नयी दिल्ली, सरकार की प्रमुख योजनाओं में शामिल महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) के तहत मिलने वाली दैनिक मजदूरी अपर्याप्त है और यह जीवनयापन की बढ़ती लागत के अनुरूप नहीं है। संसद की एक समिति ने यह बात कही है।
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज के बारे में संसद की स्थायी समिति ने संसद में बृहस्पतिवार को रखी गयी एक रिपोर्ट में यह बात कही है। समिति ने विभिन्न राज्यों के बीच मनरेगा के तहत दी जाने वाली मजदूरी में भारी अंतर के बारे में भी ध्यान दिलाया है।
समिति की रिपोर्ट के अनुसार ‘‘समिति ने पाया कि मजदूरी का दायरा मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में 221 रूपये से लेकर अरूणाचल प्रदेश में 224 रूपये, बिहार एवं झारखंड में 228 रूपये, सिक्किम की तीन ग्राम पंचायतों में 354 रूपये, निकोबार में 328 रूपये और अंडमान में 311 रूपये है।’’
इसमें कहा गया कि 2008 के बाद से मजदूरी की मात्रा अपर्याप्त है और बढ़ती जीवनयापन की लागत के अनुरूप नहीं है। इसमें कहा गया कि वर्तमान समय में कृषि मजदूर एवं अन्य कार्यों में लगे कामगारों को मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी से अधिक पैसा मिल रहा है।
समिति ने कहा कि संभवत: मजदूरों की कमी के कारणों में से एक यह भी हो…‘‘संभवत मनरेगा के तहत अपर्याप्त मजदूरी मिलती हो।’’।
द्रमुक की कनिमोझी की अध्यक्षता वाली इस समिति ने इस प्रमुख योजना के लिए बजट आवंटन को लेकर भी चिंता जतायी है।