न्यायालय ने सूफी संत का पार्थिव शरीर भारत लाने के अनुरोध संबंधी याचिका खारिज की

नयी दिल्ली,  उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक याचिका खारिज कर दी, जिसमें भारत में जन्मे पाकिस्तानी सूफी संत की इच्छा के तहत उनके पार्थिव शरीर को बांग्लादेश से लाकर प्रयागराज में फिर से दफनाने के लिए केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

सूफी संत की 2022 में बांग्लादेश में मृत्यु हो गई थी।

याचिका में 1992 में पाकिस्तानी नागरिकता हासिल करने वाले इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के मूल निवासी हजरत शाह मुहम्मद अब्दुल मुक्तदिर शाह मसूद अहमद की वसीयत का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया है कि उनके पार्थिव शरीर को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की दरगाह में दफनाया जाए, जिसके वह प्रमुख रहे थे।

शीर्ष अदालत ने प्रयागराज की दरगाह हजरत मुल्ला सैयद की याचिका खारिज करते हुए सवाल किया, “वह पाकिस्तानी नागरिक थे। आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि भारत सरकार उनके पार्थिव शरीर को भारत लाए और यहां उन्हें दफनाया जाए। ऐसा कोई अधिकार नहीं है जिसके तहत यह मांग की जा सके।”

पीठ ने कहा, “हमें संवैधानिक अधिकारों को लागू करने के सिद्धांतों पर भी गौर करना होगा।”

याचिकाकर्ता दरगाह की ओर से पेश वकील अहमद ने कहा कि संत का पाकिस्तान में कोई परिवार नहीं है, जबकि उत्तर प्रदेश की दरगाह में वह सज्जादा-नशीन (आध्यात्मिक प्रमुख) थे।

सूफी परंपरा में, सज्जादा नशीन एक सूफी संत का उत्तराधिकारी होता है, जो किसी दरगाह का प्रमुख होता है।

वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि संत का जन्म इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था और वह पाकिस्तान चले गए। 1992 में उन्हें पाकिस्तानी नागरिकता मिल गई।

पीठ ने कहा, “उन्हें 2008 में प्रयागराज में स्थित दरगाह हजरत मुल्ला सैयद मोहम्मद शाह की दरगाह का सज्जादा नशीन चुना गया था। उन्होंने दरगाह में दफन होने की इच्छा व्यक्त करते हुए 2021 में वसीयत की थी। ढाका में उनकी मृत्यु हो गई, जहां उन्हें दफना दिया गया। ऐसी याचिका पर विचार करने में परेशानियां हैं।”

पीठ ने कहा, “हजरत शाह पाकिस्तानी नागरिक थे और उन्हें कोई संवैधानिक अधिकार नहीं था। पार्थिव शरीर को कब्र से निकालने के संबंध में व्यावहारिक जटिलताएं हैं। इस अदालत के लिए किसी विदेशी का पार्थिव शरीर भारत लाने का निर्देश देना सही नहीं होगा।”