ओडिशा : बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और धान खरीद में अनियमितता के आरोप हो सकते हैं निर्णायक मुद्दे

भुवनेश्वर, निर्वाचन आयोग के ऐलान के साथ ओडिशा में लोकसभा की 21 सीट के साथ-साथ राज्य विधानसभा की 147 सीट पर चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। इस चुनाव में सियासी दलों द्वारा विभिन्न मुद्दे उठाए जाएंगे जिनमें बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था, धान खरीद में कथित अनियमितता, चिटफंड और खनन घोटाले के मुद्दे अहम हो सकते हैं।

ओडिशा में चार चरणों 13 मई, 20 मई, 25 मई और एक जून को मतदान होगा।

मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजद) ने पहले ही राज्य की सत्ता में 24 साल पूरे कर लिए हैं।

गत पांच वर्षों में, बीजद ने विभिन्न विधेयकों और नीतियों में केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार का समर्थन किया है और यहां तक कि संसद के पटल पर खुले तौर पर घोषणा की है कि राज्य को विकासात्मक परियोजनाओं में केंद्र से आवश्यक समर्थन मिल रहा है। ऐसे में बीजद का विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर निशाना साधने का हथियार कुंद पड़ता नजर आता है।

विपक्षी भाजपा ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वह ‘उड़िया अस्मिता’ के मुद्दे पर चुनाव मैदान में जाएगी क्योंकि राज्य प्रशासन ज्यादातर गैर-उड़िया अधिकारियों द्वारा चलाया जाता है और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक नेताओं के बजाय गैर-उड़िया अधिकारियों पर निर्भर हैं।

ओडिशा के प्रमुख चुनावी मुद्दे

1. बेरोजगारी और पलायन : यह भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए बड़ा चुनावी मुद्दा होने की संभावना है। दोनों दलों के मुताबिक पटनायक 24 साल से राज्य की सत्ता में हैं लेकिन वह ओडिशा से युवाओं के पलायन को रोकने में ‘विफल’ रहे हैं। उनके मुताबिक सरकार पुरुषों और महिलाओं को रोजगार देने में भी ‘विफल’ रही है। विपक्षी दल भर्ती में घोटाले के आरोप को भी जोर-शोर से उठा सकते हैं।

2. कानून और व्यवस्था: राज्य की कानून-व्यवस्था काफी हद तक नियंत्रण में है, फिर भी ओडिशा में महिलाओं के खिलाफ अपराध में वृद्धि हुई है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इसे मुद्दा बना चुके हैं।

3. भ्रष्टाचार : चुनाव में भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दों में से एक है। हालांकि, ओडिशा में इस बार भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ भेदभाव जैसे आरोप भी जुड़ गए हैं। विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, वहीं विपक्षी दलों ने इस बार अतिरिक्त आरोप लगाए हैं कि पीएमएवाई और अन्य योजनाओं के लाभार्थियों का चयन राजनीतिक आधार पर किया जाता है, न कि तटस्थ तरीके से। कांग्रेस ने राज्य सरकार द्वारा विभिन्न कार्यों में गैर-उड़िया ठेकेदारों को प्राथमिकता देने पर भी सवाल उठाया है।

4. चिटफंट और खनन ‘घोटाला’ : गत वर्षों की तरह, विपक्ष चिटफंड ‘घोटाले’ के मुद्दे को उठाने को तैयार है क्योंकि पोंजी कंपनियों द्वारा धोखाधड़ी के शिकार लोगों को अभी तक उनका पैसा वापस नहीं मिला है। भाजपा और कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ दल के सदस्य चिट-फंड घोटाले और खनन अनियमितताओं दोनों में शामिल थे। उन्होंने दोनों घोटालों की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने की मांग की है।

5. धान खरीद में अनियमितता : नवीन पटनायक सरकार ने कालिया और बलिया (किसानों को वित्तीय सहायता योजना) जैसी कई किसान कल्याण योजनाएं लागू की हैं, लेकिन प्रशासन धान खरीद में कथित अनियमितताओं का समाधान करने में ‘विफल’ रहा है। आरोप है कि किसानों को धान की बिक्री पर उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिल रहा है और राज्य संचालित मंडियों में अनियमितताओं के कारण कभी-कभी किसानों को धान बेचने में परेशानी होती है।

6. पेयजल और सिंचाई : मतदान भीषण गर्मी के दौरान होगा, ऐसे में स्वाभाविक है कि पेयजल का मुद्दा चुनाव प्रचार पर हावी रहेगा। राज्य सरकार अभी तक सभी लोगों को नल से जल उपलब्ध नहीं करा पायी है। रायगढ़ा, गजपति जैसे कई आदिवासी बहुल जिलों में डायरिया और अन्य जलजनित बीमारियों का प्रकोप अकसर सामने आता है।

इन मुद्दों के अलावा दल कई स्थानीय समस्याएं भी उठा सकते हैं।