाया करता था आज मिनिस्टर बना घूमता है या वह हमारे साथ बाबू था अब देखो अफसरी का दुमछल्ला लगाए शान बघारता रहता है या कुछ वर्ष पहले तक यह लच्छू साइकिल पर घूम – घूम कर बिस्कुट, डबलरोटी बेचा करता था अब सेठ लछमनदास बना करता है। ऐसे वाक्य अक्सर सुनने को मिल जाते हैं, इनमें ईष्र्या, दुर्भावना, घृणा झलकती है, द्वेष की गंध आती है, हीनता की भावना का एहसास होता है, कुल मिलाकर ऐसी टिप्पणियां हमारी विकृत सोच ही दर्शाती है। बैंड बजाने वाला यदि हमारे देखते-देखते मिनिस्टर बन गया है या हमारे साथ काम करने वाला एक सहकर्मी अफसर बन गया है अथवा साइकिल पर डबलरोटी, बिस्कुट बेचने वाला लच्छू यदि सेठ लछमनदास बन गया है तो हम ऐसा क्यों नहीं सोचते कि उनमें कोई ऐसी विशेषता अïवश्य होगी जो अधिकांश अन्य सामान्य लोगों में नहीं होती। आगे बढऩे, उन्नति करने, समाज में अपना स्थान बनाने, जीवन में कुछ कर दिखाने के लिए हिम्मत, हौसला, लगन, ललक, अथक परिश्रम, अध्यवसाय की आवश्यकता होती है। यह गुण सामान्यता हर एक मेें नहीं पाए जाते। गिने-चुने लोग ही अपने प्रयासों से अपना भाग्य बदल लेते हैं। क्यों नहीं हम ऐसे व्यक्तियों के प्रयासों को सराहते, उनसे सीख और प्रेरणा लेते, उनका अनुसरण करते, क्यों हम खिसियानी बिल्ली की भांति आचरण करते हैं। वस्तुस्थिति से अवगत होते हुए भी हम ऐसे व्यक्तियों के संबंध में प्रचारित भ्रांतियों, गलतबयानियों, दुष्प्रचार, चरित्रहनन, दुर्भावनापूर्ण अफवाहों में न केवल रुचि लेते हैं, बल्कि उनके अधिकाधिक प्रचार-प्रसार में सहभागी भी बनते हैं। यह सही है कि आज के युग में कुछ लोग चालाकी, चापलूसी, चालबाजी और जोड़तोड़ से भी आगे बढ़ जाते हैं।
ऐसे लोग आगे निकल जाने के लिए गलत तरीके अपनाते हैं। कुछ भी करने से नहीं चूकते। किन्तु प्रकृति के नियम अटल हैं। काठ की हांडी अधिक देर और बार – बार नहीं चढ़ती। सफलता की सीढ़ी पर चढऩे वाला हर व्यक्ति ऐसा नहीं होता। जीवन में कुछ कर दिखाने वाले अधिकांश वे होते हंै जिन्होंने अपना खून-पसीना एक किया होता है। ऐसे व्यक्ति प्रशंसा, सम्मान, समर्थन, प्रोत्साहन, सहयोग के पात्र होते हैं टांग खींचने,कटु आलोचना,निराधार टिप्पणियों के नहीं। हमारे ही देश में नहीं दुनिया के हर देश में ऐसे व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने अपने बलबूते पर अपना भाग्य और भविष्य बदल डाला। नितांत निर्धन,साधनहीन, पिछड़े परिवेश में जन्म लेकर भी जिन्होंने समाज के उच्चतम स्थान तक पहुंचने में सफलता पाई। समाज को एक नई दिशा दी। ऐसे व्यक्तियों की जीवनियां दूसरों के लिए आदर्श हैं, अनुकरणीय हैं। हमें चाहिए कि हम ऐसे व्यक्तियों के पदचिन्हों पर चलें।
उनसे सीख लें और अपना जीवन परिष्कृत करें। क्यों न हम अपनी प्रवृत्ति हंस की सी बना लें नीर- क्षीर विवेक की। हर व्यक्ति में बुरे में भी – कोई न कोई अन्तर्निहित अच्छाई, विशेषता, सद्गुण होता ही है। क्यों न कमियों, कमजोरियों, अक्षमताओं को दरकिनार करते हुए हम व्यक्ति की अच्छाइयों, विशिष्टताओं, प्लस प्वाइंट पर ही दृष्टि केंद्रित करने की आदत डाल लें।