भारत रत्न पुरस्कार से मोदी ने दिया सबका साथ सबका विश्वास का संदेश

bharat-ratan

मोदी सरकार ने सबसे पहले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न पुरस्कार देने का ऐलान किया और फिर भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को ये पुरस्कार देने का ऐलान कर दिया गया । कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के ऐलान के बाद बिहार की सरकार ही बदल गई । नीतीश कुमार ने आरजेडी का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया ।  ये इंडी गठबन्धन को बड़ा झटका था लेकिन इसके बावजूद किसी ने भी कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने पर सवाल नहीं खड़ा किया । कुछ नेताओं ने यह जरूर कहा कि भारत रत्न देकर भाजपा ने नीतीश कुमार को अपने पाले में खींच लिया है । वास्तव में नीतीश गठबंधन से बाहर निकलने का बहाना ढूंढ रहे थे और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देना वो बहाना बन गया ।  आडवाणी को भारत रत्न देने पर सवाल खड़े किये गये लेकिन सबको पता है कि जो पार्टी शासन में होती है, वो अपने नेताओं को इस तरह से पुरस्कृत करती ही है ।

 

अब मोदी सरकार ने एक साथ तीन भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया है ।  इस तरह से देखा जाये तो इस साल भारत सरकार पांच महत्वपूर्ण लोगों को भारत रत्न देने जा रही है । इस पर भी कुछ विपक्षी नेताओं को एतराज है कि एक साल में तीन से ज्यादा लोगों को भारत रत्न नहीं दिया जाता है । इस पर सरकार का कहना है कि उसने बेकलॉग को देखते हुए इतने लोगों को पुरस्कार दिया है । अगर सरकार की बात सही है तो बेकलॉग को देखते हुए और भी लोगों को यह पुरस्कार दिया जा सकता है ।   कृषि क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न पुरस्कार देने के ऐलान से किसी को परेशानी नहीं हुई लेकिन किसानों के मसीहा कहलाने वाले चौधरी चरण सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री  नरसिंह राव को यह सम्मान देना पूरे विपक्ष को परेशान कर रहा है । एक तरफ विपक्ष सभी पुरस्कृतों को बधाई दे रहा है तो दूसरी तरफ सवाल भी खड़े कर रहा है ।  मोदी विरोधी मीडिया तो यहां तक आरोप लगा रहा है कि सरकार ने इन पुरस्कारों की घोषणा से भारत रत्न पुरस्कार का स्तर गिरा दिया है । मैं नहीं जानता कि इन तीन लोगों में से कौन ऐसा हैं, जिसे पुरस्कार देने से भारत रत्न का स्तर गिर गया है । मेरा मानना है कि ये सभी ऐसे महापुरुष हैं जिन्होंने अपने-अपने तरीके से देश की महत्वपूर्ण सेवा की है ।  इन पुरस्कृतों की योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाना उचित नहीं लगता है ।

 

                चुनावी वर्ष होने के कारण भारत रत्न पुरस्कारों के माध्यम से राजनीति करने का आरोप मोदी सरकार पर लगाया जा रहा है । सवाल उठता है कि भाजपा एक राजनीतिक पार्टी है और केन्द्र में उसकी सरकार चल रही है, वो अब राजनीति नहीं करेगी तो क्या करेगी ? भाजपा कोई भजन करने नहीं आई है, वो सत्ता हासिल करने आई है और जब वो सत्ता में है तो वो इन पुरस्कारों का राजनीतिक इस्तेमाल करेगी, इससे  इंकार नहीं किया जा सकता । विपक्षी दलों को जवाब देना चाहिए कि क्या पहले इन पुरस्कारों का  राजनीतिक इस्तेमाल  नहीं किया गया है ।  जब कोई पार्टी सत्ता में होती है तो उसके हर फैसले के पीछे एक राजनीतिक सोच होती है । इसलिए भाजपा ने इन पुरस्कारों की घोषणा से पहले अपने राजनीतिक हितों  पर विचार जरूर किया होगा ।

कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद से ही भारत रत्न पुरस्कारों पर राजनीति की है । इसलिए पुरस्कारों पर विवाद नये नहीं है, ये इनके साथ-साथ चलते हैं ।  सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने उपराष्ट्रपति रहते हुए यह पुरस्कार लिया और नेहरू जी ने तो खुद को ही पुरस्कार दे दिया क्योंकि पीएम ही पुरस्कार की अनुशंसा करते हैं । इसका  मतलब है कि वो खुद मानते थे कि वो इतने महान है कि उन्हें भारत रत्न दिया जाये, इस पर कांग्रेस आज क्या कहना चाहेगी ।  हैरानी इस बात की है कि उन्होंने न केवल खुद भारत रत्न लिया बल्कि अपने गृह मंत्री गोविन्द बल्लभ पंत को भी दे दिया ।  ऐसा लगता है कि पंत जी ने सोचा होगा कि अगर नेहरू जी ले सकते हैं तो मैं भी ले सकता हूं क्योंकि सरकार में दूसरी हैसियत तो मेरी ही है । इन्दिरा जी ने भी इस परंपरा को कायम रखते हुए खुद को भारत रत्न दे दिया था ।  राजीव गांधी को तो मृत्यु के तुरन्त बाद ये पुरस्कार दे दिया गया था ।  

 

मोदी जी कम से कम खुद को तो भारत रत्न नहीं दे रहे हैं और न ही अपने गृहमंत्री को इससे सम्मानित होने का मौका दे रहे हैं । हैरानी है कि संविधान निर्माता बाबा साहब अम्बेडकर जी को यह पुरस्कार 1990 में एक गैर कांग्रेसी सरकार ने दिया और सरदार पटेल को भी 1991 में इससे सम्मानित किया गया । कांग्रेस को जवाब देना चाहिए कि उसने क्यों इन दोनों नेताओं को इस लायक नहीं समझा कि इन्हें भारत रत्न दिया जाये । कांग्रेस ने जब सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिया था तो वो खुद हैरान हो गये थे क्योंकि उन्हें इतनी जल्दी इसके मिलने की उम्मीद नहीं थी । पुरस्कार की घोषणा के तत्काल बाद उनकी मुलाकात सोनिया गांधी से कराई गई, इसका क्या मतलब है आप समझ सकते हैं । वास्तव में खिलाड़ी के रूप में पहला भारत रत्न पाने के हकदार हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद थे । वैसे मेरा मानना है कि कांग्रेस को बताना चाहिए कि उसने किस आधार पर राजीव गांधी और मदर टेरेसा को भारत रत्न दिया था ।

 

              जिन लोगों को पुरस्कार दिया गया है, उससे भाजपा को कुछ राजनीतिक लाभ मिल सकता है लेकिन उसको वोट मिलने वाले नहीं हैं, अगर मिलेंगे भी तो इतने कम कि उनका कोई महत्व नहीं होगा । ये पुरस्कार वोट के लिये नहीं बल्कि एक संदेश दिया गया है, उसको समझना महत्वपूर्ण है ।  मोदी ने एक नारा दिया था, सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास, इस नारे को वो इन पुरस्कारों के माध्यम से भी पूरा कर रहे हैं ।  उन्होंने दो बड़े कांग्रेसी नेताओं को भारत रत्न दिया है, पहले प्रणब मुखर्जी को और अब नरसिंह राव को और ये दोनों नेता हमेशा कांग्रेस में ही रहे । इनका भाजपा से कोई रिश्ता नहीं था, इसके बावजूद इन्हें भारत रत्न दिया गया है । कांग्रेस ने कभी अपनी विचारधारा के विपरीत जाकर किसी को भी भारत रत्न नहीं दिया । नरसिंह राव ने अपने शासन काल में भाजपा की चार राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया था और संघ पर भी प्रतिबंध लगा दिया था । चौधरी चरण सिंह के रिश्ते भी भाजपा से बहुत अच्छे नहीं रहे ।  कांग्रेस ने तो पहले गृहमंत्री सरदार पटेल तक को भारत रत्न के काबिल नहीं समझा । दलित उत्थान की बात करने वाली कांग्रेस ने बाबा साहब अम्बेडकर को भारत रत्न देने पर विचार नहीं किया ।  अब मोदी ऐसे लोगों को ढूंढ-ढूंढ कर सम्मानित कर रहे हैं जिन्होंने देश के विकास और उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।  ऐसा सिर्फ भारत रत्न पुरस्कार के लिये नहीं है बल्कि पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कारों के साथ भी हो रहा है । चुपचाप अपने क्षेत्रों में देश के लिए काम कर रहे लोगों को ढूंढकर सम्मानित किया जा रहा है ।

