गुजरात में उम्मीदवारों के चयन में जाति एक प्रमुख कारक : राजनितिक विश्लेषक
Focus News 30 April 2024अहमदाबाद, राजनीतिक दल भले ही दावा कर रहे हों कि जाति समीकरण उम्मीदवारों के चयन में कोई भूमिका नहीं निभाते लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि गुजरात में यह अभी भी एक प्रमुख कारक है भले ही शहरीकरण ने राज्य के कुछ हिस्सों में जाति समीकरणों को कमजोर कर दिया हो।
राजनीतिक दल मानते हैं कि ग्रामीण इलाकों में जाति अभी भी एक प्रमुख कारक है। गुजरात की 6.5 करोड़ आबादी में पाटीदार 11 से 12 प्रतिशत हैं जबकि उत्तर में ठाकोर, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र में कोली सहित अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी लगभग 40 प्रतिशत हैं।
भाजपा ने लोकसभा चुनाव में छह पाटीदार, सात ओबीसी और कोली समुदाय से तीन उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (‘इंडिया’) के घटक दल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) ने भी छह पाटीदार, सात ओबीसी और कोली समदुाय से दो उम्मीदवारों को टिकट दिया है।
समाजशास्त्री और भावनगर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति विद्युत जोशी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि गुजरात के पहले चार मुख्यमंत्री या तो ब्राह्मण थे या फिर वणिक थे। उन्होंने कहा कि पाटीदार 70 के दशक के बाद राजनीतिक परिदृश्य में आए जब 1973 में चिमनभाई पटेल राज्य के मुख्यमंत्री बने।
जोशी ने कहा, ”जाति, पहचान है। उम्मीदवारों के चयन में जाति कारक पर विचार किया जाता है। इसे आप खारिज नहीं कर सकते। आज जाति और वर्ग साथ-साथ चलते हैं। उम्मीदवार को एक विशिष्ट जाति से होने के साथ-साथ संपन्न होना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि ग्रामीण मतदाता अपनी जाति के उम्मीदवारों को पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि चुनाव के बाद काम के लिए उनसे संपर्क करना आसान हो जाता है।
राजनीतिक विश्लेषक अमित ढोलकिया ने कहा कि मध्य और दक्षिण गुजरात के अहमदाबाद व वडोदरा जैसे शहरी इलाकों में जाति का प्रभाव कम हो रहा है लेकिन सौराष्ट्र व उत्तरी गुजरात जैसे ग्रामीण इलाकों में आज भी जाति एक प्रमुख कारक है।
वडोदरा स्थित एम. एस. विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर ढोलकिया ने कहा, ”उम्मीदवार उन सीट पर जीत हासिल करते हैं, जहां उनकी जाति प्रभावी नहीं होती। शहरीकरण जाति की पहचान को कमजोर करने और अन्य मुद्दों को सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ग्रामीण क्षेत्रों, विशेष रूप से सौराष्ट्र और उत्तरी गुजरात में जाति अभी भी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।”
उन्होंने कहा, ”पहले उम्मीदवार सीधे अपनी जाति के लोगों से उन्हें वोट देने की अपील करते थे लेकिन अब वोट हिंदुत्व या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकास एजेंडे के नाम पर मांगे जाते हैं।”
ढोलकिया ने कहा, ”भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जातिगत कारकों को हिंदू वोट में तब्दील करना चाहती है जबकि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को लगता है कि जाति समीकरणों को मजबूत कर हिंदुत्व-केंद्रित राजनीति का मुकाबला किया जा सकता है।”
उन्होंने दावा किया कि गुजरात में कांग्रेस की हार का एक मुख्य कारण शहरी इलाकों में जाति समीकरणों का कमजोर होना है।
वहीं भाजपा की गुजरात इकाई के प्रवक्ता यमल व्यास इससे पूरी तरह सहमत नहीं हैं।
व्यास ने कहा, ”हम जाति को बहुत अधिक महत्व नहीं देते। हम संतुलन बनाए रखने की कोशिश करते हैं। उम्मीदवार की पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता, जीतने की क्षमता और शैक्षणिक योग्यता मायने रखती है।”
कांग्रेस की राज्य इकाई के प्रवक्ता मनीष दोशी ने कहा कि जिम्मेदारी मतदाताओं पर भी है क्योंकि अगर वे योग्य उम्मीदवारों को खारिज करते रहेंगे तो पार्टियां जाति जैसे अन्य चयन मानदंडों पर ध्यान केंद्रित करेंगी क्योंकि अंत में सिर्फ जीत मायने रखती है।