भारत वह देश है जिसने पृथ्वी पर रहने वाले लोगों को परिवार का सदस्य मानते हुए ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश दिया। इसीलिए हमने न तो किसी देश पर हमला किया और न ही एक इंच जमीन पर कब्जा किया।” रामायण और महाभारत की कथाओं में हमने पुष्पक विमान, अग्निबाण और आकाशवाणी जैसी तकनीकों के बारे में खूब पढ़ा है। हम यह भी देखते आ रहे हैं कि हमारे वेद-पुराणों पर देश-विदेश में रिसर्च होते आ रहे हैं, जिनसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में खूब मदद मिलती रही है , इन क्षेत्रों में भारत कैसे वाकई में ‘विश्व गुरु’ रहा है।
देश की जनता को जब मुफ्त शिक्षा और अच्छी स्वास्थ्य सुविधा मिलेंगी तो भारत को विश्व गुरु बनने से कोई रोक नहीं सकता। इसके लिए पूरे देश के हर जिलों में मल्टी स्पेशल हॉस्पिटल और एक्सीलेंस स्कूल खोले जा सकते हैं । सच में भारत देश को विकसित देश और विश्वगुरु बनाना है तो आधारभूत सुविधाओं पर ध्यान देना होगा , जैसे अच्छी शिक्षा, पानी, बिजली, स्वास्थ्य लोगों को मुफ्त में मुहैया करवाना होगी । तभी मेरा देश विश्व गुरु बनेगा । आज फिर से भारत को विश्व गुरु और नवाचार और ज्ञान का केंद्र बनाना होगा ।
एक समय था जब भारत को विश्व गुरु के रूप में जाना जाता था और दूर देशों के छात्र यहां पर शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे, इसलिए हमें अपने अतीत के गौरव को फिर से प्राप्त करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाना चाहिए। आधुनिक शिक्षा प्रणाली को 21 वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुकूल बनाने के लिए इसको नए सिरे से बनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया जाना चाहिए। युवाओं को परिवर्तन का एजेंट बनने और मानव जाति के सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए प्रगतिशील और स्थायी समाधान के साथ आना चाहिए। युवाओं को एक ऐसा न्यू इंडिया बनाने का प्रयास करना चाहिए, जो गरीबी, अशिक्षा, भय, भ्रष्टाचार, भूख और भेदभाव से मुक्त हो। युवाओं को जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहिए। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों पर चिंता करने का विषय है, प्रकृति का अत्यधिक दोहन करने और अत्यधिक खपत करने से बचने की आवश्यकता पर बल दिया जाना चाहिए।
“स्थिरता के लिए नया मंत्र होना चाहिए। ‘संतुलन’ स्थिरता के केंद्र में होता है और यह ‘संतुलन’ सभी क्षेत्रों में शारीरिक रूप से कुशल रहने से होता है जिसको प्राप्त करने के लिए योग ही सब कुछ है।” युवाओं को प्रकृति को गले लगाने और इसे बर्बाद किए बिना ही इसके साथ रहना सीखना चाहिए ।” हम केवल इस ग्रह के संरक्षक मात्र हैं और हम सबको इस ग्रह की सभी प्रकार की मौलिक और प्राकृतिक भव्यता को भविष्य की पीढ़ियों को सौंपना चाहिए।” गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के बढ़ते हुए बोझ के संदर्भ में युवाओं को जागरूक करने के लिए, देश में गैर-संचारी रोगों से मुकाबला करने के लिए स्वस्थ जीवनशैली और स्वस्थ भोजन की आदतों को बढ़ावा देने की तत्काल आवश्यकता है।
इस पहलू को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया ‘फिट इंडिया अभियान’ सराहनीय है और इस प्रकार के अभियानों में हर किसी को शामिल किया जाना चाहिए, विशेषकर युवाओं को। ‘फिट इंडिया उपयुक्त, समयानुकूल और सबसे ज्यादा जरूरी है।’ समग्र रूप से ज्ञान प्रदान करने में भारत के पारंपरिक ज्ञान को और आधुनिक शिक्षा प्रणाली को एकीकृत करना आवश्यक है। शिक्षा प्रणाली नैतिकता में निहित है और भारतीय मूल्य समय की आवश्यकता है, खासकर उस समय जब भारत एक ज्ञान-आधारित समाज के निर्माण की दिशा में प्रगति कर रहा है।छात्रों को हमारे देश की महान विरासत, संस्कृति और परंपराओं के बारे में जानकारी दिया जाना चाहिए, और उन्हें अपने साथी मनुष्यों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करना सीखाना चाहिए। शिक्षा को आवश्यक रूप से लोगों को जिम्मेदार इंसानों में तब्दील करने में मदद करनी चाहिए।
