आने वाले वक्त में क्वाड की प्रासंगिकता बढ़ेगी, हिंद महासागर सम्मेलन में बोले जयशंकर

एस.-जयशंकर

पर्थ (ऑस्ट्रेलिया)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शनिवार को कहा कि उन्हें विश्वास है कि ‘क्वाड’ (चतुष्कोणीय सुरक्षा संवाद) समूह की प्रासंगिकता बढ़ेगी और यह क्षेत्रीय तथा क्षेत्र से परे राजनीति व नीति में एक बड़ा कारक बनेगा। जयशंकर ने हिंद महासागर सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया की अपने समकक्ष पेनी वोंग के साथ एक चर्चा के दौरान ये टिप्पणियां कीं। वह दो दिवसीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए यहां आए हुए हैं। भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया वाले ‘क्वाड’ समूह के बारे में बात करते हुए जयशंकर ने कहा कि यह समूह प्रमुख शक्तियों की बदलती क्षमताओं और पूरी दुनिया पर उसके असर का परिणाम है। क्वाड का गठन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक रुख से निपटने के लिए 2017 में किया गया था। 

 

जयशंकर ने कहा, ‘‘यह हमारे लिए ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के साथ तीन बहुत महत्वपूर्ण संबंधों को भी दर्शाता है जो शीत युद्ध खत्म होने के बाद बदल गए हैं।’’ उन्होंने कहा कि ये चारों देश इस समुद्री क्षेत्र के चार कोनों पर स्थित हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं पूरे विश्वास के साथ यह भविष्यवाणी कर रहा हूं कि क्वाड की प्रासंगिकता बढ़ेगी और यह वृहद क्षेत्रीय और क्षेत्र से इतर राजनीति और नीति में एक बड़ा कारक बनेगा।’’ विदेश मंत्री ने हिंद महासागर के देशों के साथ भारत की साझेदारी के बारे में भी बात की।

जयशंकर ने कहा, ‘‘आज हिंद महासागर के पुनर्निर्माण और उसे पुन: जोड़ने की चुनौती है। आप ऐसा भारत देखने जा रहे हैं जो हिंद महासागर में बहुत गहराई से जुड़ा होगा और बहुत गहरायी से उसमें निवेश करेगा…हमारा उद्देश्य यह होना चाहिए कि हिंद महासागर को अतीत की तुलना में आज अधिक जुड़ा हुआ, अधिक निर्बाध और समावेशी बनाया जाए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि वे वास्तव में धैर्यपूर्वक और सम्मानपूर्वक इस क्षेत्र का पुन: निर्माण कर सकते हैं।’’ ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय संबंधों के बारे में बात करते हुए जयशंकर ने कहा कि इसके बढ़ने की काफी संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हम व्यापार व आर्थिक क्षेत्र में और ज्यादा कर सकते हैं।

 जयशंकर ने कहा कि वह द्विपक्षीय संबंधों को लेकर काफी ‘‘आशावादी’’ हैं क्योंकि इसमें असीम संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दशक में द्विपक्षीय मोर्चे पर हमने जो चीजें हासिल की हैं, वह आशावादी होने की वजह देती हैं। जयशंकर ने पर्थ में भारतीय मूल के सैनिक नैन सिंह सैलानी के नाम पर रखे गए सैलानी एवेन्यू का भी दौरा किया। रिकॉर्ड से पता चलता है कि उन्होंने सात फरवरी 1916 को पर्थ में ऑस्ट्रेलियन इम्पीरियल फोर्स में शामिल होने से पहले एक ‘‘मजदूर’’ के रूप में काम किया था। 

शिमला में जन्मे नैन सिंह उस समय 43 वर्ष के थे जब उन्हें ऑस्ट्रेलियन और न्यूजीलैंड आर्मी कोर की 44वीं इंफेंट्री बटालियन में शामिल किया गया था। वह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी द्वारा चलाए एक आक्रामक अभियान में मारे गए थे। उन्हें ब्रिटिश वॉर मेडल, विक्ट्री मेडल और 1914/15 स्टार से सम्मानित किया जा चुका है। इस बीच, जयशंकर और श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने द्विपक्षीय सहयोग में प्रगति की समीक्षा की और उसे मजबूत बनाने पर राजी हुए। विदेश मंत्री ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘पर्थ में हिंद महासागर सम्मेलन के इतर श्रीलंकाई राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे से मुलाकात कर खुशी हुई। हमारे द्विपक्षीय सहयोग में प्रगति की समीक्षा की और उसे गहरा करने का संकल्प लिया।