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नयी दिल्ली, बीते सप्ताह विदेशी बाजारों में सोयाबीन डीगम और सोयाबीन डी-आयल्ड केक (डीओसी) के दाम में आई गिरावट तथा सरसों की नई फसल की मंडियों में आवक शुरू होने के बीच देशी तेल-तिलहनों के थोक दाम लडखड़ाते नजर आये। वहीं किसानों द्वारा मूंगफली पेराई मिलों को कम भाव पर मूंगफली नहीं बेचे जाने के कारण मूंगफली तेल-तिलहन में सुधार है।
बाजार सूत्रों ने कहा कि सरसों की नयी फसल राजस्थान और मध्य प्रदेश की मंडियों में आना शुरू हो चुकी है। इस वजह से देशी खाद्य तेल-तिलहनों पर दबाव और बढ़ गया है, जिसपर पहले से सस्ते आयातित तेलों का दबाव बना हुआ था। सारे देशी तेल-तिलहन की हालत यह है कि तेल पेराई मिलों को किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे दाम पर सरसों, मूंगफली बेच रहे हैं। इसके बावजूद पेराई मिलों को पेराई के बाद खाद्य तेल के लिए ग्राहक नहीं मिल रहे, क्योंकि थोक में आयातित तेल उन्हें कहीं सस्ते में उपलब्ध हैं।
सूत्रों ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह से पहले के हफ्तों में बंदरगाहों पर सोयाबीन डीगम तेल का दाम जो पहले 920-925 डॉलर प्रति टन था वह घटकर समीक्षाधीन सप्ताहांत में 890-893 डॉलर प्रति टन रह गया। कच्चे पामतेल (सीपीओ) का भाव पहले के 940-945 डॉलर प्रति टन से घटकर समीक्षाधीन सप्ताहांत में 905 डॉलर प्रति टन रह गया। इस गिरावट के बावजूद पाम, पामोलीन के आयात में नुकसान है क्योंकि बैंकों का ऋण-साखपत्र (लेटर आफ क्रेडिट या एलसी) घुमाने के लिए इसे कम दाम पर बेचने की मजबूरी है। इन सब घटनाक्रमों के बीच तिलहन किसान, तेल मिलें, तेल उद्योग, आयातक और उपभोक्ताओं सभी को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
सूत्रों ने कहा कि देश के तेल-तिलहन उद्योग की इस वस्तुस्थिति के बीच कुछ विदेशी खाद्य तेल तिलहन उद्योग के ब्रोकर यह तर्क पेश करते हैं कि दिसंबर के मुकाबले जनवरी में आयातित खाद्य तेलों के दाम लगभग आठ प्रतिशत मजबूत हुए हैं इसलिए अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) में बदलाव करने की असमर्थता है। सूत्रों ने कहा कि इस मामले में देश के तेल संगठनों को आगे आकर वस्तुस्थिति का खुलासा करना चाहिये। तथ्य यह है कि सोयाबीन डीगम तेल का दाम दिसंबर के 980 डॉलर से घटकर जनवरी में 910-920 डॉलर प्रति टन रह गया। सोयाबीन तिलहन का दाम दिसंबर के 5,200 रुपये क्विंटल से घटकर 4,600 रुपये क्विंटल रह गया है। सरसों तिलहन का दाम दिसंबर के 5,600-5,650 रुपये क्विंटल से घटकर 5,300 रुपये क्विंटल रह गया। मूंगफली तेल का दाम 160 रुपये किलो से घटकर 147-148 रुपये किलो रह गया। अब तेल संगठनों को आगे आकर इस तथ्य की पुष्टि करनी चाहिये न कि किसी विदेशी तेल-तिलहन उद्योग की वकालत करने वाले प्रवक्ता को।
सूत्रों ने कहा कि बजट भाषण में सरकार का तेल-तिलहन मामले में देश को आत्मनिर्भरता की राह पर ले जाने का मंतव्य सराहनीय है लेकिन इसके लिए सरकार को सबसे पहले देशी तेल-तिलहनों का बाजार विकसित करने की ओर पुरजोर ध्यान देना होगा। आखिर इन तेलों का बाजार न हुआ तो वे खपेंगे कहां।
पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 85 रुपये की गिरावट के साथ 5,240-5,290 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का भाव 200 रुपये घटकर 9,650 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 30-30 रुपये की हानि के साथ क्रमश: 1,655-1,755 रुपये और 1,655-1,755 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।
समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज का भाव क्रमश: 215-215 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 4,615-4,645 रुपये प्रति क्विंटल और 4,425-4,465 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
इसी तरह सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल का भाव क्रमश: 375 रुपये, 450 रुपये और 240 रुपये के नुकसान के साथ क्रमश: 9,475 रुपये और 9,250 रुपये और 7,900 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
किसानों द्वारा कम दाम पर बिकवाली कम करने से मूंगफली तेल-तिलहन कीमतों में सुधार दिखा। समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तिलहन के दाम 50 रुपये की बढ़त के साथ 6,350-6,425 रुपये क्विंटल पर बंद हुए। मूंगफली गुजरात और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल के भाव भी क्रमश: 250 रुपये और 35 रुपये की तेजी के साथ क्रमश: 15,000 रुपये क्विंटल और 2,245-2,520 रुपये प्रति टिन पर बंद हुए।
विदेशों में सीपीओ के दाम में आई गिरावट के बीच समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चा पाम तेल (सीपीओ) 175 रुपये की हानि के साथ 7,925 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पामोलीन दिल्ली का भाव 195 रुपये के नुकसान के साथ 8,980 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला तेल का भाव 300 रुपये की गिरावट के साथ 8,180 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
गिरावट के आम रुख के अनुरूप बिनौला तेल भी 150 रुपये घटकर 8,200 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।