नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने अमरावती की मौजूदा सांसद नवनीत कौर राणा को बड़ी राहत देते हुए उनका अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र बहाल कर दिया जिससे उनके लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर दलितों के लिए आरक्षित महाराष्ट्र सीट से चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो गया है।
उच्चतम न्यायालय ने बंबई उच्च न्यायालय के 2021 के फैसले को खारिज करते राणा का जाति प्रमाणपत्र बहाल किया। न्यायालय का यह फैसला
अमरावती लोकसभा सीट के लिए नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन आया है।
भाजपा ने राणा को अमरावती से उम्मीदवार बनाया है।
उच्च न्यायालय ने आठ जून 2021 को कहा था कि राणा ने धोखाधड़ी कर फर्जी दस्तावेज के जरिये ‘मोची’ जाति का प्रमाणपत्र हासिल किया था।
उच्च न्यायालय ने सांसद पर दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था और कहा था कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि वह ‘सिख-चमार’ जाति से हैं।
न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने राणा की याचिका को विचारार्थ स्वीकार करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय को राणा के जाति प्रमाणपत्र के मुद्दे पर जांच समिति की रिपोर्ट में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था।
अमरावती सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और नामांकन दाखिल करने का आज अंतिम दिन है।
शीर्ष अदालत ने राणा को जारी जाति प्रमाणपत्र की वैधता का बरकरार रखते हुए कहा,‘‘ मौजूदा मामले में जांच समिति ने उसके सामने मौजूद दस्तावेज पर विधिवत विचार किया और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन करते हुए अपना निर्णय पारित किया।’’
विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा है।
राणा ने 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अमरावती संसदीय सीट जीती थी। वह हाल ही में भाजपा में शामिल हुईं और उसी निर्वाचन क्षेत्र से टिकट मिलने के बाद चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।
राणा को 2019 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का समर्थन प्राप्त था और उन्होंने दावा किया था कि वह ‘मोची’ जाति से हैं।
शीर्ष अदालत ने 28 फरवरी को जातिप्रमाण पत्र रद्द करने के उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राणा की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। शीर्ष अदालत ने राणा का जाति प्रमाणपत्र रद्द करने के उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी थी।
उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने राणा को छह सप्ताह के भीतर प्रमाणपत्र जमा कराने को कहा था और उसे महाराष्ट्र कानूनी सेवा प्राधिकरण को दो लाख रुपये का जुर्माना देने को कहा था।
उच्च न्यायालय ने मुंबई के उपायुक्त द्वारा 30 अगस्त 2013 को जारी किए गए जाति प्रमाणपत्र को रद्द करने संबंधी याचिका पर आदेश पारित किया था, जिसमें राणा को ‘मोची’ जाति का बताया गया था।
शिवसेना नेता आनंदराव अडसुल ने मुंबई जिला जाति प्रमाणपत्र जांच समिति में शिकायत दर्ज की थी। समिति ने हालांकि राणा के पक्ष में फैसला सुनाया और प्रमाणपत्र को वैध करार दिया।
इसके बाद शिवसेना नेता ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि जांच समिति की ओर पारित आदेश पूरी तरह से अनुचित है, बिना सोच विचार वाला है और पेश साक्ष्य से पूरी तरह विपरीत है।
पीठ ने कहा था कि राणा के मूल जन्म प्रमाणपत्र में ‘मोची’ जाति का उल्लेख नहीं है।