रूस-यूक्रेन युद्ध को चलते हुए दो साल हो गए हैं लेकिन अभी इसके खत्म होने के आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं । अगर हम इस युद्ध का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि इस युद्ध से किसी का फायदा नहीं हुआ है । यह सच है कि युद्ध से किसी का फायदा नहीं होता और यह केवल विनाश लाता है । इसका दूसरा पहलू यह है कि युद्ध किसी न किसी उद्देश्य को लेकर लड़ा जाता है । इस युद्ध में रूस और यूक्रेन दोनों का बहुत नुकसान हुआ है और न जाने कितना और होने वाला है । दोनों देशों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है । यूक्रेन को अमेरिका और पश्चिमी देशों की सहायता मिल रही है । हमास-इजरायल युद्ध के बाद इस सहायता में कुछ कमी आई है लेकिन यूक्रेन फिर भी युद्ध कर रहा है । युद्ध के कारण रूस को हथियारों की कमी हो गई है लेकिन ईरान और उत्तर कोरिया उसकी इस कमी को पूरा कर रहे हैं ।
यूक्रेन अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहा है क्योंकि रूस धीरे-धीरे उसके इलाकों पर कब्जा करता जा रहा है । रूस ने यूक्रेन के दोनेत्सक, लुहान्सक, जापरोजिया, खेर्सोन और खारकीव के कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया है । रूस ने कुछ दिन पहले ही यूक्रेन के एक और महत्वपूर्ण शहर अवदीवका पर भी कब्जा कर लिया है । रूस ने युद्ध पर लगभग पूरा नियंत्रण कर लिया है और वही युद्ध की दिशा तय कर रहा है लेकिन यूक्रेन समर्पण करने को तैयार नहीं है । यह जिद्द तब भी जारी है जब लगभग पूरा यूक्रेन खंडहर बन चुका है । यूक्रेन के हजारों नागरिक मारे जा चुके हैं और लाखों लोग शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं । अनाथ बच्चों से कैम्प भरते जा रहे हैं । यूक्रेन की आधी आबादी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रही है क्योंकि उनके आवास खत्म हो चुके हैं । बिजली, पानी और स्वास्थ्य व्यवस्था खत्म हो चुकी है । 60 लाख से ज्यादा लोग यूक्रेन छोड़कर दूसरे देशों में शरण ले चुके हैं । मुझे हैरानी होती है कि पूरा यूक्रेन बरबादी की कगार पर पहुंच चुका है लेकिन राष्ट्रपति जेलेंस्की अभी भी युद्ध रुकवाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं । कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि रूस पूरे यूक्रेन पर कब्जा करना चाहता है । सवाल यह है कि रूस जिस देश पर कब्जा करना चाहता है वो उसे पूरी तरह से बर्बाद करने पर क्यों तुला हुआ है ? अगर रूस सच में यूक्रेन पर कब्जा कर लेता है तो उसे ही यूक्रेन का पुनर्निर्माण करना होगा । रूस के लिए पूरी तरह से बरबाद यूक्रेन को दोबारा खड़ा करना आसान नहीं होगा । इसलिए ऐसा नहीं लगता है कि रूस पूरे यूक्रेन पर कब्जा करने वाला है ।
रूस को भी इस युद्ध से बहुत नुकसान पहुंचा है । रूस के तीन लाख साठ हजार से ज्यादा सैनिक युद्ध से बाहर हो चुके हैं क्योंकि उनमें से कुछ मारे गये हैं और कुछ घायल हैं । रूस ने इस युद्ध में बहुत धन खर्च किया है । इस तरह से देखा जाये तो रूस को जन और धन की बहुत हानि हुई है । पूरी दुनिया हैरान है कि यूक्रेन जैसा छोटा देश रूस जैसी शक्ति के सामने दो साल से कैसे टिका हुआ है । विश्व की दूसरी सैन्य शक्ति के सामने यूक्रेन का संघर्ष हैरान करने वाला है । यूक्रेन ने सैन्य विशेषज्ञों की इस राय को गलत साबित कर दिया है कि रूस के सामने वो सिर्फ कुछ दिन ही टिक सकता है । इसकी वजह यह है कि यह युद्ध अब यूक्रेन की सेना नहीं बल्कि वहां की जनता लड़ रही है और उसे अमेरिका और पश्चिमी देशों की पूरी मदद मिल रही है । वास्तव में अमेरिका और पश्चिमी देश रूस से छद्म युद्ध लड़ रहे हैं और यूक्रेन बीच में पिस रहा है । अमेरिका और पश्चिमी देश रूस को इस युद्ध में फंसा कर बरबाद कर देना चाहते हैं । कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि यह देश इस युद्ध की आड़ में पुतिन को सत्ता से भी हटाना चाहते हैं । अब इन देशों को अपने उद्देश्य की पूर्ति होना संभव दिखाई नहीं दे रहा है इसलिए अब यूक्रेन को हथियारों और फंड की कमी हो रही है ।
