संसार के सर्वाधिक प्राचीनतम ग्रंथ वेद में ईश्वर को अनन्त गुणों के अनुसार असंख्य नामों से संबोधित किया गया है, जिनमें से एक नाम शिव भी है। जिस प्रकार परमेश्वर के अनन्त गुण, कर्म, स्वभाव हैं, उसी प्रकार उसके अनन्त नाम भी हैं। उनमें से प्रत्येक गुण, कर्म और स्वभाव का एक-एक नाम है। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में परमात्मा को शिव सहित सौ से अधिक नामों से संबोधित किया है। निराकार ईश्वर का नाम शिव है। शिव का अर्थ है- जो कल्याणकारी हो। ईश्वर कल्याणकारी है, इसलिए उसका एक नाम शिव भी है। शिवु कल्याणे धातु से शिव शब्द सिद्ध होता है। बहुलमेतन्निदर्शनम् इससे शिवु धातु माना जाता है, जो कल्याणस्वरूप और कल्याण का करने वाला है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम शिव है।
भगवान शिव भारत के सबसे रहस्यमय और पूजनीय देवताओं में से एक हैं। ऋग्वेद में रुद्र नामक देवता का उल्लेख है। उसमें शिव का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। शिव की कल्पना का स्पष्ट उल्लेख यजुर्वेद के सोलहवें अध्याय के मंत्रों में हुआ है। यजुर्वेद के कई मंत्र ऋग्वेद के रुद्र का शिव में परिवर्तित होने का स्पष्ट अनुभव कराते हैं-
या ते रुद्र शिवा तनूरघोरापापकाशिनी ।
तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि।। -यजुर्वेद 16/2
अर्थात- हे रुद्र और सत्योपदेशों से सुख पहुंचाने वाले परमात्मन् ! जो तेरी शिवा अर्थात कल्याणकारी, अघोरा अर्थात उपद्रवरहित, अपापकाशिनी अर्थात धर्म का प्रकाश करने वाली काया है, उस शान्तिमय शरीर से आप हमें देखें, अर्थात हमारे लिए कल्याणकारी आदि होइए, और अपने उपदेशों से हमें सुखों की ओर अग्रसर कीजिए।
वैदिक, पौराणिक व प्राचीन ग्रंथों में अंकित शिव कथा, शिव के देवत्व और और आध्यात्मिकता से संबंधित विवरणियों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि ऋग्वेद में उल्लेखित रुद्र ही यजुर्वेद में शिव और फिर सामवेद में महादेव में परिणत हो गए। सर्वप्रथम वेदों में उल्लिखित रुद्र अर्थात भगवान शिव का वर्णन उनकी दिव्य पहचान पर प्रकाश डालता है। रुद्र का अर्थ है -गर्जना करने वाला, दहाड़ने वाले उग्र देवता। उन्हें आंधी- तूफान, विनाश और कायाकल्प से जुड़े एक उग्र देवता के रूप में चित्रित किया गया है। ऋग्वेद में अनेक मंत्रों में बुरी ताकतों से सुरक्षा के लिए रुद्र के आशीर्वाद का आह्वान किया गया है, जो रुद्र के विध्वंसक और रक्षक दोनों ही रूप अर्थात उनकी दोहरी प्रकृति को प्रदर्शित करता है। यजुर्वेद में सर्वप्रथम परमात्मा के लिए रुद्र के साथ शिव, शंकर, शम्भु, मयोभव, मयस्कर, शिवतर, गिरीश, सहस्राक्ष, पशुपति, नीलकण्ठ, कृष्णकण्ठ आदि नाम प्रयुक्त हुए हैं, जो कालांतर में शिव के विभिन्न नामों में शामिल होकर प्रतिष्ठित हो गए। और नित्य पूजनीय, वंदनीय हो गए। दैनिक संध्या -उपासना में प्रयुक्त होने वाले यजुर्वेद 16/41 मंत्र में परम पिता का स्मरण करते हुए कहा गया है-
नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च। -यजुर्वेद 16/41
अर्थात- जो मनुष्य सुख को प्राप्त कराने वाले परमेश्वर, सुखप्राप्ति के हेतु विद्वान, कल्याण करने और सब प्राणियों को सुख पहुंचाने वाले, मंगलकारी और अत्यन्त मंगलस्वरूप पुरुष का भी सत्कार करते हैं, वे कल्याण को प्राप्त होते हैं।
यजुर्वेद 16/41 के इस मन्त्र में शंभव, मयोभव, शंकर, मयस्कर, शिव, शिवतर शब्द आये हैं, जो एक ही परमात्मा के विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। शिव संस्कृत का शब्द है, जो शुभता और पवित्रता का प्रतीक है। इस चरण में, भगवान शिव को हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों पर ध्यान कर रहे तपस्वी योगी के रूप में चित्रित किया गया है। वह वैराग्य, आत्मज्ञान और परोपकार के आदर्शों का प्रतीक हैं। यजुर्वेद शिव को ध्यान और आध्यात्मिकता के दिव्य आदर्श के रूप में महिमामंडित करता है। सामवेद में सर्वोच्च देवता महादेव का दर्शन होता है। सामवेद के अनेक मंत्रों में महादेव को सर्वोच्चता और