जिस घड़ी का वर्षो से इंतजार था ,वह घड़ी 22 जनवरी को आ रही है जब देश को ही नही, दुनिया को करोड़ो लोगो की आस्था के प्रतीक भगवान राम का मंदिर लोकार्पित हो जाएगा. उस स्वर्णिम घड़ी को ऐतिहासिक बनाने के लिए देश भर के साधु संत बुलाये गए है,वही अन्य आस्थावान भी उस दिव्य व भव्य घड़ी के साक्षी होगें।भगवान राम अपने इस मंदिर पर किसी राजनीति का साया न आने दे और यह मंदिर निर्लेप भाव के साथ केवल सनातन धर्म के उत्थान का प्रतीक बने यही कामना है।
वस्तुतः भगवान ‘राम’ आस्थावानों के रोम रोम में बसे है।आज से नही युगों युगों से।सबुरी ऐसी ही आस्थावान थी,तभी तो ‘राम’, सबुरी के हो गए और सबुरी के झूठे बेर तक खा लिए। आज सबुरी जैसी आस्था तो कम ही देखने को मिलती है लेकिन ‘राम’ का मंदिर बने, यह उत्साह हर उस व्यक्ति में है जिसके घट में ‘राम’ है।तभी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने राम मंदिर का ताला खुलवाया, तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहा राव के रहते राम मंदिर मुद्दा परवान चढ़ा और कार सेवको के संघर्ष से राम मंदिर मुद्दा कानून की चौखट से होते हुए कानून की ही बदौलत निर्माण की पूर्णता तक आ पहुंचा है।
मंदिर जितना बड़ा और भव्य बना है, उतना ही राम भक्त हर्ष की अनुभूति कर रहे है लेकिन आवश्यक यह भी है कि मंदिर बनने के साथ साथ हम राम को आत्मसात भी करे।राम मर्यादा पुरुषोत्तम है तो हम भी राम का आदर्श स्थापित करे।राम के उच्च चरित्र को दर्शाती ‘रामायण’ हिंदू धर्म की एक प्रमुख आध्यात्मिक पुस्तक है परंतु बिडंबना यह है कि ‘रामायण’ को बार बार पढ़ने के बावजूद भी उसमें लिखे आध्यात्मिक मूल्यों की धारणा नहीं हो पाती और हम राम के नाम रूप पर बहस करते रहते हैं। इससे रामायण रचना की सार्थकता कभी भी सिद्ध नहीं हो सकती है । रामायण को ऐसे परिपेक्ष में समझने की आवश्यकता हैं जिससे इसमें लिखी हर बात आज के समय में सार्थक सिद्ध हो सके ।
रामायण महर्षि बाल्मीकी के द्वारा लिखित एक आध्यात्मिक पुस्तक है । महर्षि बाल्मीकी ने आध्यात्मिक जागृति व ईश्वरीय अनुभूति के द्वारा दिव्य व महान ग्रन्थ रामायण को रचा, जिससे वे स्वयं भी महान हो गए।वह व्यक्ति दूसरों का शुभचिंतक हो जाता है,जो स्वयं की अनुभूतियों को समाज कल्याण हेतु प्रयोग कर लोगों में एक नई सोच फैलाने का कार्य करता है। स्वयं का जीवन परिवर्तन होने पर महर्षि बाल्मीकी ने समाज में आध्यात्मिक जागृति लाने का बीड़ा उठाया । मोह माया में फँसें लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान रोचक लग सके ,इसके लिए उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान को एक रोचक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया जिसमें मुख्य नायक व नायिका राम और सीता को रखा गया ।उसी प्रकार महाकवि तुलसी दास ने ‘राम चरित मानस’ के माध्यम से राम को आदर्श व मर्यादा का पर्याय सिद्ध किया। महर्षि बाल्मीकी ने त्रेता युग के बाद समाज में आध्यात्मिक क्रांति लाने हेतु राम व सीता का नाम व चरित्र प्रयोग किया जो पूरे संसार के प्रेरक बन गए ।
हम रामायण में लिखित सब पात्रों को उसी तरह से स्वीकार करते हैं जैसे रामायण को पढ़ने पर जान पडता है परन्तु इस तरह से तो रामायण में दर्शाए गए पूर्णतः अहिंसक पात्र भी हिंसक नज़र आते हैं जैसे राम के द्वारा रावण का वध करना, भगवान की परिभाषा को खंडित करता है राम यदि भगवान हैं तो वह हिंसक हो ही नहीं सकते और राम यदि सर्वशक्तिमान ईश्वर है तो उनकी सीता को एक दैत्य ( रावण ) कैसे उठाकर ले जा सकता है ? इसलिए कहीं न कहीं रामायण को किसी और परिपेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है। रामायण का वास्तविक़ अर्थ जानने के लिए रामायण के विभिन्न पात्रों को निम्नलिखित रूप में समझ कर पढ़ें तो आपको उसमें लिखा एक एक आध्यात्मिक बिंदु समझ आ आएगा । राम वास्तव में परमात्मा ही है जो संगम युग में धरा पर अवतरित हो कर अपनी बिछड़ी हुई सीता ( सतयुगी आत्मा ) को रावण ( विकारों ) के चंगुल से छुड़ाने आते है ।सीता, हर वह आत्मा जो वास्तव में पवित्र है परंतु आज रावण के चंगुल में फँसी होने के कारण संताप झेल रही है । रावण ,पतित व विकार युक्त सोच व धारणा ही रावण है जिसमें फँसी हर आत्मा आज विकर्मों के बोझ तले दबती जा रही है । पाँच मुख्य विकार पुरुष के व पाँच विकार स्त्री के ही रावण के दस शीश हैं ।हनुमान , वास्तव में धरा पर अवतरित हुए परमात्मा को सर्वप्रथम पहचानने वाली आत्मा ही हनुमान हैं परंतु हर वह आत्मा जो ईश्वर को पहचान दूसरी आत्माओं ( सीता ) को धरा पर आए ईश्वर ( राम ) का संदेश देने के निमित बनती है, वह भी हनुमान की तरह ही है ।
वानर सेना ,साधारण दिखने वाली मनुष्य आत्माएँ ईश्वर ( राम ) को पहचान कर, संस्कार परिवर्तन द्वारा पूरानी दुनियाँ या रावण राज्य ( पतित सोच पर आधारित दुनिया ) को समाप्त करने में राम का साथ देने वाली संसार की ३३ करोड़ आत्माएँ ही वानर सेना है ।
लंका ,पुरानी पतित दुनियाँ जहाँ हर कार्य देहभान में किया जाता है ,वही रावण नगरी लंका है ।आज हमें इसी सत्यता को आत्मसात कर विकर्मों को त्याग कर राम की तरह पवित्र बनना है।तभी हम राम के समान देवत्व प्राप्त कर सकते है और राममय हो सकते है।यही नवनिर्मित राम मंदिर की सार्थकता भी है।