सर्वविदित है कि अपनी पत्नी किसी पति को नहीं भाती और सामान्यत: हर पत्नी को पड़ोसिन का पति ही अच्छा लगता है। यह असंतोष विवाह के कुछ समय उपरांत ही हर दम्पत्ति की नियति बन जाता है। जीवन अक्सर कुढ़ते कलपते ही बीतता है। माँ पार्वती की करुणा का पारावार नहीं, द्रवित होकर उन्होंने भगवान शिव से मानव जाति के इस संताप के निवारण हेतु अनुरोध किया। भोले भण्डारी अपनी प्रिया के हठ के आगे विवश हो गए। उन्होंने तथास्तु कहा और पलक झपकते पत्नियों की अदलाबदली हो गई।
सेठ रामदास प्रात: सोकर उठे तो बजाय नौगजी साड़ी में लिपटी ठिगनी भरी काया वाली अपनी सेठानी के लम्बी तगड़ी सलवार कमीज वाली पंजाबिन को खड़ा पाया।
सेठ जी की तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। उधर उच्च सरकारी अधिकारी माथुर साहिब की पिछली रात की पार्टी की खुमारी प्रात: साढ़े आठ बजे टूटी तो उन्होंने आदत के अनुसार आंखें मीचे ही मीचे बगल में लेटी मिसेज माथुर की ओर हाथ बढ़ाया तो चिर परिचित एवं कटे बालों, क्षीण कटि, कसी देह, लिपे पुते चेहरे वाली के स्पर्श के अभ्यस्त उनके हाथों को एक अनजान मोटी पिलपिली भारी गठरी का सा भान हुआ और वह चिहुंक कर उठ बैठे। ट्रक ड्राइवर सरदार बंतासिंह की आँख खुली तो देखा कि अपनी दलजीत कौर की जगह एक मद्रासिन खड़ी अय-यय-यो कर रही है।
संक्षेप में यह कि हर घर में नक्शा ही बदला हुआ था। कल्लू रिक्शेवाले से लेकर सेठ गरीबदास तक, महावीर पान वाले से लेकर मंत्री भैरोप्रसाद तक, सरदार करनैल सिंह से लेकर मुखर्जी मोशाय तक सब अपने अपने घर में अचानक आए इस परिवर्तन से भौंचक थे, भ्रमित थे, भयभीत थे, यह स्थिति केवल पतियों की ही नहीं थी, पत्नियां भी इस नई स्थिति से सकते की सी हालत में आई हुई थी। उनकी भी बोलती बंद थी।
कहने की आवश्यकता नहीं कि जरा सी देर में ही कोहराम मच गया। सब का मोहभंग हो गया। हर तरफ त्राहि-त्राहि मच गई, सब को अपने अपने पति और अपनी अपनी पत्नी तथा उनकी अच्छाइयां याद आने लगीं। हर ओर से अपना पति और अपनी पत्नी वापस पाने हेतु गुहार उठने लगी। करुणामयी मां पार्वती से अपनी संतान की यह दशा भी नहीं देखी गई। उनके निवेदन पर भगवान भोलेनाथ ने पुन: यथास्थिति बहाल कर दी।
अब हर फिर पति अपनी पत्नी से दुखी है और हर पत्नी अपने पति से खिन्न और असंतुष्ट।