भारतीय समाज और महिलाएं

Role-of-Women-in-Society

हमारे समाज का विकास अपेक्षित गति से नहीं हुआ है। अब समय आ गया है कि हम समाज-निर्माण की भावी दिशा एवं द्रुतगामी विकास के साधनों पर गम्भीरता से विचार करें। हमारे विकास की धीमी गति का एक बहुत बड़ा कारण समाज विकास की प्रक्रिया में महिलाओं की तटस्थता अथवा उदासीनता है। महिलाएं समाज का प्रभावशाली अंग हैं। समाज में उनकी शक्ति एवं प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता। परन्तु हमारा यह दुर्भाग्य है कि महिलाओं की इस शक्ति का वांछित उपयोग नहीं हो सका है। वर्तमान स्थिति में महिलाएं निम्न कार्य कर सकती हैं-


(1) बच्चों का पालन पोषण एवं उनकी स्वास्थ्य रक्षा- बच्चे राष्टï्र के भावी नागरिक होते हैं। अच्छे नागरिक बनाने के लिए यह आवश्यक है कि बच्चों के पालन-पोषण एवं स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाए। बच्चों को नियमित खेलकूद, व्यायाम आदि का प्रशिक्षण देने एवं संतुलित भोजन की व्यवस्था करने से वे स्वस्थ रह सकते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए उनमें सद्वृत्तियों के विकास की ओर ध्यान देना आवश्यक है। उनमें देश-प्रेम कर्मनिष्ठा आत्म विश्वास, स्वावलम्बन, दृढ़ता आदि का विकास किया जाना चाहिये। यह कार्य महिलाएं अच्छी तरह सम्पन्न कर सकती हैं। मां को प्रथम पाठशाला कहा गया है। वह बच्चे को चाहे जिस सांचे में ढाल सकती है। मां बच्चे में अच्छी आदतें डालकर उसे सच्चरित्र, ईमानदार और सक्रिय नागरिक बना सकती है। महिलाएं इस रूप में सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण योग दे सकती हैं।


(2) गृह व्यवस्था एवं बचत को प्रोत्साहन – घर की पूर्ण व्यवस्था प्राय: महिलाओं को ही करनी पड़ती है। यह कार्य सामाजिक दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। महिलाओं को इस सम्बन्ध में अपनी कुशलता में वृद्धि करनी चाहिये। कुशल महिलाएं घर में होने वाली बहुत सी बर्बादियों को रोक सकती हैं। भोजन-सामग्री, कपड़े तथा दैनिक उपयोग की वस्तुओं की उचित देख-भाल इस संबंध में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती है। बहुत-सी बेकार वस्तुओं से अन्य उपयोगी वस्तुएं बनायी जा सकती हैं, इसके अलावा महिलाएं दैनिक खर्चे में कमी करके बचत को प्रोत्साहन दे सकती हैं। बचत करने से न केवल परिवार सुखी होता है, बल्कि राष्टï्र के आर्थिक विकास में इनसे बड़ी सहायता मिलती है। पूंजी का निर्माण बचत से ही सम्भव है। महिलाएं अपव्यय रोक कर सामाजिक विकास में सहायता दे सकती हैं। स्वयं के श्रृंगार प्रसाधनों और तड़क-भड़क के खर्चों को कम करके उत्पादन के साधनों को अनिवार्य वस्तुओं के उत्पादनों की ओर मोड़ सकती हैं।


(3) आर्थिक राहत के कार्य एवं उत्पादन में वृद्धि- महिलायें घर में रहकर भी आर्थिक राहत के कार्य कर सकती हैं, जैसे- सिलाई, कताई, बुनाई आदि। उत्पादन में वृद्धि करने के लिए महिलायें कई घरेलू उद्योग अपना सकती हैं, जैसे- दरी या गलीचा बनाना, चटाई बनाना, डलिया बनाना, साबुन बनाना, अगरबत्ती बनाना आदि। खाली समय में इन कार्यों को करने से बचत तो होती ही है, राष्टï्रीय उत्पादन में वृद्धि होती है। इन कार्यों के अतिरिक्त अपनी रुचि के अनुकूल अन्य कार्य भी किये जा सकते हैं। किचिन गार्डन बनाकर कुछ फल और तरकारियां पैदा की जा सकती हैं। इन कार्यों से उत्पादन में वृद्धि होगी और रहन-सहन का स्तर सुधर सकेगा।


(4) शिक्षा का प्रसार- शिक्षित महिलायें अशिक्षितों को शिक्षित बनाकर सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं। शिक्षा के अभाव में कोई भी समाज प्रगति नहीं कर सकता। भारत में अब भी लोग अशिक्षित हैं। शिक्षा राजनीतिक-आर्थिक और सांस्कृतिक विकास की आधारशिला है। लोकतंत्र की परिपक्वता उसी पर निर्भर है। महिलायें शिक्षा के प्रचार के साथ-साथ संगठनात्मक कार्य भी कर सकती हैं। वे उदात्त विचारों का प्रचार करके जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र आदि के संकीर्ण भेद-भाव दूर कर सकती हैं और सुदृढ़ राष्टï्र के निर्माण में सहायक हो सकती हैं।


(5) नशाबन्दी- यह सर्व विदित तथ्य है कि शराब पीना व्यक्ति, परिवार तथा समाज के लिए अत्यंत घातक है। शराब के उत्पादन से पूंजी और श्रम का भारी अपव्यय होता है। शराब पीने से स्वास्थ्य की हानि तो होती ही है, आमदनी का एक बड़ा भाग भी बेकार चला जाता है। इसका प्रभाव निर्धन परिवारों पर अधिक पड़ता है। महिलायें अपने प्रयत्नों से नशाबंदी कराने में सफल हो सकती हैं। वे अपने परिवारों में व्यक्तिगत रूप से और समाज में सामुदायिक रूप से नशाबन्दी के पक्ष में व्यापक अभियान चला सकती हैं। कोई कारण नहीं कि उनके प्रयत्न सफल न हों।


