भारतीय जनता पार्टी के 195 उम्मीदवारों की पहली सूची में राजस्थान की 15 लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों की गई घोषणा में चुरू लोकसभा सीट से मौजूदा संासद राहुल कस्बा का टिकट काटकर देवेन्द्र झाझडिया को प्रत्याशी बनाया गया है। इस सीट पर 1999 से भारतीय जनता पार्टी का कब्जा रहा है। चुरू लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाये जाने के बाद राजस्थान व देश की राजनीति में देवेन्द्र झाझडिया चर्चित चेहरा बन गये है। एक खिलाड़ी के रूप में झाझडिया विश्वस्तर पर चर्चित रहे है, लेकिन एक राजनेता बतौर प्रथम बार राष्ट्रीय स्तर पर यह नाम चर्चा का विषय बना हुआ है। मोदी के प्रिय माने जाने वाले देवेन्द्र झाझड़िया चुरू जिले के झाझडिया की ढाणी के रहने वाले है।
जाट परिवार में जन्म लेने वाले देवेन्द्र बचपन से ही होशियार व प्रतिभावान विद्यार्थी रहे है। बाल्यावस्था में घटी एक घटना का उल्लेख करते हुए देवेन्द्र झाझड़िया बताते हैं-जब वे 8-9 साल के थे तब उन्हें तेज बिजली का झटका लगा। वे कहते हैं-मैं चुरू राजस्थान स्थित अपने गांव में एक पेड़ पर चढ रहा था, तभी अनजाने में पेड के ऊपर से जा रही ग्याहर हजार वोल्ट बिजली के तार को हाथ से छू लिया। वे बताते है कि यह दुघर्टना इतनी भंयकर थी कि मेरे बायें हाथ को तुरन्त काटना पडा। मैं इस भयंकर हादसे से उबर पाउगां या नहीं, यह मेरे सामने संशय था। जब मुझे पेड़ से उतारा गया तो मुझे मृत घोषित कर दिया गया। मेरा बायां हाथ पुरी तरह से जल चुका था। जब मुझे होश आया तब डाक्टर ने बताया कि मैं जीवन में कभी शक्तिशाली नहीं बन पाउगां। शायद ईश्वर की मर्जी कुछ ओर ही थी।
10 जून 1981 को जन्मे झाडडिया ने बुलंद होशले के साथ संघर्ष जारी रखा। एक दिन विद्यालय के किसी आयोजन में उनकी प्रतिभा की पहचान कोच आरडी शर्मा ने की। देवेन्द्र झाझडिया ने अपने व्यक्तिगत कोच आरडी सिंह को 2004 में पैरालंपिक स्वर्ण पदक के लिए श्रेय दिया और कहा वे मुझे बहुत सलाह देते हैं और प्रशिक्षण के दौरान मेरी मदद करते है। बाद में आर डी शर्मा को द्रोणाचार्य पुरस्कार से भी सम्मानित गया। भारतीय पैरालंपिक खिलाड़ी के रूप में देश का नाम रोशन करने वाले झाझडिया अब राजनीति में भी प्रवेश कर रहे है। वे पैरालंपिक में दो स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय पैरालिंपियन है। रियो डी जनेरियो 2004 में पैरालंपिक एथेंस में उन्होंने पहला स्वर्ण पदक जीता था, 2016 ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक खेल में, उन्होंने अपने पहले रिकॉर्ड को बेहतर बनाते हुए एक ही आयोजन में दूसरा स्वर्ण पदक जीता। देवेन्द्र को फिलहाल पैरा चैपियंस कार्यक्रम के माध्यम से गो एक्सपोर्ट फाउंडेशन द्वारा समर्थित किया जा रहा है।
इसके अलावा 2003 में इन्होंने एथेंस में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले पैरालम्पिक खेलों के लिए योग्यता प्राप्त की। खेल में उन्होंने 62.15 मीटर की दूरी के साथ एक नया विश्व रिकॉर्ड बना दिया था. इससे पहले का रिकॉर्ड था 57.77 था। इसके अलावा ल्योन, फ्रांस में भारतीय दंड संहिता एथलेटिक्स विश्व चैंपियनशिप में 2013 में सफलता प्राप्त की जब उन्होंने एफ 46 भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीता था। इसके बाद दक्षिण कोरिया में इंचियॉन में 2014 एशियाई पैरा खेलों में रजत पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया था। उन्होंने 2020 में टोक्यो पैरा-ओलंपिक खेलों में रजत और 2013 में आईपीसी विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था।
देवेन्द्र झाझडिया पद्मश्री पुरस्कार पाने वाले पहले पैरा एथलीट है। 2012 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित होने वाले देश के पहले पैरा-एथलीट रहे हैं। उन्हें 2017 में भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान मेजर ध्यानचंद खेल रत्न और 2022 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा देवेंद्र झाझरिया ने भारतीय पैरालंपिक समिति (पीसीआई) में अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनाव में 28 फरवरी को नामांकन दाखिल किया है। उनका इस चुनाव में निर्विरोध चुना जाना भी तय है। दरअसल, पीसीआई में शीर्ष पद के लिए चुनाव लड़ने वाले वे एकमात्र उम्मीदवार थे। भारतीय रेल के एक पूर्व कर्मचारी झाझड़िया वर्तमान में भारतीय खेल प्राधिकरण के साथ कार्यरत है। उनकी पत्नी मंजू एक पूर्व राष्ट्रीय स्तर पर कबड्डी खिलाड़ी है। उनकी एक बेटी, जिया और एक पुत्र, कवियन है। फिलहाल राजनीति के क्षेत्र में प्रवेश कर रहे झाझडिया का राजनीतिक भविष्य भी उज्ज्वल नजर आता है।
डा वीरेन्द्र भाटी मंगल