 

अगर आपने कभी राष्ट्रपति भवन में ऐसे लोगों को पुरस्कार देते देखा है तो महसूस किया होगा कि जमीन से जुड़े लोग इस सरकार द्वारा सम्मानित किये जा रहे हैं । अगर सम्मानित लोगों का विश्लेषण किया जाये तो पता चलेगा कि इनमें से ज्यादातर का भाजपा या इसकी सहयोगी संस्थाओं से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं रहा है । भारत के हर कोने से ढूंढ कर लोगों को सम्मानित किया गया है । पहले इन पुरस्कारों को लेने के लिए लाबिंग की जाती थी और ज्यादातर लोग किसी न किसी की सिफारिश से ही पुरस्कार हासिल कर पाते थे । एक सच्चाई यह भी है कि ज्यादातर पुरस्कार अपनी विचारधारा के अनुकूल लोगों को ही दिये जाते थे । यही कारण था कि मोदी सरकार के आने के बाद किसी न किसी बहाने सरकार पर हमला करने के लिए अवार्ड वापसी की मुहिम चलाई गई । वास्तव में पार्टी और विचारधारा के प्रति अपनी वफादारी दिखाने का माध्यम ऐसे पुरस्कार बन गये थे ।

 

          आरोप लगाया जा रहा है कि मोदी सरकार डरी हुई है, इसलिए पुरस्कारों से वोट हासिल करना चाहती है ।  सच्चाई तो यह है कि विपक्ष के सामने अस्तित्व का सवाल खड़ा है, इसलिए कहा जा रहा है कि अगर मोदी जीत गये तो दोबारा चुनाव नहीं होंगे । विपक्ष जीतने के लिए चुनाव लड़ ही नहीं रहा है, वो सिर्फ भाजपा की जीत को छोटा करने की कोशिश में लगा हुआ है । उसे अच्छी तरह से पता चल गया है कि मोदी वापिस आ रहे हैं । इन पुरस्कारों के माध्यम से मोदी सरकार लोगों को साथ जोड़ने की कोशिश में लगी हुई है । चौधरी चरण सिंह और एमएस स्वामीनाथन को पुरस्कृत करके किसानों को संदेश दिया गया है कि उनके लिए काम करने वालों को मोदी सरकार बहुत सम्मान की नजर से देखती है । चौधरी चरण सिंह एक किसान नेता थे और वो जाट समुदाय से आते थे, इसके बावजूद वो पिछड़ों के नेता माने जाते हैं और कर्पूरी ठाकुर भी पिछड़ों के नेता थे । दूसरा पहलू यह भी है कि दोनों ही नेता बहुत ईमानदार थे । इन दोनों नेताओं को सम्मानित करके मोदी सरकार ने पिछड़ों में अपना आधार मजबूत किया है ।

 

दूसरी तरफ कांग्रेस के नेताओं को सम्मानित करके इस सरकार ने कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं को संदेश दे दिया है कि मोदी किसी से नफरत नहीं करते । मोदी सरकार देश के लिए महत्वपूर्ण योगदान देने वालों को सम्मान की नजर से देखती है ।  ये सरकार पार्टी और विचारधारा से ऊपर उठकर देशहित में फैसले लेती है ।  मोदी सरकार पूरे देश में ये संदेश देने में सफल हो रही है कि वो सबको साथ लेकर चलने को तैयार है ।  वास्तव में मोदी वर्तमान की नहीं भविष्य की राजनीति कर रहे हैं । वो जानते हैं कि उन्हें इस बार सत्ता में आने से कोई रोक नहीं सकता लेकिन भाजपा को लम्बे समय तक शासन करना है तो सबको साथ लेकर चलना पड़ेगा । इन पुरस्कारों के माध्यम से यही संदेश दिया गया है ।