(6) भ्रष्टाचार उन्मूलन- इस समय हमारे देश में दिनोंदिन भ्रष्टïाचार बढ़ता जा रहा है। दफ्तरों में बिना रिश्वत के कोई काम नहीं होता। बड़े-बड़े नेता और अफसर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। पूंजीपति और व्यापारी जमाखोरी, काला बाजारी और मुनाफाखोरी में लगे हुए हैं। वस्तुओं में मिलावट की जा रही है। नकली माल बेचकर धोखाखड़ी की जा रही है। महिलायें इस भ्रष्टïाचार को रोकने में सक्रिय भूमिका निभा सकती हैं।


अक्सर होता यह है कि पति के भ्रष्टïाचार से प्राप्त धन पर उसे खुशी होती है, परन्तु वह यह नहीं जानती कि सारे समाज में भ्रष्टïाचार का रोग फैल जाने पर उसे खुद अपने कार्यों के लिये इसी प्रकार धन देना भी पड़ेगा। इसका सबसे बुरा प्रभाव घर के बच्चों पर पड़ता है। वे आलसी, अकर्मण्य, आवारा और फैशन-परस्त हो जाते हैं। इसलिए समाज से इस भ्रष्टïाचार के रोग को समूल नष्टï कर देना आवश्यक है। महिलायें अपने प्रभाव का उपयोग करके समाज के शुद्धीकरण में बहुमूल्य योग दे सकती हैं। वे भ्रष्टाचार का धन अपने घर में आने ही न दें। वे प्रण कर लें कि रिश्वतखोरी और अनैतिकता से कमाये हुये धन को हाथ नहीं लगायेंगी और अपने बच्चों में यही भाव भर दें कि कठिनाईयां सहते हुए भी ईमानदारी से कमाये हुए धन से ही गुजर-बसर करेंगी। वे देश में भ्रष्टïाचार के विरुद्ध व्यापक अभियान चलायें, कर चोरी की वस्तुएं न खरीदें और भ्रष्टाचारी को पकडऩे में सहयोग दें।


(7) सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन- हमारे समाज में बहुत-सी कुरीतियां प्रचलित हैं। दहेज, छुआछूत आदि इनके ज्वलन्त उदाहरण हैं। महिलायें इन कुरीतियों को मिटाने में सहयोग दे सकती हैं। यदि महिलायें इन सब कुरीतियों को मान्यता न दें, तो कोई कारण नहीं कि पुरुष उनकी बात मानने को बाध्य न हों। युवतियां ऐसे युवकों से विवाह करने से इन्कार कर दें, जो दहेज मांगते हैं। हमारे समाज में धर्म की आड़ में जो पाखण्ड होते हैं, उनमें महिलाओं की जिम्मेदारी कम नहीं है। महिलायें समाज में स्वस्थ मानसिकता का निर्माण करें। वे समाज को धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक शोषण से मुक्त करें।


(8) दबाव- समाज में रचनात्मक कार्यों के लिए महिलायें शासन पर दबाव डाल सकती हैं। कोई भी सरकार महिलाओं की प्रयत्न शक्ति की अवहेलना नहीं कर सकती। महिलायें किसी सामाजिक बुराई को दूर करने के लिए भी शासन से अपील कर सकती हैं। यदि कोई सरकार उनकी बात नहीं मानती, तो वे इसके लिए आन्दोलन, असहयोग, सत्याग्रह, जनमत-निर्माण आदि उपायों का अवलम्बन कर सकती हैं। महिलाओं को पुरुषों के समान अपने मताधिकार के प्रयोग की स्वतंत्रता है। समाज के शुद्धीकरण, उसके उचित विकास एवं समृद्धि के लिए जो सरकार ठीक ढंग से कार्य नहीं करती, उसे वे चुनाव में अपना मत न देकर गिरा सकती हैं। चुनाव में महिलाओं का मत निर्णायक भूमिका निभा सकता है। इस संबंध में उन्हें पुरुषों के दबाव में नहीं आना चाहिये।


(9) वस्तुओं के मूल्यों का नियन्त्रण- इस समय महंगाई की समस्या अत्यन्त जटिल है। महंगाई बढऩे के लिए कई कारण होते हैं। मुद्रा स्फीति, कम उत्पादन, संग्रहवृत्ति, कृत्रिम अभाव, असंतुलित वितरण आदि अनेक बातें वस्तुओं के मूल्य पर प्रभाव डालती हैं। महिलायें वस्तुओं के मूल्य न बढऩे के कारगर कदम उठा सकती हैं। जिन वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाये उनका कम प्रयोग करके अथवा उनका उपयोग बन्द करके मूल्य को प्रभावित किया जा सकता है। जिन वस्तुओं का अभाव होता है महिलायें प्राय: उनका संग्रह करना चाहती हैं, उनकी प्राप्ति के लिए पुरुषों पर दबाव डालती हैं। यह प्रवृत्ति वस्तुओं की कालाबाजारी को प्रोत्साहन देती है। महिलाएं अनियन्त्रित मूल्य वाली वस्तुओं का परित्याग करके मुनाफाखोरों को अच्छा सबक सिखा सकती हैं। इस प्रकार वे बाजार पर अपना अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित कर सकती हैं। यदि वे जागरूक होकर समाज के निर्माण में सक्रिय सहयोग दें, तो शीघ्र ही समाज का स्वरूप बदल जायेगा।