करोड़ों हिन्दुओ की आस्था के प्रतीक भगवान श्रीराम की जन्मस्थली सरयू तट पर बसी अयोध्या पौराणिक नगरी है । अयोध्या नगर अयोध्या जिले उ०प्र० के पूर्वांचल में अक्षांश 26°47’59.08″ उत्तर और देशांतर 82″ 12’18.59″ पूर्व पर स्थित है। अयोध्या, को साकेत के प्राचीन नाम से भी जाना जाता है । राम जन्म भूमि मन्दिर के लिये सदियों के संघर्ष के बाद अंततोगत्वा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से परिसर का आधिपत्य हिन्दुओ को मिला । स्वाभाविक रूप से मंदिर निर्माण के लिये अपार धन संग्रह विश्व भर से मिले दान से सहज ही हो गया । अब एक ऐसे मंदिर का निर्माण होना था जो युगों युगों तक जन जन के लिये भावनात्मक ऊर्जा का केंद्र बना रहे । विशिष्ट हो और समय के अनुरूप वैश्विक स्तर का हो । न केवल मंदिर वरन समूचे अयोध्या के नव निर्माण हेतु तकनीकी प्लानिंग की गई है । अयोध्या विकास प्राधिकरण ने वर्ष २०३१ तक समूचे अयोध्या के लिये एक महायोजना तैयार की है ।
पहले चरण में श्रीराम मंदिर के निर्माण हेतु मुख्य वास्तुविद चंद्रकांत बी. सोमपुरा ने न्यूनतम समय में श्रेष्ठ डिजाइन तैयार किया । स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंदिर के निर्माण में रुचि ले रहे हैं । मोदी जी की यह विशेषता स्वीकार करने योग्य है कि वे शिलान्यास ही नही करते, न्यूनतम तय समय में उस योजना का उद्घाटन भी करते हैं अर्थात प्राण पन से योजना को पूरा करने की वांछित कार्यवाही चुपचाप समय से करते रहते हैं । मंदिर निर्माण के लिये सुप्रसिद्ध कंपनी लार्सन एंड टुब्रो को कार्य सौंपा गया । राष्ट्रीयता से ओत प्रोत प्रतिष्ठित कंपनी टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड को परियोजना प्रबंधन का काम दिया गया । राम मंदिर निर्माण का कार्य रामजन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के द्वारा करवाया जा रहा है । आई आई टी चेन्नई, आई आई टी बॉम्बे, आई आई टी गुवाहाटी, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की, एन आई टी सूरत, एन जी आर आई हैदराबाद जैसे संस्थान परियोजना के डिजाईन सलाहकार हैं । इन सबको समवेत स्वरूप में जोड़कर न्यूनतम समय में निर्माण कार्य पुरा करना बड़ी चुनौती थी । दिन रात आस्था और विश्वास के साथ समर्पित भाव से जुटे रहने का ही परिणाम है कि तय समय में मंदिर मूर्त रूप ले सका है ।
यह नव निर्मित राममंदिर सिविल इंजीनियरिंग का करिश्मा है । इसका निर्माण प्रसिद्ध भारतीय नागर शैली में किया गया है । इस शैली का प्रसार हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत माला तक देखा जा सकता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार नागर शैली के मंदिरों की पहचान आधार से लेकर सर्वोच्च अंश तक इसका चतुष्कोण होना है। विकसित नागर मंदिर में गर्भगृह, उसके समक्ष क्रमशः अन्तराल, मण्डप तथा अर्द्धमण्डप होते हैं। एक ही अक्ष पर एक दूसरे से संलग्न इन भागों का निर्माण किया जाता है। नागर निर्माण शैली की चार उपशैलियां होती है। एकायतन शैली, पंचायतन शैली , भूमिज शैली , तथा गुर्जर प्रतिहार शैली । नागर शैली के पुराने अनेकानेक निर्माण नर्मदा नदी के उत्तरी क्षेत्र में हिमालय तक मिलते हैं । इस शैली के निर्मित पुराने प्रमुख मंदिरों में कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो ,मध्य प्रदेश) , लिंगराज मंदिर , भुवनेश्वर , जगन्नाथ मंदिर , पुरी , सूर्य मंदिर , कोणार्क , मुक्तेश्वर मंदिर , (ओड़िसा ) , दिलवाडा के मंदिर – आबू पर्वत (राजस्थान ) तथा सोमनाथ मंदिर , सोमनाथ (गुजरात) आदि हैं ।
राम मंदिर के पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिये सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया है बल्कि लाक एड की आधार पर ग्रूव कटिंग से पत्थरों को जोड़ा गया है । यह अत्यंत प्राचीन परखी हुई भारतीय तकनीक है । इसी कारण मंदिर की आयु सामान्य भवनो की अपेक्षा बहुत अधिक आकलित की गई है । अयोध्या भूकंप जोन की दृष्ति से सुरक्षित मानी जाती है। क्योंकि यह भूकंपीय जोन 2, 3 के श्रेणी में आती है। अयोध्या में बड़े भूकंप के आने की संभावनाएं बहुत कम है। भूकंप के छोटे-छोटे झटके जरूर महसूस किए जा सकते हैं। फिर भी मंदिर निर्माण में भूकंपरोधी तकनीक का प्रयोग किया गया है । मंदिर परिसर की कुल 70 एकड़ क्षेत्रफल की जमीन ट्रस्ट के पास है । मंदिर का क्षेत्रफल 2.77 एकड़ है । मंदिर की लंबाई 380 फीट , चौड़ाई 250 फीट तथा ऊँचाई 161 फीट है ।
