नयी दिल्ली, दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता भारत 2027 तक दलहन के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने और आयात कम करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने बृहस्पतिवार को यह बात कही।
उन्होंने कहा कि घरेलू दलहन उत्पादन में पहले ही उल्लेखनीय प्रगति हुई है, जो 2014 के 1.7 करोड़ टन से अब काफी अधिक हो चुका है। इस साल के लिए लक्ष्य 2.95 करोड़ टन के उत्पादन का है।
मुंडा ने जलवायु अनुकूल किस्मों और अन्य प्रौद्योगिकियों के तेजी से प्रसार की जरूरत पर भी जोर दिया।
दालों की कमी को पूरा करने के लिए देश सालाना लगभग 35 लाख टन दलहन का आयात करता है।
मुंडा ने यहां ग्लोबल पल्स कन्फेडरेशन (जीपीसी) और सहकारी संस्था नेफेड की ओर से आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “भारत चने और कई अन्य दलहन फसलों में आत्मनिर्भर हो गया है। …केवल अरहर और उड़द में थोड़ी कमी रह गई है। 2027 तक दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि सरकार ने बीजों की नई किस्मों की आपूर्ति बढ़ा दी है। …साथ ही अरहर और उड़द की खेती बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित किया है।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए खाका तैयार किया गया है। सरकार बीज विकास अनुसंधान और खेती के मूल्यांकन के लिए उपग्रह इमेजरी जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा दे रही है, उचित और समय पर सलाह प्रदान कर रही है और सिंचाई एवं उर्वरक के लिए प्रत्येक किसान के खेत की ‘मैपिंग’ कर रही है।
उन्होंने आगे कहा कि चालू रबी सत्र के दौरान मसूर का रकबा एक लाख हेक्टेयर बढ़ गया है। सिंचित क्षेत्रों में तुअर की बुवाई के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरकार ने तुअर की सुनिश्चित और पूर्ण खरीद के लिए एक पोर्टल शुरू किया है।
मुंडा ने कहा कि तुअर किसान इस पोर्टल पर पंजीकरण कर सकते हैं और अपनी पूरी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) या प्रचलित बाजार दर, जो भी अधिक हो, पर सहकारी समितियों- नेफेड और एनसीसीएफ को बेच सकते हैं।