दंपति कब माता पिता बनें?

समाजशास्त्रियों का मत है कि विवाह से कम से कम दो वर्ष पश्चात नवदंपति को माता पिता बनना चाहिए। शादी की धूमधाम, भांवरों के रस्म रिवाज नवदंपति को एक सूत्रा में बांधकर जीवन की गहराइयों में धकेल देते हैं।


विवाह के बाद अनेक समस्याएं सामने आती हैं जिनका हल या समाधान सिर्फ पति पत्नी को ही करना पड़ता है। उनकी रूचि, उनके संस्कार, उनके स्वभाव व सिद्धांत अलग अलग हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में साथ-साथ चलकर बड़ी बुद्धिमत्ता से काम लेना पड़ता है।
वस्तुतः विवाह का उद्देश्य बच्चे पैदा करना मात्रा नहीं होता अपितु विवाह जीवन का महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध है। जो लोग इस महत्त्व व मूल्य को नहीं समझते, वे जब अचानक बहुत जल्दी मां बाप बनते हैं तो उनकी स्थिति गंभीर हो जाती है क्योंकि वे लोग आर्थिक और मानसिक रूप से तैयार नहीं हो पाते।


दो वर्ष का समय नवदंपति को एक दूसरे को समझने के लिए व प्रेम सम्बन्धों को मजबूत करने के लिए मिलना ही चाहिए। नवयुवती पत्नी अचानक ही माता बनने के लिए बाध्य हो जाती है तो उसकी स्थिति उस कली जैसी हो जाती है जो पुष्प बनने के पहले ही तोड़ ली गई हो क्योंकि गर्भधारण में ंउसे अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।
पत्नी चाहे क्यों न तन्दुरूस्त हो, गर्भधारण काल में शारीरिक परिवर्तनों और कई उलझनों से गुजरना पड़ता है, क्योंकि इस दौरान स्त्रा के स्वभाव और व्यक्तित्व में काफी परिवर्तन होता है।


जो नववधुएं बहुत जल्दी ही गर्भवती हो जाती हैं उनके पतियों को वास्तव में अपनी पत्नियों को समझने का अवसर ही नहीं मिलता क्योंकि उनका परिचय काल ही बहुत कम होता है। इतने कम समय में पति अपनी पत्नी के प्रेम और रोमांस की थोड़ी सी झलक पाता है कि तुरन्त ही पत्नी मातृत्व के क्षेत्रा में प्रवेश कर जाती है। पत्नी के पूर्ण विकसित स्त्रात्व और खिले हुए सौन्दर्य रस से पति वंचित रह जाता है, क्योंकि गर्भधारण के पश्चात मानसिक परेशानियों से गुजरना ही पड़ता है। पति पत्नी में एक मानसिक अलगाव आ जाता है।


ऐसी स्थिति में पत्नी यह भी अनुभव कर सकती है कि उसे थोड़े से समय की रंगरेलियों के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है क्योंकि कहां तो वह कुछ वर्ष तक वह लड़की थी और कहां वह अब माता बनने जा रही है। इसलिए यदि दो तीन वर्ष का समय नवदंपति को मिल जाता है तो उन्हें  इन विकट परिस्थितियों से नहीं गुजरना पड़ता। इसलिए संयम ही एक ऐसा साधन है जो दांपत्य और प्रेम सम्बन्धों को मजबूत बना सकता है।


जब पति पत्नी का दांपत्य जीवन प्रेम का आधार मजबूत हो जाता है, तब शिशु का जन्म अत्यन्त आनन्ददायक होता है। शिशु दोनों के लिए प्रेम का एक केन्द्र बन जाता है। माता पिता बेइंतिहा प्यार एक दूसरे से करते हैं। एक प्रकार से बच्चा माता पिता के जीवन में नया पाठ आरम्भ करता है।


पहला बच्चा होने के बाद ही समस्या का समाधान नहीं हो पाता। दूसरे बच्चे भी योजनापूर्वक ही होने चाहिए। पत्नी के प्रत्येक प्रसव में इतना अन्तर अवश्य होना चाहिए कि उसका शरीर पिछले प्रसव की क्षतिपूर्ति कर सके।


दूसरी बात यह कि इतने अधिक बच्चे भी न हों क्योंकि उनका पालन पोषण, शिक्षा दीक्षा का प्रबंध करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। आज के वर्तमान युग में कितने ही दम्पति अधिक सन्तान के कारण काफी दुःख तकलीफ उठा रहे हैं।