उत्तर प्रदेश: स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा और विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा दिया

लखनऊ,  समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्‍ट्रीय महासचिव पद से त्यागपत्र देने के एक सप्ताह बाद स्‍वामी प्रसाद मौर्य ने मंगलवार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।

स्‍वामी प्रसाद मौर्य ने मंगलवार को सोशल मीडिया मंच ‘एक्‍स’ पर खुद यह जानकारी दी।

उन्होंने ‘एक्‍स’ पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव और विधान परिषद के सभापति के नाम संबोधित त्यागपत्र के अलग-अलग पन्नों को साझा किया है।

मौर्य ने यादव को लिखे पत्र में कहा, ‘‘आपके नेतृत्व में सौहार्दपूर्ण वातावरण में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ किंतु 12 फरवरी को हुई वार्ता और 13 फरवरी को प्रेषित पत्र पर किसी भी प्रकार की वार्ता के लिए पहल नहीं करने के परिणामस्वरूप मैं सपा की प्राथमिक सदस्यता से भी त्यागपत्र दे रहा हूं।’’

विधान परिषद के सभापति को मौर्य ने लिखा, ‘‘ मैं सपा के प्रत्याशी के रूप में विधानसभा, उप्र निर्वाचन क्षेत्र से सदस्य, विधान परिषद सदस्य निर्वाचित हुआ। चूंकि मैंने सपा की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है, इसीलिए नैतिकता के आधार पर विधान परिषद, उप्र की सदस्यता से भी इस्तीफा दे रहा हूं।’’

मौर्य अब ‘राष्‍ट्रीय शोषित समाज’ पार्टी नाम की नयी पार्टी बनाएंगे। मौर्य ने अपने भविष्य की रणनीति को अमलीजामा पहनाने के लिए 22 फरवरी को नयी दिल्‍ली में समर्थकों की बैठक बुलाई है।

विवादित बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रहने वाले सपा के वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी टिप्पणियों को लेकर पार्टी के कुछ नेताओं के रवैये से नाराज होकर 13 फरवरी को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्‍तीफा दे दिया था।

मौर्य ने पार्टी प्रमुख को लिखे पत्र में कहा था कि उन्होंने पार्टी का जनाधार बढ़ाने का काम ‘‘अपने तौर-तरीकों’’ से जारी रखा और भाजपा के ‘मकड़जाल’ में फंसे आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों के ‘स्वाभिमान’ को जगाने की कोशिश की।

उन्होंने कहा, ‘‘ मैं नहीं समझ पाया, मैं एक राष्ट्रीय महासचिव हूं जिसका कोई भी बयान निजी हो जाता है और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव और नेता ऐसे भी हैं जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है। यह समझ के परे है।’’

मौर्य ने कहा, ‘‘ यदि राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है तो मैं समझता हूं कि ऐसे भेदभाव पूर्ण, महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। इसलिए सपा के राष्ट्रीय महासचिव पद से मैं त्यागपत्र दे रहा हूं, कृपया इसे स्वीकार करें।’’

स्वामी प्रसाद मौर्य श्री रामचरितमानस और सनातन धर्म के साथ-साथ अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर भी कई विवादास्पद बयान दे चुके हैं, जिसको लेकर व्यापक स्तर पर तल्ख प्रतिक्रिया हुई थी। खुद उनकी पार्टी में ही उनका विरोध हुआ था।

प्राण प्रतिष्ठा के औचित्य पर सवाल उठाने पर विधानसभा में सपा के मुख्य सचेतक मनोज पांडेय ने हाल ही में उन्हें ‘‘विक्षिप्त व्यक्ति’’ कहा था।

मौर्य ने पत्र में कहा कि उन्होंने पार्टी को ठोस जन आधार देने के लिए पिछले साल जनवरी-फरवरी में प्रदेशव्यापी भ्रमण कार्यक्रम के तहत ‘‘रथ यात्रा’’ निकालने का प्रस्ताव रखा था लेकिन पार्टी अध्यक्ष के आश्वासन के बाद भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया।

प्रदेश में पिछड़ों के बड़े नेता माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य पांच बार विधान सभा के सदस्य, उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री, सदन के नेता और नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं।

वह योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार (2017-2022) में श्रम मंत्री थे। वह 2021 तक भारतीय जनता पार्टी के सदस्य थे। लंबे समय तक बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में रहने के बाद वह भाजपा में शामिल हुए थे, लेकिन 11 जनवरी 2022 को योगी सरकार के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।

मौर्य ने सरकार पर पिछड़ों की उपेक्षा का आरोप लगाया था। हालांकि, उनकी पुत्री संघमित्रा मौर्य भाजपा से अब भी सांसद हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य मायावती के नेतृत्व वाली सरकारों में भी मंत्री रहे थे।

पडरौना से विधायक रह चुके मौर्य ने 2022 के विधानसभा चुनाव में फाजिलनगर से चुनाव लड़ा था, लेकिन भाजपा के सुरेंद्र कुमार कुशवाहा से हार गए थे। इसके बाद सपा ने उन्‍हें विधान परिषद का सदस्य बनाया और संगठन में राष्‍ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी थी।