पाठ्यक्रम और अध्यापन के अलावा, सीखने-सिखाने पर भी जोर देना चाहिए। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को पूर्ण रूप से उत्कृष्टता के केंद्रों में तब्दील करने के लिए उच्च शिक्षा प्रणाली में संपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता है । उच्च शिक्षण संस्थान प्रौद्योगिकी में प्रगति को अपनाएं, शिक्षण प्रणालियों में आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार बदलाव करें और नवाचार को सफल बनाने के लिए एक वातावरण का निर्माण करें। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि यदि भारत ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचा बनाने में विफल रहता है, तो उसके द्वारा वैश्विक ज्ञान केंद्र बनने की इच्छा का प्रयास करना निरर्थक साबित हो जाएगा, सरकारी और निजी क्षेत्र मिलकर उच्च शिक्षा में शहरी और ग्रामीण विभाजन को कम करने की दिशा में काम करें और उन्हें सस्ती शिक्षा के माध्यम से कौशल विकास प्रदान करें।लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की बढ़ती पहुंच का सही उपयोग करने और ग्रामीण युवाओं को अपने पैरों पर खड़े होने के लिए सशक्त बनाने की ओर प्रयास किया जाना चाहिए।
भारतीय आत्मा को अक्षुण्ण रखते हुए सार्वभौमिक विचारों से संवाद स्वामी विवेकानंद जी की प्रमुख विशेषता रही। उन्होंने कहा था भारत एक बार फिर समृद्धि तथा शक्ति की महान ऊँचाइयों पर उठेगा और अपने समस्त प्राचीन गौरव को पीछे छोड़ जाएगा, भारत पुनः विश्व गुरु बनेगा, जो पूरे संसार का पथप्रदर्शन करने में समर्थ होगा। उन्होंने घोषणा की कि भारत का विश्व गुरु बनना केवल भारत ही नहीं, अपितु विश्व के हित में होगा। स्वामी विवेकानंद ने जो भविष्यवाणी की थी अब सिर्फ उसका सत्य सिद्ध होना शेष है।
वर्तमान का भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है, वह निश्चित रूप से स्वामी विवेकानंद के स्वप्न की पूर्ति कर रहा है। 15 अगस्त 2022 के स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए भाषण में अमृत काल के पाँच संकल्पों को हम स्वामी विवेकानंद के विचारों और प्रेरणा से भी जोड़ कर देख सकते हैं।
पहला संकल्प –‘विकसित भारत’
दूसरा संकल्प –‘गुलामी से मुक्ति’
तीसरा संकल्प –‘विरासत पर गर्व’
चौथा संकल्प –‘एकता और एकजुटता’
पाँचवा संकल्प –‘नागरिकों का कर्तव्य’
श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है,जीवन के विभिन्न कर्तव्यों के प्रति मनुष्य का जो मानसिक और नैतिक दृष्टिकोण रहता है, श्रीमद्भगवद्गीता में उन सभी जन्मगत तथा अवस्थागत कर्तव्यों का बारम्बार वर्णन है। उसी प्रेरणा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि नागरिकों का कर्तव्य देश और समाज की प्रगति का रास्ता तैयार करता है। यह मूलभूत प्रणशक्ति है। देश के मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी इससे बाहर नहीं हैं। बिजली की बचत, खेतों में मिलने वाले पानी का पूरा इस्तेमाल, केमिकल मुक्त खेती, हर कीमत पर भ्रष्टाचार से दूरी आदि हर क्षेत्र में नागरिकों की जिम्मेदारी और भूमिका बनती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वक्तृत्व भारत की स्वतंत्रता के अमृत काल के संकल्पों में स्वामी विवेकानन्द के ओजस्वी विचार अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। अपनी आध्यात्मिक शक्ति, गौरवपूर्ण संस्कृति-संस्कारों से ओतप्रोत अद्भुत सामर्थ्य, वैश्विक शांति और सौहार्द के लिए वसुधैव कुटुम्बकम के भारतीय दर्शन और मानव कल्याण की प्रेरणा देने वाले सनातन धर्म के कारण ही भारत विश्वगुरु की प्रतिष्ठा को प्राप्त करेगा।
वेदों का सार है विश्व-कल्याण। आज इस विचार को सारा विश्व मान रहा है। अद्वैत के सिद्धांतों से देश का विकास होगा और भारत जल्द विश्व गुरु बन सकेगा। जब हम इतिहास पढ़ते हैं तो पता चलता है कि केरल से जब दीक्षा लेने के लिए भगवान् शंकराचार्य ओंकारेश्वर पहुंचे थे, वहां पर बाढ़ आई हुई थी। लेकिन उनके द्वारा नर्मदा का स्मरण करते ही बाढ़ का प्रकोप कम हो गया। भारत अपनी ज्ञान परंपरा के बल पर ही दोबारा विश्व गुरु बन सकता है। भारत के ज्ञान शोध की दुनियाभर के लोग सराहना कर रहे हैं। भारत के ऋषि मुनियों ने ज्ञान के सभी क्षेत्रों में प्राचीन काल से उच्च कोटि का शोध किया है उसी रास्ते पर चलकर 21वीं सदी में भी विश्व गुरु बन सकते हैं।
डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी