नयी दिल्ली, भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की अबू धाबी में होने वाली बैठक में शामिल होने वाले देशों के सकारात्मक रुख के साथ आने और विकासशील देशों की चिंताओं को सुने जाने की शुक्रवार को उम्मीद जताई।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने यहां आयोजित ‘रायसीना डायलॉग’ परिचर्चा में शिरकत करते हुए कहा कि डब्ल्यूटीओ ने वैश्विक व्यापार के लिए मजबूत नियम स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन इस संगठन में कई अहम समस्याएं भी हैं।
डब्ल्यूटीओ के 164 सदस्य देशों के व्यापार मंत्री 26 फरवरी से अबू धाबी में एकत्रित होंगे और कृषि, मत्स्य पालन सब्सिडी और ई-कॉमर्स व्यापार पर सीमा शुल्क पर रोक जैसे कई प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
गोयल ने कहा, “मुझे उम्मीद है कि अन्य देश भी भारत की तरह सकारात्मक रुख के साथ बातचीत के लिए आएंगे। अन्य देश भी हमारी और अन्य कम विकसित एवं विकासशील देशों की चिंताओं को सुनने और समस्याओं का निष्पक्ष समाधान देने के लिए उत्सुक होंगे।“
उन्होंने कहा कि डब्ल्यूटीओ ने अपनी तमाम खामियों एवं समस्याओं के बावजूद व्यापार के सशक्त नियम और व्यवस्था बनाने में अहम भूमिका निभाई है। इस मंच पर सभी सदस्य देश व्यापार से संबंधित तमाम मुद्दों पर बातचीत या बहस करते हैं और उसका हल निकालते हैं।
विकसित देश डब्ल्यूटीओ में व्यापार और पर्यावरण, श्रम एवं एमएसएमई जैसे नए मुद्दों पर बातचीत शुरू करने पर जोर दे रहे हैं। वहीं भारत जैसे विकासशील देशों का कहना है कि मुद्दों पर चर्चा के लिए अन्य मंच भी मौजूद हैं।
इसके साथ ही गोयल ने विभिन्न देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को लेकर जारी वार्ताओं के संदर्भ में कहा कि किसी समझौते के न्यायसंगत, संतुलित एवं उचित नहीं होने पर भारत उसमें कोई जल्दबाजी नहीं दिखाता है।
भारत इस समय ब्रिटेन, ओमान और चार देशों के यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) के साथ एफटीए को अंतिम रूप देने के करीब है। ईएफटीए में आइसलैंड, लिशटेंस्टीन, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में जमीनी हकीकत अब बदल गई है और इन समझौतों में भागीदार देशों की तरफ से की गई पेशकश भारत की तरफ से की जा रही पेशकश के मुकाबले ‘कुछ भी नहीं’ है।
वाणिज्य मंत्री ने कहा कि भारत को कभी भी व्यापार वार्ता में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसका असर आने वाले कई वर्षों तक देश पर पड़ेगा।
उन्होंने कहा, “कभी-कभी व्यापार वार्ता में समय लगता है क्योंकि दूसरे पक्षों को यह समझने में समय लगता है कि भारत में वास्तव में क्या हो रहा है, भारत की कहानी कैसे आगे बढ़ रही है, नया भारत कैसे उभर रहा है।’