गेहूं की फसल पर जलवायु संकट का सामना करने में भारत की तैयारी पाकिस्तान से बेहतर: वैज्ञानिक

नयी दिल्ली,  भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों में मौसम की अनुकूल स्थिति उन्हें इस साल रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन हासिल करने में मदद कर रही है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि हालांकि, भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिए पड़ोसी देश की तुलना में बेहतर ढंग से तैयार है।

उन्होंने बताया कि भारत ने बीज की कई स्वदेशी गर्मी प्रतिरोधी और कम अवधि वाली किस्में विकसित की हैं।

भारत दुनिया का दूसरा और पाकिस्तान आठवां सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है। जहां भारत गेहूं उत्पादन में आत्मनिर्भर है, वहीं पाकिस्तान 20-30 लाख टन गेहूं आयात करता है।

घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पाकिस्तान के अभी भी आयात पर निर्भर है। इसकी एक बड़ी वजह उसका जलवायु-अनुकूल स्वदेशी किस्मों को विकसित नहीं कर पाना है।

फिलहाल दोनों देशों में गेहूं की फसल की कटाई चल रही है। भारत का अनुमान है कि फसली वर्ष 2023-24 (जुलाई-जून) में गेहूं उत्पादन 11.4 करोड़ टन के नए रिकॉर्ड तक पहुंचेगा। दूसरी ओर पाकिस्तान ने 3.22 करोड़ टन पैदावार का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है।

जहां दोनों देश 2010 से गेहूं की फसल पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव का सामना कर रहे हैं, वहीं चालू वर्ष असाधारण रूप से अनुकूल रहा है। इस दौरान न तो गरम हवा देखने को मिली और न ही फसल को प्रभावित करने वाली बेमौसम बारिश हुई।

आईसीएआर-भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-आईआईडब्ल्यूबीआर) के निदेशक ज्ञानेंद्र सिंह ने पीटीआई-भाषा को बताया, “इस साल मौसम अनुकूल है। मध्य जनवरी और फरवरी की महत्वपूर्ण अवधि के दौरान, गरम हवा और बेमौसम बारिश की कोई घटना नहीं हुई। हम भारी पैदावार की उम्मीद कर रहे हैं।”

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि नए बीजों की उपलब्धता और किसानों के बीच अधिक जागरूकता के कारण इस साल गेहूं के कुल रकबे के 80 प्रतिशत से अधिक में जलवायु-अनुकूल गेहूं की किस्मों को बोया गया है।