हमारे विचारों का हमारे शरीर पर सीधा प्रभाव पड़ता है यदि विचार अच्छे हैं, आशावादी हैं, स्वस्थ हैं तो शरीर भी निरोग रहता है, तन्दुरुस्त रहता है। प्रत्येक अंग अपना कार्य ठीक से कर सकते हैं। यदि स्वास्थ्य ठीक न हो तो हमारा जीना दूभर हो जाता है। अत: अपने मन को, अपने विचारों को कभी निराशा से न घिरने दें।
मन विचारों का भण्डार है। पूरा सिन्धु है। अनन्त कोष है। मन कभी आराम से नहीं रहता। सदा कार्य करता रहता है। इसमें कोई न कोई विचार हर समय चलता ही रहता है।
ध्यान रहे कि हमारे मनोमस्तिष्क में अक्सर जिस प्रकार के विचार चलते रहते हैं जिनके साथ हम अपने अहम् को जोड़ लेते हैं, वैसी ही हमारी चेतना और शरीर बन जाता है। इसीलिए तो कहा है कि मन में हानिकारक विचार उठने ही न दें। यदि उठें तो इन्हें तुरन्त झटक दें। जितना जल्दी हो, उन्हें निकाल फेंके। तभी तो रह सकेंगे स्वस्थ और क्रियाशील।
हानिकारक विचारों को अपने मन में न आने दें बल्कि इसकी जगह लाभदायक विचार पालें। यदि निराशा है तो आशा लाने का प्रयत्न करें। यदि भय है तो निडर होने की कोशिश करें। यदि असफलता का आभास होने लगा है तो सफल होने की ही सोचें। घृणा का विचार उठता है तो इसकी जगह प्रेम जगाएं। गिरने का डर है तो उठने का प्रयत्न करें।
बीमार पड़ गए हैं तो यह न सोचें कि बीमार ही रहेंगे। सोचें कि आप शीघ्र ठीक होंगे और जरूर होंगे। सोचें कि आप सदा स्वस्थ रह सकते हैं। रोग का क्या आज नहीं तो कल दुम दबाकर भाग खड़ा होगा। पूर्ण स्वस्थ रह सकने की बात करें।
जो डरता है वही मरता है। जो बीमार होने की सोचता रहता है वह इस नकारात्मक सोच के कारण ठीक भी नहीं हो पाता।
उम्मीद को कभी न छोड। स्वस्थ विचार रखेंगे तो शरीर भी स्वस्थ हो जाएगा। हां, इसके साथ जरूरी परहेज, उपचार, आहार, वातावरण पर भी ध्यान दें ताकि आपके आशावादी विचार और ये सब मिलकर आपको पूरी तरह स्वस्थ रख सकें। अपने आशावादी विचारों के साथ अपने आराध्यदेव को भी कभी न भुलाएं। उससे भी स्वस्थ रखने की प्रार्थना करें। दवा व दुआ अवश्य काम करेंगे।