मंदिर में स्थापित की जा रही राम लला की नई मूर्ति मैसूर के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई है । मंदिर में नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप और कीर्तन मंडप इस तरह कुल 5 मंडप हैं। मंदिर की परिधि (परिकोटा) के चारों कोनों पर सूर्यदेव, माँ भगवती, भगवान गणेश और भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण किया जाएगा। उत्तरी दिशा में देवी अन्नपूर्णा का मंदिर होगा और दक्षिणी दिशा में भगवान हनुमान का मंदिर होगा। मंदिर परिसर के भीतर, अन्य मंदिर महर्षि वाल्मिकी, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, राजा निशाद, माता शबरी और देवी अहिल्या के होंगे। मंदिर परिसर में सीता कुंड नामक एक पवित्र कुंड भी होगा। परियोजना के अंतर्गत दक्षिण-पश्चिम दिशा में नवरत्न कुबेर पहाड़ी पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया जाएगा और जटायु की एक प्रतिमा स्थापित की जाएगी। धार्मिक आस्था का प्रतीक होने के साथ-साथ, श्री राम मंदिर एक अद्भुत वास्तुशिल्प कृति है। भारत की आध्यात्मिक विरासत और भगवान राम की अमर प्रसिद्धि के जीवित प्रमाण के रूप में, यह मंदिर अयोध्या को भारत की आध्यात्मिक राजधानी बनाने में अहम भूमिका निभाएगा।
राम मंदिर की नींव के डिजाइन में 14 मीटर मोटे रोल्ड कॉम्पैक्ट कंक्रीट को परतदार बनाकर कृत्रिम पत्थर का आकार दिया गया है। फ्लाई ऐश और रसायनों से बने कॉम्पैक्ट कंक्रीट की 56 परतों का उपयोग किया गया है। नमी से बचाव के लिए राम मंदिर के आधार पर 21 फुट मोटा ग्रेनाइट का चबूतरा प्लिंथ) बनाया गया है। मंदिर की नींव के डिजाइन में कर्नाटक और तेलंगाना के ग्रेनाइट पत्थर और बांस पहाड़पुर (भरतपुर, राजस्थान) के गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है।
मंदिर परियोजना में दो सीवेज शोधन संयंत्र, एक जल शोधन संयंत्र , विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था , की गई है। यह तीन मंजिला मंदिर भूकंपरोधी है। आकाशीय बिजली से बचाव के लिये मंदिर में तड़ित चालक लगाया गया है । मंदिर में 392 स्तंभ और 44 दरवाजे हैं। दरवाजे सागौन की लकड़ी से बने हैं और उन पर सोने की परत चढ़ायी गई है। मंदिर संरचना की अनुमानित आयु 2500 वर्ष आकलित की गई है।
मंदिर में लगाया गया घंटा अष्टधातु सोना, चांदी, तांबा, जस्ता, सीसा, टिन, लोहा और पारे से बनाया गया है। घंटे का वजन 2100 किलोग्राम है। घंटी की आवाज 15 किलोमीटर दूर तक सुनी जा सकेगी ऐसा अनुमान है। इस मंदिर में बहुत कुछ विशिष्ट और विश्व में प्रथम तथा रिकार्ड है ।
अयोध्या महायोजना में पर्यटन , रोजगार , स्वास्थ्य , अग्निशमन , जल प्रदाय , जलनिकासी , जल परिवहन , सरयू के किनारों के सौंदर्यीकरण ,रेनवाटर हार्वेस्टिंग , आवागमन , भूमिगत जल मल निकासी , भूमिगत विद्युतिकरण , सौर्य ऊर्जा के प्रयोग , चौदह कोसी परिक्रमा , पंचकोसी परिक्रमा , अंतर्ग्रही परिक्रमा , अदि परिक्रमा पथों के विकास , हेरिटेज मंदिरो हनुमान गढ़ी , कालाराम मंदिर , त्रेता के ठाकुर , कनक भवन , गुप्तार घाट , चक्रहरि मंदिर आदि के विकास , रामनवमी मेला तथा श्रावण झूला मेला तथा रामलीला आयोजन आदि अन्य मेलों के सामय समय पर आयोजन , आपदा प्रबंधन , फिल्म निर्माण सुविधायें , जन सुविधायें , स्वच्छता , कचरा प्रबंधन , मनोरंजन , बाजार तथा औद्योगिक क्षेत्रो का सम्यक विकास , सूचना प्रबंधन आदि प्रत्येक बिन्दु पर पूरा ध्यान दिया गया है । महायोजना के पूरा हो जाने के साथ अयोध्या विश्व स्तर का श्रेष्ठतम धार्मिक नगर बन कर विशिष्ट पहचान बनायेगा । राममंदिर के उद्घाटन के अवसर पर सिविल इंजीनियरिंग की शिक्षा में मंदिर निर्माण तकनीक को भी शामिल किये जाने की घोषणा की गई है, यह स्वागत योग्य कदम है।