मोदी किस तरह सूखी चट्टानों को तेल के श्रोतों में बदलने की क्षमता रखते हैं, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण कृष्णा गोदावरी बेसिन में खोदे गये तेल के कुँओं से प्रचुर मात्रा में तेल का मिलना, दर्शाता है। 10 वर्ष पहले के नेतृत्व और अब के नेतृत्व की तुलना की जाय तो यह अंतर स्पष्ट नजर आ जाता है जो ना ही वह देश के भविष्य के लिए और जनमानस के उत्थान के लिए नई नई टेक्नोलॉजी का भारत में इस्तेमाल करने का इच्छुक ही था। ऐसे में बहुत ज्यादा जरूरी क्षेत्रों में कार्य करने के लिए हमें विदेशों से टेक्निकल और क्रिटिकल टेक्नोलॉजी आयात करनी पड़ती थी।
उस समय अक्सर अरब के तेल उत्पादक देश ओआइसी के माध्यम से भारत को कच्चे तेल के निर्यात करने पर कभी कभी ब्लैकमेल और भारत की विदेशी नीतियों में दख़लअंदाजी करते रहते थे। इस परेशानी को देखते हुए भारत ने अपने देश के विभिन्न क्षेत्रों में तेल की खोज के लिए ओएनजीसी से कहा। 2002 में ओएनजीसी को भारत के तीन स्थानों में विशाल मात्रा में तेल के कुएं के मिलने की संभावना नजर आई और यह तीन स्थान थे महानदी कृष्णा गोदावरी और कावेरी के बेसिन। क्रिटिकल टेक्नोलॉजी की मांग के चलते विदेशी कंपनियों को न्यौता दिया गया और इसी संदर्भ में तीन देशों ब्राजील, इटली और नॉर्वे की कंपनियां जो अपने आप को इस क्षेत्र में मास्टर मानती थीं, को इन क्षेत्रों में तेल के कुओं का पता लगाने के लिए नियुक्त किया गया। 2002 से लेकर 2013 तक इन विदेशी कंपनियों ने यहां वहां हाथ पैर मारने के बाद इन क्षेत्रों में तेल मिलने की संभावनाओं से इनकार कर दिया और अपना काम समेट कर न सिर्फ वापस चली गई बल्कि भारत से इस असफल अभियान के बदले में भारी भरकम रकम की मांग भी करने लगीं। अभियान ठंडे बस्ते में चला गया।
2014 में सत्ता बदली और मोदी शासन आया। मोदी की जानकारी में लाया गया तो मोदी ने अपने वैज्ञानिकों को तेल की खोज करने वाली इस क्रिटिकल टेक्नोलॉजी को प्राप्त करने और तेल खोजने के काम में लगा दिया गया। निर्देश दिए गये कि जो टेक्नोलॉजी चाहिए खरीदो मगर तेल खोज कर दो। भारतीय वैज्ञानिकों की कोशिशें कामयाब हुईं और इन तीनों जगहों से बड़ी मात्रा में तेल मिलने की न सिर्फ संभावनाएं मिलीं बल्कि यहां से तेल निकाला भी जाने लगा।
अब बारी भारत की थी। भारत ने इन तीनों देशों की कंपनियों पर हर्जाने का दावा ठोक दिया। सुनवाई के बाद इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस ने भारत के इस दावे को सही ठहराते हुए इन तीनों कंपनियों को भारत को 1000 करोड रुपए बतौर हरजाना देने का आदेश सुना दिया।
अभी तक हर क्षेत्र में दूसरों से दबने वाला भारत अब विश्व पटल पर अपना दबदबा कायम करने लगा है और भारत का यह प्रभाव पूरे विश्व पर दिखने भी लगा है।
कृष्णा कावेरी बेसिन 28,000 वर्ग किमी भूमि पर, 24,000 वर्ग किमी “उथले” (वर्तमान परिभाषा के अनुसार, 400 मीटर तक की गहराई) पानी के अपतटीय और 18,000 वर्ग किमी गहरे पानी (2,000 मीटर तक की गहराई) में फैला हुआ है। ओएनजीसी ने अप्रैल 1977 में बेसिन में तेल और गैस की खोज शुरू की। इसने 1978 में नरसापुर के पास अपना पहला कुआं खोदा और वहां गैस की खोज की। तब से इसने बेसिन में ऐसी कई खोजें की हैं। यह उथले और गहरे पानी दोनों में हाइड्रोकार्बन की संभावनाओं से युक्त क्षेत्र है, तेल और गैस दोनों के लिए, ज़मीनी और अपतटीय दोनों