डिजिटलीकरण से उपजे जोखिमों के लिए मजबूत नियामकीय ढांचे की जरूरत: आरबीआई डिप्टी गवर्नर

नयी दिल्ली,  भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर स्वामीनाथन जे ने कहा है कि वित्तीय सेवाओं के तेजी से डिजिटल होने और वित्तीय-प्रौद्योगिकी मंचों का प्रसार होने से ग्राहकों को दुरुपयोग और धोखाधड़ी से बचाने के लिए मजबूत नियामकीय ढांचे की जरूरत है।

आरबीआई ने एक बयान में कहा कि इस सप्ताह की शुरुआत में स्वामीनाथन ने पेरिस में आयोजित ‘ग्लोबल मनी वीक 2024’ को संबोधित करते हुए कहा कि कोविड-19 महामारी ने वित्तीय सेवाओं में डिजिटलीकरण की प्रक्रिया तेज कर दी है, जिससे सेवाप्रदाताओं और ग्राहकों द्वारा ऑनलाइन लेनदेन में तेजी से बदलाव आया है।

उन्होंने कहा कि डिजिटलीकरण में इस उछाल के साथ वित्तीय-प्रौद्योगिकी मंचों का प्रसार भी हुआ है।

स्वामीनाथन ने कहा कि अक्सर नियामकीय दायरे के बाहर काम करते हुए और पारंपरिक बैंकों को प्रभावित करने वाली परंपरागत प्रणालियों से न बंधी हुई वित्तीय-प्रौद्योगिकी कंपनियां वित्तीय उत्पादों की पेशकश में उल्लेखनीय तीव्रता और अनुकूलनशीलता दर्शाती प्रदर्शित करती हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘ये विकास वास्तव में स्वागतयोग्य हैं। हालांकि, उनसे पहुंच और अत्यधिक-वैयक्तिकरण जैसे व्यापक लाभ मिलते हैं, लेकिन वे दुरुपयोग और धोखाधड़ी के जोखिम को भी बढ़ाते हैं। वे उपभोक्ताओं को साइबर हमलों, डेटा उल्लंघन और अक्सर कुछ वित्तीय नुकसान के जोखिम में डाल सकते हैं।’’

आरबीआई के वरिष्ठ अधिकारी ने इस बात पर जोर दिया कि उपभोक्ताओं को ऐसी कंपनियों की ओर से पारदर्शिता में कमी दिखाने के कारण विवादों को सुलझाने या मुआवजा प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है।

उन्होंने कहा, ‘‘इन नए जोखिमों को मजबूत नियामकीय ढांचे, उन्नत साइबर सुरक्षा उपायों और बढ़ी हुई उपभोक्ता जागरूकता पहल के माध्यम से हल किया जाना चाहिए।’’

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ने विनियमन, पर्यवेक्षण और बढ़ी हुई उपभोक्ता जागरूकता के माध्यम से भारत में अपनाए गए कुछ दृष्टिकोण भी साझा किए।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उभरते जोखिमों और चुनौतियों से निपटने के लिए सतर्क और सक्रिय रहना जरूरी है।