महता सिद्ध की गई है। इसमें महादेव, रुद्र और शिव के रूप में अपने पिछले अवतारों को पार करते हुए भगवान शिव की दिव्यता की भव्यता को समाहित करते हैं। वह ब्रह्मांडीय व्यवस्था का अंतिम स्रोत, ब्रह्मांड का निर्माता, पालनकर्ता और संहारक है। सामवेद महादेव को उनकी सर्वशक्तिमानता और परोपकारी सर्वव्यापिता का चित्रण करते हुए एक लौकिक देवता के रूप में प्रतिष्ठित करता है। वेदों में उल्लिखित शिव का सिर्फ पर्वत पर वास नहीं है, बल्कि वह समस्त सौर मंडल में कण-कण में विद्यमान है। वेदों में ईश्वर को गुणों और कर्मों के अनुसार त्र्यंबकम भी कहा है, जो तीनों लोकों का स्वामी है-
ॐ त्र्यंबकम यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धंनांत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।
उपनिषदों में भी शिव की महिमा का वर्णन किया गया है। स ब्रह्मा स विष्णुः स रुद्रस्सः शिवस्सोऽक्षरस्सः परमः स्वराट्।
स इन्द्रस्सः कालाग्निस्स चन्द्रमाः।। -कैवल्योपनिषद 1/8
अर्थात- वह जगत का निर्माता, पालनकर्ता, दण्ड देने वाला, कल्याण करने वाला, विनाश को न प्राप्त होने वाला, सर्वोपरि, शासक, ऐश्वर्यवान, काल का भी काल, शान्ति और प्रकाश देने वाला है।
मांडूक्य उपनिषद में भी शिव का स्पष्ट चित्रण हुआ है, और उसके गुणों व कर्मों को बताया गया है कि इस संसार की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय का कर्ता एक ही है, जो सब प्राणियों के हृदयाकाश में विराजमान है, जो सर्वव्यापक है, वही सुखस्वरूप भगवान् शिव सर्वगत अर्थात सर्वत्र प्राप्त है। श्वेताश्वेतर उपनिषद 4/14 में इसे स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि परमात्मा अत्यन्त सूक्ष्म है, हृदय के मध्य में विराजमान है, अखिल विश्व की रचना अनेक रूपों में करता है। वह अकेला अनन्त विश्व में सब ओर व्याप्त है। उसी कल्याणकारी परमेश्वर को जानने पर स्थाई रूप से मानव परम शान्ति को प्राप्त होता है। स्पष्ट है कि वेद व उपनिषद ग्रंथ उस असंख्य नामधारी एकमात्र परमात्मा शिव को निराकार रूप में चित्रित करते हैं। वेद व एकादशोपनिषद ग्रंथों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि भगवान शिव मंत्र के देवता हैं। वे अनंत रूप से शुद्ध हैं। वह प्रकृति के तीन गुणों अर्थात सत्व, रजस और तमस से प्रभावित नहीं हैं। वे शुभता और पूर्णता के प्रतीक हैं। शिव सभी मंत्र के पीछे की शक्ति हैं। शिव अमरता के स्वामी हैं। शिव वे हैं, जिन्होंने मृत्यु पर विजय प्राप्त की है। इस प्रकार शिव कथा समय और स्थान की सीमाओं से परे है। ऋग्वेद के उग्र रुद्र से लेकर यजुर्वेद का दयालु शिव और फिर सामवेद का सर्वव्यापी महादेव तक, और पुराणों के भगवान शिव मानव अनुभव और आध्यात्मिक विकास के इतिहास की प्रतिविम्ब का प्रतीक हैं। आंतरिक परिवर्तन और आत्मज्ञान के मार्ग को रोशन करती वेदों में उनकी उपस्थिति इस बात का स्मरण कराती है कि देवत्व हमारे भीतर है, जागृत होने की प्रतीक्षा कर रहा है।
पौराणिक ग्रंथों में आदियोगी शिव का वर्णन है। आदियोगी ने प्राचीन ऋषियों, सप्तर्षियों को योग और ध्यान का ज्ञान योग सूत्र के रूप में प्रदान किया था। इस ज्ञान ने विभिन्न योगाभ्यासों की नींव रखी, जिनका पालन वर्तमान में भी किया जाता है। आदियोगी को आध्यात्मिक ज्ञान के स्रोत और परम गुरु के रूप में सम्मानित किया जाता है। वर्तमान में शिव अथवा महादेव सनातन संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हें भैरव के नाम से भी जाना जाता है। इनके अष्टोतरशतनाम, सहस्त्रनाम आदि प्रचलित हैं। मान्यता है कि शिव का ध्यान करने से वे आंतरिक शांति, आत्म साक्षात्कार और जन्म- मृत्यु के चक्र अर्थात मोक्ष से मुक्ति पाया जा सकता है। महाशिवरात्रि अर्थात शिव की महान रात्रि, भगवान शिव के सम्मान में मनाया जाने वाला एक प्रमुख भारतीय त्योहार है। मान्यता है कि इस रात्रि में ही आदियोगी ने सृजन, संरक्षण और विनाश का लौकिक नृत्य किया था। इस शुभ दिन पर भक्त उपवास रखते हैं, मंदिरों में जाते हैं और प्रार्थना और ध्यान में संलग्न होते हैं।