सबके मन में यह सवाल उठ रहा है कि इस युद्ध की जरूरत क्या थी ? ऐसा माना जा रहा है कि रूस ने ही यूक्रेन पर हमला किया है क्योंकि युद्ध की शुरुआत तो रूस द्वारा ही की गई थी । अब सवाल उठता है कि रूस ने ऐसा क्यों किया, क्या उसने यूक्रेन पर कब्जा करने के लिए ऐसा किया है । वास्तव में इस युद्ध के लिये अमेरिका और पश्चिमी देश पूरी तरह से जिम्मेदार हैं क्योंकि उन्होंने ही यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनने के लिए उकसाया था । रूस चाहता था कि यूक्रेन नाटो का सदस्य न बने और वो इसके लिए यूक्रेन को लगातार चेतावनी दे रहा था लेकिन यूक्रेन ने कोई परवाह नहीं की । वास्तव में रूस नाटो को अपनी सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा मानता है और वो नहीं चाहता कि सोवियत संघ के देश उसके सदस्य बनें । उसका कहना है कि नाटो का गठन सोवियत संघ के मुकाबले के लिए किया गया था । जब सोवियत संघ का विघटन हो गया तो कहा गया कि अब नाटो को खत्म कर देना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं किया गया । इसके विपरीत नाटो देशों की संख्या बढ़ती जा रही है और ये दिनोंदिन रूस के नजदीक जा रहा है । ऐसा लगता है कि रूस को यूक्रेन पर हमला करने के लिए मजबूर किया गया है । रूस की जनता युद्ध के खिलाफ है लेकिन वो इसके बावजूद पुतिन के साथ खड़ी हुई है । रूस की जनता भी नाटो को अपने लिए खतरा मानती है । पुतिन को नुकसान पहुंचाने की अमेरिका और पश्चिमी देशों की रणनीति असफल होती दिखाई दे रही है । इस युद्ध की आड़ में पुतिन को खलनायक बनाने की योजना काम नहीं कर रही है । दुनिया भी इस युद्ध से बोर हो चुकी है और वो सिर्फ अन्तिम परिणाम का इंतजार कर रही है । अमेरिका और उसके साथी देश रूस पर लगातार प्रतिबंध लगाते जा रहे हैं लेकिन रूस को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है । इससे इन देशों की परेशानी बढ़ती जा रही है ।
रूस पर प्रतिबंध के बाद भारत ने रूस से बहुत ज्यादा तेल खरीदना शुरू कर दिया है । ये देश चाहते हैं कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे लेकिन भारत ने अपने हितों से समझौता करने से इंकार कर दिया है । भारत का कहना है कि पश्चिमी देशों ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है, अगर भारत रूस से तेल नहीं खरीदता है तो तेल की कीमतें बहुत बढ़ जायेगी । गरीब देशों के लिए तेल खरीदना मुश्किल हो जायेगा । भारत का कहना है कि उसने तो रूस से तेल खरीद कर दुनिया को बचा लिया है । पश्चिमी देशों में भी आर्थिक मंदी आ रही है, इसलिए इससे उन्हें भी फायदा हो रहा है । इसका दूसरा पहलू यह भी है कि भारत ने रूस से ज्यादा तेल खरीद कर उसे पूरी तरह से चीन की गोद में जाने से रोक दिया है । भारत का कहना है कि दुनिया के लिए रूस नहीं बल्कि चीन ज्यादा बड़ा खतरा है ।
अब सवाल उठता है कि पुतिन को इस युद्ध से क्या हासिल हो रहा है ? अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा उन्हें खलनायक बनाने की योजना पर उन्होंने पानी फेर दिया है । गाजा पर इजरायल के हमले ने अमेरिका और अन्य देशों की नैतिकता की पोल खोल कर रख दी है । एक तरफ ये देश रूसी हमलों में निर्दोष नागरिकों की मौत पर सवाल खड़े करते हैं तो दूसरी तरफ इजरायल के हमलों में होने वाली मौतों पर चुप्पी साध लेते हैं । इन देशों की पूरी मदद के बावजूद रूस ने इस युद्ध को अपने पक्ष में कर लिया है । वो ही निर्धारित कर रहा है कि युद्ध में क्या होगा । वो धीरे-धीरे यूक्रेन को बर्बाद करता जा रहा है और ये देश कुछ नहीं कर पा रहे हैं । इस युद्ध ने नाटो पर सवाल खड़े कर दिये हैं और अब यूरोपीय देश भी डरने लगे हैं । नाटो की सदस्यता पाने के लिए लालायित देशों को रूस ने एक सबक दे दिया है कि वो इस मामले में जल्दबाजी न करें । अमेरिका और पश्चिमी देश पूरी कोशिश करने के बावजूद यूक्रेन को रूस से नहीं बचा सके हैं, यह संदेश पूरी दुनिया को चला गया है । रूस ने इन देशों के प्रतिबंधों को बेअसर साबित करके दिखा दिया है कि उनकी मनमर्जी चलने वाली नहीं है ।
ये युद्ध रूस की बर्बादी के लिए किया गया था लेकिन इस युद्ध ने पश्चिमी देशों को बर्बाद कर दिया है । मेरा मानना है कि रूस पूरे यूक्रेन पर कब्जा नहीं करेगा बल्कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की असफलता का स्मारक बनाकर दुनिया के सामने पेश कर देगा ताकि दुनिया देख सके कि इन देशों के उकसावे में आकर कैसे एक देश ने खुद को बरबाद कर लिया । इस युद्ध ने पुतिन को दोबारा एक नायक की तरह दुनिया के सामने पेश कर दिया है । इन देशों की लाख कोशिशों के बाद भी पुतिन की रूस की सत्ता पर मजबूत पकड़ ढीली नहीं पड़ी है । रूस की आर्थिक व्यवस्था को स्थिर रखकर उन्होंने अपनी लोकप्रियता भी कायम रखी है ।
राजेश कुमार पासी