जोड़ों में दर्द-व्यायाम से आराम

जोड़ शरीर को चलाने में सहायता करते हैं। सभी दैनिक कार्य इन्हीं जोड़ों की सहायता से संभव होते हैं। इन जोड़ों में अत्यधिक उम्र, अधिक कार्य करने चोट, मोच, खिंचाव कोई बीमारी या वंशानुगत कारणों से कुछ बदलाव आ जाता है। यह व्यक्ति का शत्रा बन उसे चलने फिरने में असहाय कर देता है।


इस बदलाव का पहला संकेत जोड़ों में दर्द के रूप में होता है जिसे पीड़ित व्यक्ति पहले-पहल अनदेखा करता है। बाद में यहीं दर्द परेशानी का बड़ा कारण बन जाता है। जोड़ों में दर्द, घुटने में दर्द की परेशानी यदि बार-बार हो तो उसे अनदेखा नहीं करना चाहिए।


कारण एवं प्रभावित

यह आस्टियोआर्थराइटिस, रयूमेटाइड आर्थराइटिस, लंबर स्पांडिलायटिस, सरवाइकल स्पांडिलाय टिस, आस्टियोपोरोसिस, उठने-बैठने के गलत ढंग, टी.बी. आदि संक्रमण से होता है जिससे घुटना, कमर, कोहनी, एड़ी, गले व कमर की रीढ़ की हड्डी कभी-कभी हाथों एवं पैरों की अंगुलियां प्रभावित होती हैं।


मोटे व्यक्ति, अधिक देर तक खड़े होकर काम करने वाले या गलत तरीके से उठने-बैठने वाले व्यक्ति इससे पीड़ित होते हैं। इसको लेकर गलतफहमियां ज्यादा हैं जैसे यह बीमारी अधिक उम्र वालों को होती है या यह रोग ठंड की वजह से होता है। यह अधिक मेहनत करने से होता है या भोजन की कमी से होता है। यह दूसरे जोड़ों में भी फैलता है। इस तरह की अनेक गलतफहमियां देखने-सुनने को मिलती हैं।


लक्षण एवं उपचार

जोड़ों में सूजन होती है। पहले धीमा एवं बाद में असहनीय दर्द होता है। सुबह उठते समय जोड़ों में कड़ापन अनुभव होता है। जोड़ों की गतिविधियां कम हो जाती हैं। कभी-कभी जोड़ों में लालिमा दिखती है। चलने, उठने, बैठने में दर्द होता है। एक्सरे में जोड़ों पर अंतर कम दिखता है। उपचार न होने पर पीड़ित भाग टेढ़ा हो जाता है।


ऐसी स्थिति में कम दर्द वाली गतिविधि करें। आराम करें। छड़ी का उपयोग करें। पीड़ित भाग की गर्म ठंडी सिंकाई करें। धीरे-धीरे व्यायाम करें। ज्यादा गर्मी या ठंड में रहकर व्यायाम न करें। थके हों तो व्यायाम न करें। अपनी दवा लेने के बाद व्यायाम करें। इसे धीरे-धीरे बढ़ाते जाएं किन्तु भारी या ज्यादा व्यायाम न करें।


यह दर्द जब दो या तीन दिनों से अधिक तक बना रहता है तब उपचार अति आवश्यक हो जाता है। दर्दनाशक दवा या घरेलू उपचार की बजाय फिजियोथेरेपिस्ट से सलाह लेकर उनके मार्गदर्शन में जोड़ां का व्यायाम करें। इससे जोड़ों का अंतर बढ़ता है। मांसपेशियां मजबूत हो जाती हैं। इस व्यायाम में आध्ुनिक मशीनों से भी काम लिया जाता है। फिजियोथेरेपिस्ट बीमारी या मरीज की स्थिति देखकर जोड़ों का व्यायाम निर्धारित करता है।


क्या करें, क्या न करें?

वजन, मोटापा घटाने का प्रयास करें। उठने, बैठने का ढंग सुव्यवस्थित करें। गर्म पानी से सिंकाई करें। भागमभाग कम करें। सीढ़ियां कम चढ़ें या कम उतरें। नियमित निर्धारित व्यायाम करें। ज्वाइंट सपोर्टर या बेस का उपयोग करें। जंक फूड, फ्राइड फूड एवं वजन बढ़ाने वाली चीजें न खाएं। मोटे गद्दे पर न सोएं। तकिया प्रयोग करें। भारी भोजन न करें। दर्द पर ज्यादा ध्यान न दें।