क्षेत्रों में। इसलिए तातिपाका में एक मिनी-रिफाइनरी स्थापित की गयी है, जो एक दिन में लगभग 1,500 से 2,000 बैरल कच्चे तेल को नेफ्था, हाई-स्पीड डीजल, एसकेओ (सुपीरियर केरोसिन तेल) और एलएसएचएस (कम सल्फर उच्च स्टॉक) में परिवर्तित कर सकती है। यह एक स्किड-माउंटेड, स्थानांतरित होने योग्य रिफाइनरी है। पिछले पांच वर्षों में इसका तेल उत्पादन चार गुना बढ़ गया और गैस की बिक्री दोगुनी हो गई है। रिफाइनरी प्रबन्धक ने बताया कि, आज, हम प्रतिदिन 850 टन तेल का उत्पादन करते हैं और 5.5 मिलियन क्यूबिक मीटर गैस बेचते हैं। ओएनजीसी ने अब तक आंध्र प्रदेश सरकार को कुल मिलाकर 550 करोड़ रुपये का भुगतान किया है, जिसमें पिछले तीन से चार वर्षों में भुगतान किए गए 300 करोड़ रुपये भी शामिल हैं। उनके अनुसार, 30 ऑनलैंड और 30 ऑफशोर कुएं हैं। 112 ऑनलैंड कुएं और 11 अपतटीय कुएं हैं जो गैस का उत्पादन करते हैं। अब तक 460 कुएँ खोदे जा चुके हैं; इनमें 354 ऑनलैंड और 106 ऑफशोर शामिल हैं। अपतटीय कुओं में राव्वा अपतटीय संरचना में खोदे गए 30 कुएं भी शामिल हैं। आठ रिग अब ज़मीन पर तेल/गैस की खोज कर रहे हैं, और एक-एक रिग उथले और गहरे पानी में है। पिछले 10 वर्षों में बेसिन में तेल उत्पादन 10 गुना बढ़ गया है – 0.03 मिलियन टन से 0.29 मिलियन टन प्रति वर्ष। अब तक ओएनजीसी यहां दस लाख टन तेल और करीब 11 अरब घन मीटर गैस का उत्पादन कर चुकी है। यह राव्वा से हाइड्रोकार्बन के उत्पादन के अलावा है। यह मिनी रिफायनरी सचल है और कहीं भी उठा कर ले जायी जा सकती है।
तेल कंपनी ओएनजीसी ने बंगाल की खाड़ी में कृष्णा गोदावरी डीप-वॉटर ब्लॉक 98/2 से “पहला तेल” उत्पादन शुरू किया है, जो देश में नई कच्चे तेल की खोज का प्रतीक है। जिस स्थान से तेल निकाला जा रहा है वह कृष्णा गोदावरी बेसिन में काकीनाडा के तट से 30 किलोमीटर दूर है। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने पिछले सोमवार को संवाददाताओं से कहा, मुझे अपने सभी देशवासियों को यह बताते हुए खुशी हो रही है कि (ओएनजीसी द्वारा) पहला तेल निकाला गया है। 2016-2017 में इस पर काम शुरू हो गया था, और कोविड के कारण कुछ देरी हुई। उन्होंने कहा कि, 26 में से चार कुएं पहले से ही चालू हैं और मई या जून तक उत्पादन 45,000 बैरल प्रति दिन तक पहुंचने की उम्मीद है, जो हमारे कुल कच्चे तेल उत्पादन का 7 प्रतिशत होगा। चरण 3, जिससे बेसिन से अधिकतम तेल और गैस उत्पादन होता है, पहले से ही चल रहा है और जून 2024 में समाप्त होने की संभावना है। 98/2 परियोजना से ओएनजीसी के कुल तेल और गैस उत्पादन में क्रमशः 11 प्रतिशत और 15 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है। इस सन्दर्भ में यह बताना आवश्यक है कि, भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है जो अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए वैश्विक बाजार में विभिन्न स्रोतों से कच्चे तेल पर निर्भर है।
दूसरे देशों पर कच्चे तेल की इसी निर्भरता को आत्मनिर्भरता में बदलने के लिए मोदी के सामान्य परिवेक्ष्ण में, मंत्री हरदीप सिंह पूरी के नेतृत्व में ओएनजीसी के माध्यम से सरकार पूरी तन्मयता से इस कार्य में जुटी है और सफलता के आयाम स्थापित कर रही है और तेल निर्यातक देशों तक यह संदेश भी पंहुचा रही है कि, ‘अब वह दिन गये जब तुम हमें ब्लैकमेल करते थे। अब हम अपनी शर्तों पर तेल खरीदेंगे।