भारतीय साहित्य में तुलसी के राम लोकनायकों की उस गौरवमयी परम्परा के अद्भुत और अलौकिक रूप है जिनकी प्रेरणा में आबद्घ भारतीय जनमानस उनकी भक्ति में रसलीन हो जाता है। गोस्वामी तुलसीदास की सर्वश्रेष्ठ रचना ‘रामचरित मानस’ है इसमें भारतीय जीवनधारा का सर्वांगीण चित्रण है। इसमें बाल्यावस्था में ही राम का विराट चरित्र एवं रूप हमें देखने को मिलता है। ‘रामचरित मानस’ में अद्भुत कवित्व क्षमता,धार्मिक उदारता, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक स्थितियों का विस्तृत वर्णन किया गया है।
राम का शाब्दिक अर्थ है-भला, मन को रमानेवाला, सुंदर लगनेवाला तथा अद्ïभुत साहस प्रदान करनेवाला। राम का अनुभव तब होता है जब कोई द्वन्द्व नहीं होता। सब कुछ शान्त, स्थिर और सम होता है। यह एहसास राममय होता है। इसी परमतत्व में अयोध्या में जन्म लेकर राम ने स्वयं को अभिव्यक्त किया एक साधारण बालक के रूप में।
राम के नाम में इतनी महिमा है इतनी शक्ति है कि सिर्फ कोई मनुष्य, वह चाहे दुष्कर्मी हो, या सत्ïकर्मी एक बार राम का नाम लेकर जीवन को धन्य बना लेता है। राम का प्रभाव तुलसी पर इतना पड़ा कि प्रत्यक्षत: तुलसी भारतीय जनता के जीवन में घुलमिलकर लोकनायक बन गये। समन्वय के इस देश में महान लोकनायक वे ही हो सकते हैं जिनमें अद्ïभुत साहस और असीम समन्वय शक्ति हो। तुलसीदास ऐसे ही समन्वयवादी थे, जिनका सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।
तुलसीदास ने बालरूप का बड़ा ही मार्मिक तथा मन को आनंदित करनेवाला रूप चित्रण कर भारतीय समाज में एक नयी उमंग भर दी। वे कहते है-
”अवधेष के द्वारे सकारे गई सुत गोद कै भूपति कै निकसे,
अवलोक हो सोच-विमोचन को ठगि-सी रहि जे न ठगे धकि से’।
तात्पर्य यह है कि श्रीराम के बाल सौन्दर्य के विषय में एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि आज तड़के अयोध्यापति महाराज दशरथ के द्वार पर गई थी उसी समय महाराज दशरथ पुत्र को गोद में लिए बाहर आये। मैं तो उस सकल शोकहारी बालक को देखकर ठगी सी रह गई।
हे सखी! ऐसे बालक को देखकर जो मोहित नहीं हो, उस पर धिक्कार है। सच मै, बालरूप में श्रीराम का धूल भरा शरीर अतीव सुन्दर लग रहा है। सांवले-सुन्दर शरीर में कमल-सी कोमल दो आंखें है जो अतीव मंजुल है। यह सौन्दर्य तो कामदेव के अपूर्व सौन्दर्य को भी मात कर देता है। गोस्वामी तुलसीदास, श्री राम के इस रूप पर रीझ गये है। सौन्दर्य की जो दुनिया श्रीराम के स्वरूप में गोस्वामीजी को दिखलाई पड़ती है। उसे लिखकर वे प्रसन्न हो गये।
तुलसी के राम केवल अलौकिक कृत्य नहीं करते बल्कि अपने शील, मर्यादा, शक्ति, नैतिकता, उदारता, प्रजा वत्सलता आदि गुणों से समन्वित व्यक्तित्व को लेकर जन संघर्ष की भूमिका का निर्वाह करते हैं। राम एक जिम्मेदार राजा, पुत्र, पिता, भाई के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होते है। रामचरित मानस द्वारा गोस्वामी जी ने पति-पत्नी संबंधों में मधुरता, भाई-भाई में प्रेम, पिता का आज्ञापालन, विमाताओं के प्रति आदरभाव आदि की उज्जवल उदारता का उदाहरण प्रस्तुत करके जनता का मार्ग प्रदर्शन किया है।
इसी प्रकार ‘मानस’ में रामराज्य की कल्पना से पूरा युग प्रभावित हुआ। राम ऐसे शासक के रूप में चित्रित हुए जिनकी कोई तुलना नहीं है। राम का राज्य बहुत ही प्रशंसनीय था। न चोरी का भय, न शोषण और दोहन की त्रासदी
दण्ड जतिन्हरक भेद जहां नर्तक नृत्य समाज।
जीतहूं मनहिं सुनिअ अस रामचन्द के राज।
उक्त पंक्तियां ‘उत्तरकाण्ड’ की है। इस दोहे के अर्थ की अनुगूंज देर तक हृदय को आन्दोलित करती रहती है। राज्य में प्रजा सुख-चैन से रहती थी, अपनी सुरक्षा का भी प्रबन्ध उसे नहीं करना पड़ता था। कहने का तात्पर्य यह है कि आज भी जरूरत है रामराज्य की। आज समाज में फैले विभिन्न प्रकार के विरोधी तत्व व्यक्ति को किस प्रकार पतनोन्मुख कर रहे है यह किसी से छुपा नहीं है। मानस का अर्थ वास्तव में रावण राज्य को ध्वस्त करके रामराज्य की स्थापना ही है। आज धरती पर ऐसा लगता है कि असुरों का साम्राज्य दूर दूर फैलता नजर आ रहा है। रामराज्य में आदर्श व्यवस्था थी। अवतार का अर्थ होता है आकर दर्शाना।
चैत रामनवमी के दिन हम राम के जन्म दिवस को मनाते है और भक्ति में रसलीन हो जाते हैं पर हमारा मन अन्र्तद्वन्द्व में ही फंसा रहता है। हम लोग एकता के सूत्र में नहीं बंध पाते है। ऐसा क्यों? राम है असीम और हम घेरे में बंद हैं। राम है सम्पूर्ण और हम है खण्ड-खण्ड। आज भी जरूरत है राम राज्य की न कि राजनीति में आकर एक दूसरे पर दोषारोपण करने की।
आज हर जगह पुन: पापाचार पनप रहा है। इसे हमें खत्म करना होगा तथा राम जैसा आदर्श एवं उदारता समाज में पुन: स्थापित करनी होगी। तो आइये इस रामनवमी के पावन पुनीत अवसर पर समाज में फैले विभिन्न प्रकार के पाप फैलाने वाले तत्वों को खत्म करने का दृढ़ संकल्प लें।