दुनिया मे एक ऐसा भी श्रीकृष्ण का अनूठा मंदिर है, जहां मौजूद श्रीकृष्ण की मूर्ति में अभी भी प्राण हैं और श्रीकृष्ण की कलाई की नब्ज़ सामान्य व्यक्ति की तरह चलती है।श्री कृष्ण की यह मूर्ति सांस भी लेती है, यानी हम कह सकते है कि श्रीकृष्ण की यह प्रतिमा जीवित स्वरूप में प्रतिष्ठित है। इस श्रीकृष्ण की इस मूर्ति की कलाई पर एक घड़ी बंधी है जिसे कभी एक अंग्रेज ने बांधा था। अंग्रेज को जब पता चला कि श्रीकृष्ण की मूर्ति में प्राण है तो उसने सच्चाई परखने के लिए श्रीकृष्ण की कलाई में घड़ी बांध दी। हैरत की बात यह है कि श्रीकृष्ण की कलाई में घड़ी बांधते ही वह चल पड़ी जबकि घड़ी में कोई सेल नही है और उसमें चाबी भरने की भी व्यवस्था नही है।यह घड़ी सेल से नहीं,श्रीकृष्ण की कलाई की पल्स रेट से चलती है। 50 से भी अधिक साल से यह घड़ी निरंतर चल रही है और समय भी ठीक बताती है।मंदिर के पुजारी श्रीकृष्ण जी के श्रृंगार के समय जब घड़ी उतारते हैं तो यह घड़ी बंद हो जाती है और पुनः घड़ी पहनाते है तो फिर से चलना शुरू हो जाती हैं।
ऐसे में हम कह सकते है कि जयपुर के इस रहस्यमयी श्रीकृष्ण मंदिर में आज भी भगवान श्रीकृष्ण का दिल धड़कता है। शरीर त्याग देने के बाद सभी की हृदय गति रुक जाती है लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने शरीर त्याग दिया ,फिर भी उनका हृदय अभी तक धड़क रहा है। द्वापर युग में जब भगवान श्री हरि विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तो यह उनका मानव रूप था। सृष्टि के नियम मुताबिक हर मानव की तरह इस रूप की मृत्यु निश्चित थी। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के 36 साल बाद अपनी देह को त्याग दिया था। जब पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया तो श्रीकृष्ण का पूरा शरीर अग्नि में समा गया लेकिन उनका हृदय धड़कता ही रहा था। उनके हृदय को अग्नि जला नहीं पायी। इस दृश्य को देखने के बाद पांडव अंचभित रह गए। तब आकाशवाणी हुई कि यह ब्रह्म का हृदय है इसे समुद्र में प्रवाहित कर दें। इसके बाद पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण के हृदय को समुद्र में प्रवाहित कर दिया।
स्वामीनारायण ने 9 अक्टूबर सन 1828 को इस मंदिर में श्रीकृष्ण की इस अदभुत मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठित किया था। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के अलावा राधा और हरिकृष्ण यानी स्वामीनारायण की प्रतिमा को भी उनके जाने के बाद प्रतिष्ठित किया गया है।स्वामीनारायण के माता-पिता धर्मदेव और भक्तिमाता और वासुदेव की पूजा भी मंदिर में की जाती है। मंदिर में बलदेवजी और सूर्यनारायण की मूर्ति भी है।मई सन 2012 में मंदिर के शिखरों को सोने से मढ़वाया गया था, जिससे यह गुजरात का पहला मंदिर बन गया जिसमें स्वर्ण शिखर हैं।इसी तरह झुंझुनूं जिले के सुलताना कस्बे में गोपीनाथ मंदिर का निर्माण करीब 260 साल पहले तत्कालीन शासक हाथी सिंह की रानी की इच्छा पर करवाया गया था।इस मंदिर में रात के समय कोई नहीं रुक सकता। यदि कोई रुकना भी चाहे तो उसके साथ ऐसी घटनाएं होती हैं कि उसे रात को ही मंदिर से बाहर जाना पड़ता है।गांव के बुजुर्ग व मंदिर पुजारी इसके पीछे दैवीय शक्ति बताते हैं।
मंदिर जितना पुराना है, इसका इतिहास भी उतना ही अनूठा है।इस मंदिर में संत की भगवान गोपीनाथ की प्रतिमा से बातें होती है। एक दिन तत्कालीन राजा हाथी सिंह का पुत्र बीमार हो गया, जान बचने की कोई संभावना नहीं थी।तब हाथी सिंह अपने पुत्र को लेकर ध्यानदास के पास गए और साधु के चरणों में पुत्र को रख दिया। कहते हैं कि ध्यानदास ने जैसे ही हाथी सिंह के बेटे के सिर पर हाथ फेरा, वह खड़ा हो गया।उस दिन से ध्यानदास के प्रति उनकी श्रद्धा बढ़ गई।हाथी सिंह की रानी ने भी उनके बारे में सुना था। वे ध्यानदास के पास गईं और उन्हें अपना गुरु बना लिया।
डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट