‘भारत के डब्ल्यूटीओ में चीन समर्थित निवेश समझौते को रोकने से बहुपक्षीय समझौते बढ़ेगे’

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नयी दिल्ली,  अबू धाबी में हाल में संपन्न डब्ल्यूटीओ की मंत्रिस्तरीय बैठक में चीन की अगुवाई वाले निवेश सुविधा समझौते को रोकने के भारत के कदम से बहुपक्षीय समझौतों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। विशेषज्ञों ने यह बात कही।

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (एमसी) की बैठक एक मार्च को देर रात संपन्न हुई। यह बातचीत पहले 29 फरवरी को खत्म होनी थी, लेकिन कृषि और मछली पालन सब्सिडी तथा ई-कॉमर्स व्यापार शुल्क रोक अवधि जैसे प्रमुख मुद्दों पर सदस्यों के बीच गतिरोध के चलते इसे आगे बढ़ाया गया।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञों ने कहा कि डब्ल्यूटीओ में आईएफडीए (विकास समझौते के लिए निवेश सुविधा) को शामिल करने के विरोध में भारत के रुख से बहुपक्षीय समझौतों को बढ़ावा मिलेगा।

चीन के नेतृत्व में 120 से अधिक देशों के एक समूह ने एमसी बैठक में ऐक्छिक समझौते के रूप में आईएफडीए को डब्ल्यूटीओ में शामिल करने के लिए दबाव डालने की कोशिश की। भारत और दक्षिण अफ्रीका सहित दूसरे देशों ने इसका विरोध किया।

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के संस्थापक अजय ने कहा कि अन्य देशों के साथ ही भारत भी निवेश सुविधा पर एक बहुपक्षीय ढांचे को लेकर सतर्क था। उन्होंने कहा कि अगर यह प्रस्ताव पारित हो जाता तो विकास और औद्योगीकरण रणनीतियों के लिए नीतिगत गुंजाइश सीमित हो सकती थी।

डब्ल्यूटीओ अध्ययन केंद्र के पूर्व प्रमुख अभिजीत दास ने कहा कि भारत का रुख डब्ल्यूटीओ को बहुपक्षीय समझौतों के लिए एक संस्था के रूप में संरक्षित करने में मदद करेगा, न कि ऐक्छिक समझौतों के लिए।

बहुपक्षीय समझौते में सभी 166 सदस्यों के बीच आम सहमति बनानी जरूरी है, क्योंकि यही डब्ल्यूटीओ का मूल आधार है। दूसरी ओर, जब कुछ देशों का एक समूह किसी समझौते पर हस्ताक्षर करता है तो उसे ऐक्छिक समझौता कहा जाता है।

स्वदेशी जागरण मंच के अश्वनी महाजन ने भी कहा कि समझौते को रोककर भारत ने संप्रभुता और वैश्विक शांति की रक्षा की है। उन्होंने यह भी कहा कि नए मुद्दे चुपचाप डब्ल्यूटीओ के एजेंडे में शामिल किए जा रहे हैं। ऐसे में डब्ल्यूटीओ का मूल एजेंडा कमजोर हो सकता है।