मेरा देश – मेरा परिवार

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चिंतन जीवन का आधार है। कोई आत्म अर्थात अपने आप के लिए चिंतन करता है, कोई परिवार के लिए, कोई समाज के लिए और कोई राष्ट्र के लिए चिंतन करता है। जब राष्ट्र के लिए चिंतन होता है तो उसमें आत्म, परिवार, समाज सभी मिल जाते हैं। इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है राष्ट्र के लिए चिंतन। हमारे शास्त्रों में पृथ्वी और पूरे चराचर को ही अपना घर-परिवार मानकर चिंतन हुआ है, इसलिए वसधैव कुटुम्बकम् कहा जाता है। पूरी वसुधा ही हमारा कुटुंब, हमारा परिवार है। बच्चों को पढ़ाते हुए एक उक्ति जरूर प्रयोग में लाई जाती है, परिवार बच्चों के सद्गुणों की पाठशाला है। कहने का भाव है कि बच्चा जिस परिवेश में रहता है, उसके स्वभाव, आदतों और कार्यशैली में वैसे ही गुण- अवगुण दिखाई दे जाते हैं। एक कहावत और भी है कि- मां पर पुत्र, पिता पर घोड़ा, ज्यादा नहीं तो थोड़ा-थोड़ा। बच्चों के अंदर आदर, सत्कार, दया आदि गुण माँ के होते है, माँ ममता की देवी है। बच्चे में शरारत होती है तो उसे पिता का गुण मान लिया जाता है। इस कहावत से यही भाव प्रकट होता है।

विचार करें और समझे तो हमारे संत, महात्मा, योगी, विचारक, चिंतक, राष्ट्र सेवक सभी विश्व को और अपनी मातृभूमि के हर एक जीव को, अपने परिवार का अंग मानते हैं। इनके उत्थान, कल्याण, सेवा में ही अपना जीवन बिता देते हैं। कुछ लोग अपने माता-पिता, पति-पत्नी, बच्चों, भाई-बहनों को ही परिवार मानकर आगे बढ़ते हैं। कुछ पति-पत्नी, बच्चों को ही परिवार मानते हैं। कुछ युवक-युवतियाँ परिवार बसाना या परिवार बढ़ाना ही नहीं चाहते हैं। केवल दैहिक सुख के चक्कर में अकेला जीवन जीकर ही अपना जीवन बिता देना चाहते हैं। विदेशीपन की छाया में जीने वाले यह युवक-युवतियाँ वर्तमान पीढ़ी को तो खराब कर ही रहे हैं, साथ ही अपनी संस्कृति को भी खराब कर रहे हैं क्योंकि ऐसा करने वाले अब विदेशी नहीं यह अपने ही देश के ये युवक-युवतियाँ हैं।

यह तो रही सामान्य चिंतन और परिवार को लेकर एक सामान्य सी बात। जब हम भारत की बात करते हैं, तो हमें मानना, समझना चाहिए की हम सभी इस भारतवर्ष के परिवार का हिस्सा हैं। भारत को हम माता कहकर पुकारते हैं और भारत माता की जय के जयकारे लगाते हैं। हम इसकी संतान हैं। पूरा भारत और इसके अंदर रहने वाले मनुष्य और अन्य प्राणी सभी हमारे परिवार का अंग हैं। जब हम किसी विदेशी भूमि पर जाएंगे, चाहे मनुष्य हो या अन्य जीव, उसके बारे में यही कहा जाएगा कि यह भारत से आया है। इस दृष्टि से हम सभी भारतीय परिवार का अंग हैं।

भारतीय सांसद हो, राज्यों की विधानसभाओं में बैठने वाले विधायक और उसके राजनेता, सभी भारतीय परिवार का हिस्सा हैं। यह सभी भारतीय परिवार की भलाई के बारे में सोचते हैं, पक्ष-विपक्ष के सभी लोग भारतीय परिवार के अंग हैं। भारत सरकार की नौकरी करने वाले, भारत सरकार की सेवा और मदद करने वाले, सरकारी और निजी सभी कार्यालय, कार्यालयों में काम करने वाले व्यक्ति, सभी भारतीय परिवार का अंग हैं। खेतों में काम करने वाले किसान, मजदूर आदि सभी भारतीय परिवार का अंग हैं। जब हम किसी पद-प्रतिष्ठा पर पहुंच जाते हैं और जन सेवा के काम में उतरकर, ऊँचे पद पर पहुंचते हैं, उस समय हमें बहुत सोच समझकर बोलना चाहिए। हमारा एक-एक शब्द सभी के लिए आदर्श होना चाहिए। शब्द किसी को आघात ना पहुंचाएं, इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

भारतवर्ष का पूरा भूखंड, इसके वृक्ष, वनस्पति, जीव-जंतु, लता-पता, मनुष्य सभी भारतीय परिवार का हिस्सा हैं। हमारे इस परिवार को आगे बढ़ाने के लिए, इसकी रक्षा और सम्मान के लिए, हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने दिन-रात, अपना-पराया कुछ नहीं देखा। अपने रक्त की एक-एक बूंद इस भूमि के लिए न्यौछावर कर दी। देश को अपना घर-परिवार मानने वाले, इन देश भक्तों ने हमें आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया। हमें अपने देशभक्तों के बलिदान पर गर्व है। हमारे भारतीय परिवार में किसी भी प्रकार का कोई कुविचार आगे नहीं बढ़ने देना चाहिए। हमेशा सुविचार को ही आगे बढ़ना चाहिए। सभी का साथ, सभी का विकास करना और होना चाहिए।

डॉ. नीरज भारद्वाज