एसएससी ने डेटा संकलन में त्रुटि के बाद मणिपुर के लिए सरकारी नौकरी परीक्षा का परिणाम वापस लिया

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नयी दिल्ली,  केंद्र सरकार के मंत्रालयों के लिए भर्ती आयोजित करने वाले कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) ने अनजाने में एक चरण का डेटा छूट जाने के बाद मणिपुर के लिए परीक्षा परिणाम वापस ले लिया है।

आयोग ने 15 मार्च को मणिपुर राज्य के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ), सचिवालय सुरक्षा बल (एसएसएफ) में कांस्टेबल (सामान्य ड्यूटी), असम राइफल्स में राइफलमैन (सामान्य ड्यूटी) और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो परीक्षा, 2022 में सिपाही का अंतिम परिणाम घोषित किया था।

एसएससी ने एक नोटिस में कहा कि मणिपुर में कानून और व्यवस्था की स्थिति के कारण, राज्य से संबंधित उम्मीदवारों के संबंध में शारीरिक और चिकित्सा परीक्षण कई चरणों में आयोजित किए गए थे। इसमें कहा गया है कि 15 मार्च, 2024 को परिणाम जारी करते समय, एक चरण से संबंधित डेटा अनजाने में छूट गया था।

एसएससी के 18 मार्च के नोटिस में कहा गया, ‘‘इन तथ्यों के मद्देनजर, 15 मार्च को प्रकाशित परिणाम को वापस ले लिया गया है। उम्मीदवारों के पूरे डेटा को शामिल करते हुए मणिपुर के संबंध में संशोधित अंतिम परिणाम शीघ्र ही प्रकाशित किया जाएगा।’’

एसएससी सरकार की सबसे बड़ी भर्ती एजेंसियों में से एक है, जिसका मुख्य कार्य विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों में सभी ग्रुप बी (गैर-राजपत्रित) और ग्रुप सी (गैर-तकनीकी) पदों पर भर्ती करना है।

मणिपुर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक राजकुमार इमो सिंह ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि मुख्य सचिव को केंद्र सरकार के अधिकारियों के समक्ष मामला उठाने के लिए कहा गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘क्या यह सचमुच त्रुटि है या सिस्टम में गहरी घुसपैठ है, खासकर उन जगहों पर जहां हम सामान्य आधार पर नहीं पहुंच पा रहे हैं? लेकिन राज्य सरकार ऐसे घुसपैठियों के खिलाफ लड़ रही है। मुख्य सचिव को इस मामले को केंद्रीय अधिकारियों के समक्ष उठाने और इसमें सुधार सुनिश्चित करने के लिए कहा गया।’’

तीन बार के विधायक सिंह ने मंगलवार रात को पोस्ट में कहा, ‘‘यह आसान नहीं होने वाला है, लेकिन हम सभी को अपने राज्य के हित के लिए एकजुट होना होगा।’’

पिछले साल मई से मणिपुर में जातीय संघर्ष में कम से कम 219 लोग मारे गए हैं। मेइती समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किए जाने के बाद तीन मई को हिंसा भड़क गई थी।