एकादशी के दिन चावल का सेवन हिन्दू धर्म में वर्जित है। जो एकादशी को व्रत रखें उन्हें तो चावल बिल्कुल नहीं खाने चाहिए, जो व्रत नहीं रखते वे भी इस दिन चावल का सेवन नहीं करें। ऐसा ही हमारे धार्मिक ग्रंथों में आया है। वास्तव में एकादशी का दिन, जो कि हर महीने में दो बार आता है, कोई भी अनाज नहीं खाना चाहिए। यदि ऐसा सम्भव नहीं, तो चावल तो बिल्कुल न खाएं। एकादशी के व्रत में फल खा सकते हैं। फलों से भी बेहतर होते हैं कंदमूल जो धरती में बिना हल चलाए लगाए व निकाले जाते हैं। इस तरह एकादशी के व्रत में चावल खाने की मनाही धर्मसम्मत है। चावल को पानी का कीड़ा भी कहते हैं। शायद इसीलिए व्रतधारियों के लिए यह वर्जित है। चावल को हम धान से प्राप्त करते हैं। धान को जब खेत में रोपते हैं तो वह पानी से भरा होता है। जब तक धान पक नहीं जाता, खेत पानी से भरा रखना पड़ता है। जब धान से प्राप्त चावल को खाने के लिए पकाया जाता है, तो भी यह बिना पानी नहीं पकता। अत: यह हुआ न पानी का कीड़ा। व्रत के दिन चावल नहीं खाने की सलाह दी जाती है, शायद इसलिए भी कि इसका सेवन शरीर में आलस्य पैदा करता है। निद्रा बढ़ जाती है। अत: आलस्य व निद्रा के प्रभाव से बचने के लिए भी एकादशी के व्रत में चावल का सेवन बिल्कुल न करें, तभी अच्छा।